क्या गरीबों को मिलेगा वैक्सीन?
दो अमेरिकी कंपनियों ने कोरोना वायरस की वैक्सीन बनाने का एलान कर दिया है
फिर औरों के लिए ज्यादा कुछ नहीं बचेगा। वैक्सीन बनने की खबर आते ही धनी देशों ने धड़ाधड़ इसके लिए ऑर्डर दे दिए। ये ध्यान दिलाया गया है कि जापान और ब्रिटेन जैसे जिन देशों ने टीके के लिए पहले से ऑर्डर दे रखे हैं, वे डब्लूएचओ की देखरेख में चल रही पहल कोवाक्स के सदस्य हैं। ऐसे में हो सकता है कि वे जो टीके वे खरीदें, उनमें से कुछ विकासशील देशों को भी मिलें। लिन 60 करोड़ डोज का ऑर्डर देने वाला अमेरिका कोवाक्स में शामिल नहीं है। संयुक्त राष्ट्र की बाल कल्याण संस्था यूनिसेफ के विशेषज्ञों का कहना है कि यह बहुत जरूरी है कि सभी देशों को नई वैक्सीन मिले। दुनिया को ऐसी स्थिति से बचना होगा, जिसमें सारे अमीर देश वैक्सीन पर कब्जा कर लें और गरीब देशों के लिए पर्याप्त वैक्सीन ना बचें। अभी जो वैक्सीन आई है, संक्रमण से बचने के लिए एक व्यक्ति को उसकी दो खुराकें देनी होंगी, जिनकी कीमत 40 डॉलर होगी। ये खर्च कहां से आएगा? गौरतलब है कि मंजूर होने वाली किसी भी वैक्सीन का वितरण समान रूप से हो, इसके लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अप्रैल में कोवाक्स केंद्र बनाया था। यह केंद्र सरकारों, वैज्ञानिकों, सामाजिक संस्थाओं और निजी क्षेत्र को एक साथ लाता है। फाइजर इसका हिस्सा नहीं है। इसलिए यह सरकारों और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं को सुनिश्चित करना होगा कि वैक्सीन सिर्फ धनी देशों और लोगों तक सीमित ना रह जाए।