क्या पटियाला के महाराज और कांग्रेस के युवराज के ईगो की लड़ाई में पार्टी पंजाब चुनाव हार जाएगी?
कहते हैं कि ज़ख़्मी शेर काफी खतरनाक होता है, पर एक ज़ख़्मी शेर कितना खतरनाक हो सकता है
अजय झा कहते हैं कि ज़ख़्मी शेर काफी खतरनाक होता है, पर एक ज़ख़्मी शेर कितना खतरनाक हो सकता है इसका उदाहरण देखने के लिए सिर्फ पंजाब की ओर रुख करना ही पर्याप्त होगा. ज़ख़्मी शेर कोई और नहीं बल्कि प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह (Amarinder Singh) हैं. कांग्रेस (Congress) आलाकमान ने पिछले हफ्ते उनकी पद से छुट्टी कर दी और चरणजीत सिंह चन्नी (Charanjit Singh Channi) की ताजपोशी हो गयी. अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटाने का निर्णय भले ही पार्टी आलाकमान का था, पर पटियाला के शेर अमरिंदर सिंह को भी पता है कि आलाकमान के कंधे पर बन्दूक रख कर किसने उनका शिकार करने की कोशिश की थी. कन्धा भले ही राहुल गांधी का था पर बन्दुक और गोली प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) की थी.
अब अमरिंदर सिंह के निशाने पर उनके शिकारी सिद्धू हैं. सिंह का एक बयान आया है कि चाहे कुछ भी हो जाए वह सिद्धू को अगले वर्ष पंजाब का मुख्यमंत्री नहीं बनने देंगे. सिंह ने सिद्धू के खिलाफ किसी मजबूत प्रत्याशी को चुनावी मैदान में उतारने की घोषणा की है. सिद्धू फिलहाल अमृतसर पूर्व से विधायक हैं. चुनौती देना आसान है पर अमली जामा पहनाना इतना भी आसान नहीं, जबकि आज तक सिद्धू पिछले 17 वर्षों में अमृतसर से कभी हारे नहीं हैं. पहले वह स्वयं अमृतसर के सांसद होते थे और उनकी पत्नी नवजोत कौर सिद्धू अमृतसर पूर्व से विधायक.
क्या आगामी चुनाव में अमरिंदर सिंह सिद्धू के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे?
2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने सहयोगी अकाली दल के दबाव में सिद्धू को टिकट नहीं दिया और बीजेपी के प्रत्याशी अरुण जेटली वहां से चुनाव हार गए. जीत कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी अमरिंदर सिंह की हुई थी. 2017 के विधानसभा चुनाव से पूर्व सिद्धू कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए और नवजोत कौर सिद्धू की जगह नवजोत सिंह सिद्धू अमृतसर पूर्व से कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी के रूप में चुनाव जीत कर अमरिंदर सिंह सरकार में मंत्री बने.
समय ने पासा पलटा. सिद्धू जो कभी बीजेपी के नेता होते थे अब कांग्रेस पार्टी के पंजाब में सर्वोच्च नेता हैं और अमरिंदर सिंह जिनके नाम पर कभी प्रदेश में कांग्रेस पार्टी चलती थी अब सिद्धू को चुनाव में हराने की बात कर रहे हैं. तकनीकी रूप से अमरिंदर सिंह अभी भी कांग्रेस पार्टी में ही हैं, पर वह पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष को हराने की बात कर रहे हैं. सिद्धू पटियाला से पटियाला के महाराज अमरिंदर सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ने से तो रहे, तो क्या अमरिंदर सिंह सिद्धू के रंग में भंग डालने खुद अमृतसर पूर्व विधानसभा क्षेत्र से सिद्धू के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे?
अमरिंदर सिंह की विदाई सम्मानपूर्वक भी हो सकती थी
अमरिंदर सिंह ने सिद्धू के खिलाफ किसी मजबूत प्रत्याशी को चुनाव में उतारने की बात की है, तो वह और कौन होगा खुद उनके सिवाय जो सिद्धू को परास्त कर सके? कांग्रेस पार्टी सिद्धू के खिलाफ अमरिंदर सिंह को टिकट तो दे नहीं सकती, जो वैसे भी संभव नहीं है, क्योंकि एक क्षेत्र से किसी पार्टी का एक ही उम्मीदवार मैदान में हो सकता है. इसका मतलब साफ़ है कि अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस पार्टी को छोड़ने का मन बना लिया है. दिलचस्पी का विषय यही होगा कि क्या अमरिंदर सिंह किसी और पार्टी में शामिल होंगे, अपनी खुद की पार्टी का गठन करेंगे या फिर सिद्धू के खिलाफ निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ेंगे?
इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि कांग्रेस पार्टी ने अमरिंदर सिंह को ना सिर्फ आहत किया है, बल्कि उनकी बेइज्जती भी की है. अमरिंदर सिंह ने कहा कि उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने की पेशकश की थी पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने उन्हें पद पर बने रहने को कहा था. संभव है कि सोनिया गांधी और उनके बेटे राहुल गांधी के बीच अमरिंदर सिंह के ऊपर मनमुटाव रहा और जीत राहुल गांधी की हुई. राहुल गांधी ने सिद्धू के हक़ में फैसला किया और अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटा दिया गया. पर यह बात समझ से परे है कि क्या अमरिंदर सिंह की विदाई किसी सम्मानपूर्ण तरीके से नहीं हो सकती थी.
अमरिंदर सिंह के बगावती तेवर से मुश्किल में पड़ जाएगी कांग्रेस
खेल की दुनिया में अक्सर ऐसा होता है कि जब किसी बड़े खिलाड़ी को टीम से ड्रॉप किया जाता है तो उससे पहले उस खिलाड़ी को विश्वास में लिया जाता है और उसे बताया जाता है कि क्यों उसे ड्रॉप किया जा रहा है. उस खिलाडी को समय दिया जाता है कि वह स्वयं रिटायरमेंट की घोषणा कर दे. राजनीति में भी ऐसा होता हैं और जिस नेता की टिकट कटने वाली होती है उसे मौका दिया जाता है कि वह खुद ऐलान कर दे की वह अगला चुनाव नहीं लड़ना चाहते, इसे ही सम्मानजनक विदाई कहा जाता है.
पर अमरिंदर सिंह को सम्मानजनक विदाई का मौका भी नहीं दिया गया. चरणजीत सिंह चन्नी के शपथ ग्रहण समारोह में दिल्ली से चंडीगढ़ राहुल गांधी भी पहुचे थे. अगर राहुल गांधी चाहते तो वह मौके का फायदा उठा कर अपने पिता के स्कूल के ज़माने के दोस्त अमरिंदर सिंह से मिल कर उनके घाव पर मरहम लगा भी सकते थे. पर राहुल गांधी के ईगो ने उन्हें ऐसा करने नहीं दिया और दरार इतनी बढ़ गयी कि अब अमरिंदर सिंह बगावत करने पर अमादा हैं.
अगर अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस पार्टी का साथ छोड़ दिया और सिद्धू के बहाने कांग्रेस पार्टी के खिलाफ मैदान में आ गए तो इसका जबरदस्त नुकसान कांग्रेस पार्टी को होगा. अमरिंदर सिंह बूढ़े ज़रूर हो चले हैं, पर अभी भी उनमें काबिलियत है कि जैसे उन्होंने 2017 में हवा का रुख कांग्रेस पार्टी के पक्ष के कर दिया था, अब वह कांग्रेस पार्टी के खिलाफ माहौल बना सकते हैं. टक्कर अब पटियाला के महाराज अमरिंदर सिंह के ईगो और कांग्रेस पार्टी के बेताज बादशाह राहुल गांधी के ईगो के बीच है. अमरिंदर सिंह भले ही फिर मुख्यमंत्री नहीं बन पाये पर वह कांग्रेस पार्टी के राह में कांटे बिछाने में सक्षम हैं.