क्या उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की लाज बचा पाएगा प्रियंका का महिला कार्ड?

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने अपने उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी कर दी है

Update: 2022-01-17 15:40 GMT
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने अपने उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी कर दी है. 125 उम्मीदवारों की इस लिस्ट में 50 महिलाओं को टिकट दिया गया है. ऐसा करके प्रियंका गांधी वाड्रा ने महिलाओं को 40% टिकट देने का अपना वादा निभाया है. कांग्रेस की लिस्ट सामने आने के बाद लगातार चर्चा का विषय बनी हुई है. अन्य पार्टियों पर महिलाओं को ज्यादा टिकट देने का दबाव है. वहीं ये सवाल भी उठ रहा है क्या प्रियंका गांधी का महिला कार्ड उत्तर प्रदेश में अपना वजूद बचाने की लड़ाई लड़ रही कांग्रेस की लाज बचा पाएगा?
अन्याय के ख़िलाफ लड़ने वाली महिलाओं पर दांव
उत्तर प्रदेश के प्रभारी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने करीब 2 महीने पहले 'लड़की हूं, लड़ सकती हूं' का नारा देकर प्रदेश की आधी आबादी यानी महिला केंद्रित राजनीति की शुरुआत की थी. तभी उन्होंने महिलाओं को 40% टिकट देने का वादा भी किया था. अब टिकटों के बंटवारे में उन्होंने यह वादा पूरा कर दिखाया है.
प्रियंका गांधी ने अपने और समाज के लिए इंसाफ की लड़ाई लड़ने वाली कई महिलाओं को टिकट दिया है. एक तरफ जहां लखनऊ में सीएए-एनआरसी आंदोलन का चेहरा रहीं सदफ़ जाफर को उम्मीदवार बनाया गया है, वहीं आशा वर्कर पूनम पांडे को भी टिकट मिला है. उन्नाव गैंगरेप पीड़िता की मां को भी प्रियंका गांधी ने उन्नाव से उम्मीदवार बनाया है. ज़ाहिर है कि प्रियंका गांधी की कोशिश अन्याय के खिलाफ लड़ने वाली महिलाओं को न्याय का चेहरा बनाकर चुनाव जीतने की है.
प्रियंका की तारीफ़ मगर कई सवाल
प्रियंका गांधी की इस महिला केंद्रित राजनीति की तारीफ़ तो ख़ूब हो रही है, लेकिन साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि यूपी के विधानसभा चुनाव में इससे कांग्रेस को कोई ख़ास फायदा होने वाला नहीं है. भले ही भविष्य में यह कांग्रेस के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है. कांग्रेस के भीतर भी महिलाओं को 40% टिकट देने को लेकर सवाल उठ रहे हैं. उत्तर प्रदेश की पहली लिस्ट सामने आने के बाद पार्टी में सुगबुगाहट है कि महिलाओं को टिकट देने के चक्कर में पार्टी ने अपने कई ऐसे क़द्दावर नेताओं को नजरअंदाज किया है, जो अपने क्षेत्र में जीतने की क्षमता रखते थे. पार्टी के भीतर इस तरह के बग़ावती सुर अपनी ही पार्टी की महिला उम्मीदवारों को हराने के लिए साजिश का संकेत देते हैं. वहीं, इससे यह संकेत मिलता है कि पार्टी के भीतर ही प्रियंका गांधी के एजेंडे की हवा निकालने की कोशिश हो रही है.
कांग्रेस पर यह आरोप भी लग रहा है कि उत्तर प्रदेश में उसके पास होने के लिए कुछ नहीं है लिहाज़ा वह 40% महिलाओं को टिकट देने का प्रयोग कर रही है. ऐसा प्रयोग वह पंजाब और उत्तराखंड जैसे राज्यों में करके दिखाएं तो ये माना जाए कि महिला सशक्तिकरण के मुद्दे पर वह वाक़ई गंभीर है.
नहीं मिल रहे जिताऊ उम्मीदवार
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की हालत बेहद ख़राब है. इन विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए कोई ख़ास गुंजाइश नहीं दिखती है. यूपी का चुनाव पश्चिम बंगाल की तरह योगी बनाम अखिलेश बन गया है. कुछ दिनों पहले अखिलेश यादव ने तंज़ करते हुए कहा था कि कांग्रेस यूपी में खाता भी नहीं खोल पाएगी. ख़ुद यूपी कांग्रेस के कई नेताओं का भी यही मानना. एक नेता के मुताबिक़ इस चुनाव में कांग्रेस के हाथ पल्ले कुछ पड़ने वाला नहीं है. हो सकता है कि यूपी में कांग्रेस का हाल पश्चिम बंगाल वाला हो जाए यानि वो खाता भी न खोल पाए. शायद यही वजह है कि कांग्रेस के कई नेताओं ने हाल ही में कांग्रेस छोड़ समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया है. कांग्रेस ने 125 उम्मीदवारों की पहली लिस्ट तो जारी कर दी है. लेकिन सच्चाई यह है कि कांग्रेस को चुनाव लड़ने के लिए मज़बूत और जिताऊ उम्मीदवार नहीं मिल रहे.
प्रियंका की नज़र में पार्टी छोड़ने वाले बुज़दिल
हाल ही में प्रियंका गांधी ने एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में क़ुबूल किया था कि उन्होंने पार्टी छोड़कर जाने वाले दवा नेताओं को रोकने की कोई कोशिश नहीं की और आगे भी नहीं करेंगी. क्योंकि वह जो लड़ाई लड़ रहीं हैं उसे लड़ना बुज़दिलो का काम नहीं है. एक तरह से देखा जाए तो प्रियंका गांधी ने पार्टी छोड़कर जाने वाले तमाम नेताओं को बुज़दिल क़रार दे दिया है. ग़ौरतलब है कि पिछले करीब एक साल में पार्टी के कई दिग्गज नेताओं ने कांग्रेस का दामन छोड़ कर दूसरी पारिटियों का दामन थामा है. इनमें पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद, पूर्व सांसद राजाराम पाल पूर्व राज्यसभा सदस्य हरेंद्र मलिक और उनके बेटे पूर्व विधायक पंकज मलिक, ललितेश्वर पति त्रिपाठी जैसे क़द्दावर समझे जाने वाले नेता शामिल हैं. इनके अलावा कई और नेता कांग्रेस से पहले ही किनारा कर चुके हैं.
पार्टी में मची भगदड़ से चिता बढ़ी
हाल ही में सहारनपुर से पूर्व विधायक और उत्तर प्रदेश कांग्रेस में उपाध्यक्ष रहे इमरान मसूद ने भी कांग्रेस छोड़कर समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया है. पार्टी छोड़ते वक्त उन्होंने कांग्रेस पर कोई नकारात्मक टिप्पणी नहीं की. सिर्फ इतना कहा कि कांग्रेस ने उन्हें भरपूर सम्मान दिया, लेकिन उत्तर प्रदेश में फिलहाल विकल्प समाजवादी पार्टी ही है. कांग्रेस के अंदरूनी हलकों से ख़बरें आ रही हैं कि नसीमुद्दीन सिद्दीक़ी भी जल्द ही कांग्रेस छोड़कर सपा का दामन थाम सकते हैं. पिछले चुनाव में जीते कांग्रेस के 7 विधायकों में से अब उसके पास सिर्फ दो ही बचे हैं. इन हालात में कांग्रेस के सामने अपना वजूद बचाने का संकट पैदा हो गया है. इसलिए पार्टी के भीतर यह सवाल उठ रहा है कि ऐसे नाज़ुक वक्त में प्रियंका गांधी ने महिला कार्ड खेलकर क्या पार्टी वजूद को ही ख़तरे में डाल दिया है.
पिछले चुनाव में निराशाजनक प्रदर्शन
पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की का प्रदर्शन बेहद ख़राब और निराशाजनक रहा था. तब समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन के बावजूद कांग्रेस 114 सीटों पर चुनाव लड़ कर सिर्फ़ 7 सीटें ही जीत पाई थी. हालांकि वो 49 सीटों पर दूसरे स्थान पर रही थी. लेकिन 29 सीटों पर उसके उम्मीदवारों की ज़मानत भी जब्त हो गई थी. पिछले चुनाव में कांग्रेस को 54,16,540 वोट मिले थे. ये कुल पड़े वोटों का महज़ 6.24% थे. आजादी के बाद यूपी में कांग्रेस को सबसे कम वोट और कब सबसे कम सीटें पिछले विधानसभा चुनाव में ही मिली थीं. सपा के साथ गठबंधन को लेकर तब कांग्रेस के भीतर ही गंभीर सवाल उठे थे. अब अखिलेश यादव ने भी पिछले चुनाव में कांग्रेस से गठबंधन को बड़ी ग़ल्ती माना है. शायद यही वजह है कि इस बार अखिलेश यादव ने कांग्रेस के साथ गठबंधन करने की कोशिश तक नहीं की.
नहीं हुआ गठबंधनों से फ़ायदाकांग्रेस को गठबंधन से कभी कोई फायदा नहीं हुआ है. 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने रालोद के साथ गठबंधन किया था. तब वो 355 सीटों पर चुनाव लड़ी थी. उस चुनाव में कांग्रेस ने 28 सीटें जीती थी और उसे 11.65% वोट मिले थे. उस चुनाव में 240 सीटों पर उसकी ज़मानत ज़ब्त हुई थी. तब उसने 88,32,895 वोट हासिल किए थे. 1996 में बसपा के साथ गठबंधन में कांग्रेस ने 126 सीटों पर चुनाव लड़कर 33 सीटें जीती थी. तब उसे 8.35% वोट मिले थे. 1989 के बाद हुए चुनावों में कांग्रेस 8% से 15% तक वोट हासिल करती रही. लेकिन पिछले चुनाव में इसमें बहुत ज्यादा गिरावट आई थी. इस चुनाव में भी इसमें इजाफा होता नहीं दिख रहा. इसीलिए यह सवाल उठ रहा है कि क्या प्रियंका गांधी का महिला का उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की लाज बचा पाएगा.
राहुल को प्रियंका पर था भरोसा
दरअसल, 2019 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी ने प्रियंका गांधी को पार्टी का महासचिव बनाकर उत्तर प्रदेश की कमान सौंपी थी. राहुल गांधी ने प्रियंका को यूपी में मुर्दा हो चुकी कांग्रेस को जिंदा करने की बड़ी जिम्मेदारी दी थी. हालांकि प्रियंका गांधी के उत्तर प्रदेश का प्रभारी रहते राहुल गांधी अपनी परंपरागत अमेठी सीट से लोकसभा का चुनाव हार गए थे. लेकिन उन्होंने प्रियंका गांधी पर भरोसा क़ायम रखा. प्रियंका गांधी भी इस भरोसे को बनाए रखने के लिए उत्तर प्रदेश में सड़क पर उतरकर लगातार संघर्ष करती रहीं. उन्होंने जनता से जुड़े मुद्दे भी उठाए. लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद वह कांग्रेस को इस स्थिति में लाने में नाकाम रही कि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस बड़ी भूमिका निभाती नज़र आए.


(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
 
यूसुफ अंसारी वरिष्ठ पत्रकार
जाने-माने पत्रकार और राजनीति विश्लषेक. मुस्लिम और इस्लामी मामलों के विशेषज्ञ हैं. फिलहाल विभिन समाचार पत्र, पत्रिकाओं और वेब पोर्टल्स के लिए स्तंत्र लेखन कर रहे हैं. पूर्व में 'ज़ी न्यूज़' के राजनीतिक ब्यूरो प्रमुख एवं एसोसिएट एडीटर, 'चैनवल वन न्यूज़' के मैनेजिंग एडीटर, और 'सनस्टार' समाचार पत्र के राजनितिक संपादक रह चुके हैं.
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