क्या प्रशांत किशोर ममता बनर्जी के नाम पर शरद पवार को मना पाएंगे?
प्रशांत किशोर ममता बनर्जी
अजय झा। चुनावी रणनीति के धुरंधर माने जाने वाले प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) की एनसीपी प्रमुख शरद पवार (NCP Chief Sharad Pawar) के साथ कल लगभग तीन घंटे की मुंबई में हुई मीटिंग चर्चा में हैं. अटकलों का बाज़ार गर्म है कि उनकी मुलाकात 2024 के लोकसभा के मद्देनजर हुई है. मीटिंग में क्या बात हुई इस बारे में अभी ज्यादा जानकारी नहीं है, पर इतना तय है कि प्रशांत किशोर शायद शरद पवार की नब्ज़ टटोलने गए थे. अगर दोनों के बीच उम्र के बड़े फासले को नज़र अंदाज़ कर दिया जाए तो यह दो धुरंधरों के बीच एक महत्वपूर्ण बैठक थी. अगर प्रशांत किशोर चुनावी रणनीति बनाने और चुनाव में जीत दिलाने में माहिर हैं तो पवार पावर पॉलिटिक्स दिग्गज हैं.
पवार और पावर का बहुत पुराना रिश्ता है. 1999 के लोकसभा चुनाव के ठीक पहले कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर पवार ने पी.ए. संगमा और तारिक अनवर के साथ कांग्रेस में बगावत का बिगुल बजा दिया था. पवार को यह कतई मंज़ूर नहीं था कि इटली में पैदा हुई सोनिया मैनो भारत की प्रधानमंत्री बन जाएं. एक बार तो ऐसा लगने लगा था कि पवार बीजेपी की भाषा बोलने लगे हैं. तीनों बागियों को कांग्रेस पार्टी से निकाल दिया गया और उन्होंने नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी का गठन कर लिया. और ठीक पांच साल बाद 2004 में पवार को कोई परहेज नहीं था जब यूपीए ने सोनिया गांधी को अपना नेता चुन लिया और सोनिया को प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने का राष्ट्रपति के.आर. नारायणन से आमंत्रण भी मिल गया. यह अलग बात है कि सोनिया गांधी ने अपना कदम पीछे खींच लिया और डॉ मनमोहन सिंह को अपनी जगह प्रधानमंत्री बना दिया. पवार को सत्ता का सुख चाहिए था और वह सोनिया गांधी के नेतृत्व में एक मंत्री के रूप में काम करने को भी तैयार थे.
प्रधानमंत्री बनने की ख़्वाहिश रखते हैं पवार
पवार तीन बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और तीन बार केंद्र में मंत्री रह चुके थे. 1998 से 1999 के बीच वह लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष थे. बाद में यह साफ़ हो गया कि उनकी बगावत का सोनिया गांधी के विदेशी मूल से कुछ लेना देना नहीं था, पवार चाहते थे कि कांग्रेस पार्टी उन्हें प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनाये और कांग्रेस पार्टी सोनिया गांधी की दीवानी थी. सत्ता से बाहर रहने का दर्द जब एक बार फिर से पवार को सताने लगा तो एक बार फिर से उन्होंने विचारधारा को दरकिनार कर दिया, शिवसेना से हाथ मिलाया और महाराष्ट्र में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस पार्टी की गठबंधन सरकार बन गयी.
कुछ समय पहले उनके करीबी नेता प्रफ्फुल पटेल का एक बयान आया था कि कैसे कांग्रेस पार्टी पवार के 1996 में प्रधानमंत्री बनने के रास्ते में आ गयी थी. कहने का मतलब है कि पवार बिना पावर जल बिन मछली की तरह हो जाते हैं और प्रधानमंत्री बनने का उनका सपना अभी भी अधूरा है. 80 साल के हो चुके हैं और दिल में राजनीतिक अरमान अभी भी बाकी है. इस परिप्रेक्ष्य में पवार और प्रशांत किशोर के कल की मुलाकात काफी महत्वपूर्ण हो गई है.
नरेंद्र मोदी के मुकाबले कौन होगा?
अगला प्रधानमंत्री कौन बनेगा इससे पहले यह निश्चित करना जरूरी है कि 2024 में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी लगातार तीसरी बार लोकसभा चुनाव ना जीत पाए. बीजेपी को हराने की किसी कोशिश में प्रशांत किशोर की रणनीति की अहम् भूमिका रहेगी, कम से कम गैर बीजेपी दलों का यही मानना है, खास कर जिस तरह से बीजेपी की विजय यात्रा को पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस रोकने में सफल रही. प्रशांत किशोर की रणनीति एक बार फिर से सफल रही. चुनाव जीतने और एक बार फिर से मुख्यमंत्री बनने के बाद ममता बनर्जी ने साफ़ कर दिया है कि अब उनकी नज़र प्रधानमंत्री की कुर्सी पर है. अभी यह तो पता नहीं कि क्या प्रशांत किशोर ममता बनर्जी के कहने पर पवार से मिलने गए थे या फिर यह उनका स्वयं का फैसला था.
2014 में प्रशांत किशोर नरेंद्र मोदी के सलाहकार हुआ करते थे
किसी ज़माने में वह नरेन्द्र मोदी के भी सलाहकार होते थे. 2014 के चुनाव में चाय पर चर्चा समेत कई सफल नीतियां प्रशांत किशोर की ही देन थी. मोदी प्रधानमंत्री बन गए और प्रशांत किशोर मोदी-विरोधी. शायद उन्हें मोदी से कुछ उम्मीद थी जो पूरी नहीं हुई. लगता तो ऐसा ही है कि प्रशांत किशोर पवार से यह पता लगाने गये होंगे कि क्या वह ममता बनर्जी को विपक्ष की तरफ से प्रधानमंत्री पद के दावेदारी की पुष्टि करेंगे? जो पवार को जानते हैं वह समझते हैं कि पवार ने प्रशांत किशोर को बातों में उलझा कर अभी कोई स्पस्ट जवाब नहीं दिया होगा. उनसे इसकी उम्मीद भी नहीं की जानी चाहिए क्योंकि अभी भी पवार के दिल में प्रधानमंत्री बनने की चाहत बरक़रार है.
क्या ममता बनर्जी को पवार बनने देंगे विपक्ष का चेहरा
इसी उद्देश्य से कुछ समय पहले एक चर्चा शुरू हो गयी थी कि सोनिया गांधी यूपीए अध्यक्ष पद को त्याग दें क्योंकि कांग्रेस पार्टी को लगातार जनता चुनावों में नकार रही है. यह सुझाव भी सामने आया था कि सोनिया गांधी की जगह पवार को यूपीए अध्यक्ष पद सौंप दिया जाये, क्योंकि वही सभी गैर-बीजेपी दलों को एक मंच पर इकट्ठा कर सकते हैं. अगर ऐसा हो जाये तो फिर प्रधानमंत्री पद के दावेदार पवार होंगे ना कि ममता बनर्जी.
यानि मोदी को अगले चुनाव में विपक्ष की तरफ से चुनौती कौन देगा- पवार या ममता बनर्जी, बस यही तय होना है. और यह स्थिति सोनिया गांधी और कांग्रेस पार्टी के लिए दुखदायी होने वाली है, क्योंकि सोनिया गांधी का अब जीवन में एक ही लक्ष्य है, अपने बेटे राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद की शपथ लेते देखना. अगर ऐसा नहीं होता तो शायद कांग्रेस पार्टी की इतनी दुर्दशा नहीं होती. प्रशांत किशोर शायद पवार और ममता बनर्जी को एक दूसरे के नाम पर मना भी लें, पर क्या वह सोनिया गांधी को भी इस बात के लिए राजी कर पायेंगे कि वह राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने का सपना देखना छोड़ दें? जब तक कांग्रेस पार्टी की कमान गांधी परिवार के हाथों में है, यह संभव नहीं होगा. यानि फिलहाल बीजेपी और मोदी को प्रशांत किशोर की कोशिश से कोई खतरा बनता दिख नहीं रहा है।