भतीजा साबित होगा बरबादी का कारण?
राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप में राज्य में पेश करना शुरू कर दिया था व देखते ही देखते संगठन ‘युवा’ का उन्हें अध्यक्ष बनाया
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। जबूत बनाया। इन इलाको से 13 लोकसभा व 86 विधानसभा की सीटें आती हैं। उनकी मदद से ही 2011 में ममता बनर्जी ने 34 साल पुराना वामपंथियों का राज पश्चिम बंगाल से उखाड़ फेंका था।
इसके साथ ही ममता बनर्जी ने अपने भतीजे अभिषेक बनर्जी को अपने राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप में राज्य में पेश करना शुरू कर दिया था व देखते ही देखते संगठन 'युवा' का उन्हें अध्यक्ष बनाया। चुनाव जीतने के एक माह बाद से ममता बनर्जी ने अभिषेक बनर्जी को युवा टीएमसी का अध्यक्ष बनाने की घोषणा की थी क्योंकि उस समय सुवेंदु अधिकारी युवा इकाई के अध्यक्ष थे व उनकी आयु 41 साल थी। नंदीग्राम में जाना-माना आंदोलन चलाने क कारण सुवेंदु अधिकारी तब तक राज्य के एक जाने माने नेता बन चुके थे व काफी लोकप्रिय हो गए थे।
लगभग उसी समय पार्टी के अन्य बड़े नेता मुकुल राय के यहां सीबीआई ने छापा मारा। इस छापे को लेकर ममता बनर्जी व मुकुल राय के बीच में झड़प भी हुई। हालांकि तकरार की वजह अभिषेक बनर्जी का पार्टी पर बढ़ता प्रभाव था। बाद में मुकुल राय भाजपा में चले गए। अपने भतीजे को चर्चा में लाने के लिए ममता बनर्जी उनसे अक्सर नरेंद्र मोदी व अमित शाह पर हमले करवाती थी। उन्होंने नरेंद्र मोदी को चुनौती देते हुए कहा था कि उनकी इतनी हिम्मत ही नहीं है कि वे उनके खिलाफ कार्रवाई करने की हिम्मत जुटा सके।
पहली बार चुनाव जीतने के बाद ही उनका मुंहफट बन जाना था। व पार्टी व सरकार में हस्तक्षेप काफी बढ़ गया। इसका परिणाम यह हुआ कि सुवेंदु अधिकारी ममता बनर्जी के कार्यक्रमों से दूरी बनाए रखकर अपनी नाराजगी के संकेत देने लगे। जब 2019 के लोकसभा चुनाव आए तो टीएमसी पर अभिषेक बनर्जी की पकड़ और ज्यादा बढ़ गई व सुवेंदु अधिकारी हाशिए पर आ गए। जब ममता बनर्जी ने 2021 के विधानसभा चुनावो के लिए 21 सदस्यीय पैनल घोषित किया तो उसमें सुवेंदु को तो शामिल किया गया पर पैनल के गठन की सूचना अभिषेक बनर्जी के हस्ताक्षरो से जारी की गई।
इसके साथ ही सुवेंदु अधिकारी के प्रमुख वाले इलाके में उनसे पूछे बिना भारी फेरबदल कर दी गई। जबकि सुवेंदु अधिकारी के पिता शिशिर अधिकारी उस इलाके के प्रमुख व कर्ताधर्ता बनाए गए थे। मगर उनसे कोई बात तक नहीं की गई। इस बीच अभिषेक बनर्जी का प्रशांत किशोर से चुनाव के बारे में सलाह लेना मानों घी में तेल था। ममता बनर्जी ने सुवेंदु अधिकारी की नाराजगी को भांपते हुए उन्हें मनाने के लिए प्रशांत किशोर को उनके घर भेजा। मगर बात नहीं नहीं। 31 अक्तूबर को पुरूलिया की एक रैली में सुवेंदु अधिकारी ने अभिषेक बनर्जी पर ताना मारते हुए कहा कि न तो मैं पैराशुट से आया हूं और न ही लिफ्ट के जरिए राजनीति में उतरा हूं। मैं तो संघर्ष करते हुए राजनीति में आया हूं।
अभिषेक बनर्जी ने कुछ समय बाद उनके इलाके पूर्व मेदिनीपुर में इसका जवाब देते हुए कहा कि ममता बनर्जी ने तृणमूल कांग्रेस का जनाधार तैयार किया है किसी में इतनी हिम्मत ही नहीं है कि वह वहां पैराशुट या लिफ्ट से उतर सके। ममता बनर्जी ने सुवेंदु अधिकारी को अहमियत देना जारी रखा व कई कांग्रेसियों के टीएमसी में लेकर आए मगर 2019 के आम चुनावों के बाद हालात कुछ बदले। इस चुनाव में भाजपा की उपलब्धि काफी अच्छी रही। उसने वहां की 42 में से 18 सीटे जीती जबकि टीएमसी 22 सीटो पर जीती। कांग्रेस को दो सीटे मिली। जबकि वामपंथियों का सूपड़ा ही साफ हो गया।
ध्यान रहे 2014 के चुनाव में भाजपा महज दो व टीएमसी ने 34 सीटे जीती थी। भाजपा ने जो 13 सीटे हारी उनमें से नौ सुवेंदु अधिकारी के प्रभाव वाले इलाके में आती थी व भाजपा के प्रदेश प्रमुख दिलीप घोष सुवेंदु अधिकारी के इलाके मेदिनीपुर से चुनाव जीत गए थे। दो सीटे कांग्रेस को मिली। फिर ममता बनर्जी ने 2021 के विधानसभा चुनाव जीतने के लिए पीके रणनीति बनाने को कहा। उन्होंने पीके से संपर्क साधा। वे भी इन दिनों बिहार विधानसभा चुनावों में भाजपा जद(यू) की सफलता से काफी बौखला हुए बताते है। पीके की टीम के कहने पर अभिषेक बनर्जी ने संगठन में काफी बदलाव किया है जिसे सुवेंदु अधिकारी व तमाम अन्य नेताओं ने पसंद नहीं किया। कोविड काल के दौरान मैंने अपने कई करीबियो व जानकारो को खोया कई बार मुझे डर लगता है कि कहीं अभिषेक बनर्जी टीएमसी के लिए कोविड न साबित हो जाए।