क्या इमरान खान आने वाले चुनाव में तालिबान की मदद से सरकार बनाएंगे?
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान अफगानिस्तान के लिए दुनिया में सबसे मुखर नेता हैं
ज्योतिर्मय रॉय.
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान (Pakistan PM Imran Khan) अफगानिस्तान (Afghanistan) के लिए दुनिया में सबसे मुखर नेता हैं. इमरान खान नियमित रूप से अफगानिस्तान को लेकर बयानबाजी करते रहते हैं. उनकी बातें सुनकर कोई भी शख्स इमरान खान को अफगानिस्तान का विदेश मंत्री ही समझेगा. इमरान तालिबान (Taliban) का समर्थन हासिल करने की पैरवी कर रहे हैं. लेकिन तालिबान के चरित्र में सुधार और पाकिस्तान की नियत को लेकर इमरान के प्रति दुनिया की सहानुभूति बहुत कम है. वह तालिबान की राजनीतिक कार्रवाइयों को सही ठहराने की कोशिश कर रहे हैं. इससे न तो अफ़ग़ानिस्तान में स्थायी सरकार की स्थापना मे कोई अंतर्राष्ट्रीय प्रोत्साहन देखने को मिला है और न ही अन्य देशों को अफगान राष्ट्र-निर्माण की प्रक्रिया में शामिल होने में मदद मिली है.
कुछ सीमांत इलाकों को छोड़कर काबुल समेत पूरा देश करीब पांच महीने से तालिबान के कब्जे में है. लेकिन पाकिस्तान के अलावा कोई भी देश उनके पक्ष में मजबूती से खड़ा नहीं हुआ है. ईरान और पाकिस्तान के साथ अफगानिस्तान का बहुत कम व्यापार होता है, इससे यहां के नागरिकों के आंतरिक जीवन और अंतर्राष्ट्रीय संचार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. अफगानिस्तान में इस समय खाद्यान्न का बहुत बड़ा संकट चल रहा है. रोजगार बाजार में आत्यधिक मंदी छाया हुआ है. तालिबान ने कानून और व्यवस्था बनाए रखने में महत्वपूर्ण प्रगति की है. लेकिन नागरिक प्रशासन प्रबंधन में अभी भी दक्षता का अभाव है. अफगानिस्तान में मौजूदा स्थिति को देखते हुए, निवेश करने वाले देशों के विश्वास की कमी के कारण अफगानिस्तान में विदेशी निवेश संकट गहरा गया है. इस अनिश्चितता को लेकर पाकिस्तान सरकार सबसे ज्यादा चिंतित नजर आ रही है.
पाकिस्तानी सरकार का मानना है कि अफगानिस्तान में मौजूदा संकट अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की उदासीनता के कारण है. इमरान खान ने यह भी कहा कि मानवीय आपदा की स्थिति में अफगानिस्तान से आतंकवादी गतिविधियां फिर से दुनिया भर में बढ़ सकती हैं. वह अफगानिस्तान के लिए मदद मांगने के नाम पर विश्व समुदाय के समक्ष डर का माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं. तालिबान की मदद के लिए पाकिस्तान आतंकवाद के नाम पर दुनिया को ब्लैकमेल करने की कोशिश कर रहा है. इमरान खान के इस बयान ने तालिबान की सुधरती छवि को और खराब कर दिया है. दुनिया पहले ही पाकिस्तान को आतंकियों की शरणस्थली मानती है, इमरान ने इस बात का ही पुष्टि की है.
इस्लामिक राष्ट्र भी पाकिस्तान और अफगानिस्तान के मामले मे फूक-फूक कर कदम रख रहे हैं
पाकिस्तान के प्रयासों के चलते 19 दिसंबर, 2022 को इस्लामाबाद में ओआईसी (OIC) के विदेश मंत्रियों का विशेष सम्मेलन हुआ, लेकिन उसके अनुसार परिणाम नहीं मिला. इस्लामिक राष्ट्र भी पाकिस्तान और अफगानिस्तान के मामले मे फूक-फूक कर कदम रख रहे हैं. वे दोस्ती दिखाना चाहते हैं, लेकिन उन्हें पाकिस्तान और अफगानिस्तान के आकाओं पर भरोसा नहीं है. पाकिस्तान द्वारा अकेले अफगानिस्तान पर केंद्रित ओआईसी की विशेष सम्मेलन आयोजित करने की क्षमता को पाकिस्तान के लिए एक कूटनीतिक सफलता के रूप में देखा जा रहा है. लेकिन ओआईसी यमन या चीन में उइगर मुसलमानों पर हो रहे अत्याचारों पर चुप है. मुस्लिम राष्ट्र भी मुसलमानों और मुसलमानों के बीच के अंतर को स्वीकार करता है.
57 सदस्यीय ओआईसी के किसी भी सदस्य ने अभी तक तालिबान को मान्यता नहीं दी. इसके बाद भी तालिबान नेता आमिर खान मुत्ताकी ने इस सम्मेलन में अफगानिस्तान का प्रतिनिधित्व किया. इसका श्रेय इस्लामाबाद को जाता है. हालांकि, OIC अफगानिस्तान के लोगों की दुर्दशा को कम करने के लिए कोई तत्काल कदम नहीं उठा पाया है. सऊदी अरब ने कहा है कि वह अफगानिस्तान के लिए मानवीय सहायता कोष स्थापित करेगा. अन्य देशों ने सऊदी अरब जैसी स्पष्ट प्रतिबद्धता अभी तक नहीं दिखाई है. सऊदी अरब की वित्तीय सहायता ने तालिबान के उदय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
तालिबान हुकूमत में प्रेस की स्वतंत्रता खतरे में है
पाकिस्तान को पहले अफगानिस्तान में तालिबान शासन की आदतों को बदलने में भूमिका निभानी चाहिए. तालिबान शासन के कारण अफगानिस्तान में खाद्य संकट और वित्तीय संकट को अलग-थलग करके नहीं देखा जा सकता है. जैसे-जैसे समय बीत रहा है, तालिबान को लेकर पाकिस्तान और विश्व के अन्य राष्ट्र के बीच की खाई चौड़ी होती जा रही है, खासकर अमेरिका और यूरोप के साथ. हालांकि इमरान की इस आलोचना का चीन समेत कई अन्य देशों ने भी समर्थन किया है कि जिस तरह से अमेरिका ने अफगानिस्तान के संसाधनों को रोक रखा है वह अन्यायपूर्ण है.
खाद्य संकट के साथ सुशासन और प्रेस की स्वतंत्रता की कमी अफगानिस्तान के विकास पथ में एक बड़ी बाधा है. तालिबान के सत्ता में आते ही देश के आधे से ज्यादा मीडिया आउटलेट बंद कर दिए गए. अधिकांश पत्रकार देश छोड़कर जा चुके हैं. क्षेत्र में खाद्य संकट की विस्तृत खबर मिलना भी गैर सरकारी संगठनों के लिए एक बड़ी समस्या है. काबुल में हज़ारों, ताजिकों, उज़्बेकों आदि की समावेशी सरकार नहीं होने के कारण लंबे समय से काबुल में राजनीतिक और प्रशासनिक स्थिरता नहीं आ रही है. तालिबान ने जिस तरह से महिलाओं की शिक्षा और महिलाओं के लिए रोजगार के अवसरों में कटौती की है, वह भी आधी आबादी की आजीविका के लिए हानिकारक रहा है.
अपनी गद्दी बचाने के लिए तालिबान का पक्ष ले रहे हैं इमरान
सवाल हे, तालिबान को बिना शर्त समर्थन के बदले में पाकिस्तान को क्या मिल रहा है? यह जानते हुए कि भूख का उन्मूलन, सुशासन प्रक्रिया से जुड़ा हुआ है, इमरान खान अफगानिस्तान में निवेश करने पर जोर क्यों दे रहे हैं? पाकिस्तान के हित में तालिबान को बिना शर्त समर्थन देने की इमरान खान की नीति कितनी उचित है? इमरान सरकार अफगानिस्तान में मौजूदा खाद्य संकट के राजनीतिक परिणामों से अच्छी तरह वाकिफ है. इस संकट को अगर समय रहते नहीं निपटा जा सका तो अराजकता फैल जाएगी, और उसकी आंच पाकिस्तान तक पहुचने में देर नहीं लगेगी. इमरान खान यह भी जानते हैं कि अफगानिस्तान के बाद तालिबान की नजर पाकिस्तान पर है. पाकिस्तान में तहरीक-ए-तालिबान (TTP) पहले ही पाकिस्तान सरकार के साथ युद्धविराम समाप्त कर चुका है और यह अफगान-तालिबान के परामर्श से से हुआ है. टीटीपी का निर्णय रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है. अफगानिस्तान में तालिबान की अपनी वैचारिक सरकार होने के बाद, तालिबान अब पाकिस्तान में अपना विस्तार करने के लिए समय की तलाश कर रहा है.
हाल ही में सीमा पर कंटीले तार लगाने को लेकर पाकिस्तानी सेना अफगान-तालिबान आपस मे भिड़ गए. पश्तून तालिबान के लिए इस बात को स्वीकार करना मुश्किल है कि पाकिस्तानी सरकार पश्तून इलाके से होते हुए दोनों देशों के बीच 2,600 किलोमीटर लंबी कंटीली तार खड़ी कर रही है. यह 'पख़्तूनिस्तान' की पुरानी अवधारणा को खतरे में डालना है. पाकिस्तान के बॉर्डर प्रोजेक्ट पर फायरिंग पर अफगान-तालिबान ने अपना ऐतराज जताया है. तालिबान नियंत्रित रक्षा मंत्रालय पहले ही पाकिस्तान की कांटेदार तार निर्माण परियोजना को "अवैध" बता चुका है. ये पाकिस्तान के लिए बुरे संकेत हैं.
पाकिस्तान के आम चुनाव में तालिबान का बराबर का दबदबा रहेगा
पाकिस्तानी सैन्य अभियानों के दौरान, टीटीपी आतंकवादी नियमित रूप से खुली सीमाओं के माध्यम से पाकिस्तान में प्रवेश करने में सक्षम होते हैं. एक बार कांटेदार तार बन जाने के बाद यह इतना आसान नहीं होगा. सीमा पर कांटेदार तार लगाने का एक अन्य कारण अफगानिस्तान में खाद्य संकट से उत्पन्न अफगान शरणार्थियों को पाकिस्तान में प्रवेश करने से रोकना है. इससे पाकिस्तान की चरमराती अर्थव्यवस्था के टूटने की संभावना है.
पाकिस्तान में 2023 के अंत में आम चुनाव है. इमरान खान और उनके मंत्रियों पर समय-समय पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं. हाल ही मे, पाकिस्तान में सत्ता पर काबिज इमरान खान की पार्टी पर चंदा चोरी को लेकर बड़ा आरोप लगा है. पाक पीएम इमरान खान की पार्टी तकरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) पर आरोप है कि पार्टी को विदेशी नागरिकों और कंपनियों से जो पैसे मिले उसकी पूरी जानकारी चुनाव आयोग को नहीं दी गई. भ्रष्टाचार के आरोप में जर्जर, इमरान पर अंदरूनी राजनीति का दबाव है. इस बार इमरान के लिए आम चुनाव जीतना आसान नहीं होगा.
इस बार पाकिस्तान के आम चुनाव में तालिबान का बराबर का दबदबा रहेगा. यह स्पष्ट है कि जहां अफगानिस्तान में तालिबान को सत्ता में बनाए रखने की जिम्मेदारी इमरान खान की है, वहीं उन शासकों को वफादार बनाए रखने की चुनौती भी उनके सामने है. आने वाले दिन पाकिस्तान के लिए चुनौतीपूर्ण होंगे. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इमरान तालिबान के समर्थन से सरकार बनाएंगे?