देश के अगले सीडीएस के नाम की घोषणा में इतनी देरी क्यों?

नियुक्ति में देरी से मामले का राजनीतिकरण शुरू हो जाता है

Update: 2021-12-15 06:29 GMT
बिक्रम वोहरा।
जॉन एफ केनेडी की हत्या के महज चंद घंटों बाद राष्ट्रपति पद की शपथ लेने वाले लिंडन जॉनसन के पास खड़ी रक्तरंजित जैकी केनेडी की तस्वीर अब तक की सबसे मार्मिक तस्वीरों में एक मानी जाती है. कमांड पोस्ट पर तत्काल प्रभाव से उत्तराधिकारी की तैनाती बेहद जरूरी होती है, क्योंकि ऐसे पदों को खाली नहीं छोड़ा जा सकता है. यही वजह है कि उपराष्ट्रपति को तुरंत राष्ट्रपति बनाया जाता है. क्योंकि निरंतरता अत्यावश्यक है.
दो साल पहले जब चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ के पद की घोषणा की गई थी और जनरल रावत को इस पद पर नियुक्त किया गया. (यहां तक कि यह सम्मान फील्ड मार्शल एसएचएफजे मानेकशॉ और करियप्पा को भी नहीं मिला.) उस वक्त यह पद बेहद जरूरी बताया गया, जिससे तीन सैन्य बलों को बेहतर तरीके से कोऑर्डिनेट किया जा सके और सैन्य नीतियां एक ही जगह तय हो सके. हालांकि, उस वक्त काफी लोग ऐसे भी थे, जिन्होंने इस पद को बनाने के फैसले को बेमतलब करार दिया. क्योंकि इसके साथ पांचवां स्टार नहीं प्राप्त होता था. लेकिन उन लोगों को चुप होना पड़ा क्योंकि यह एक नया प्रयोग था और वास्तव में बड़े बदलाव की क्षमता रखता था.
नियुक्ति में देरी से मामले का राजनीतिकरण शुरू हो जाता है
अब अगर ऐसा है तो जनरल रावत के उत्तराधिकारी की घोषणा को लेकर इतना सस्पेंस क्यों है? दरअसल, सशस्त्र बलों में यह परंपरा है कि पदासीन अधिकारी समारोह के दौरान अपने उत्तराधिकारी को कार्यभार सौंपते हैं. उस दौरान दोनों एक-दूसरे को सलामी देते हैं और हाथ मिलाते हैं. ऐसा कमांड के सभी स्तरों पर होता है. यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें कभी कोई रुकावट नहीं आती और कमांड पोस्ट को खाली नहीं छोड़ा जाता है.
नतीजतन, जब हम हेलीकॉप्टर त्रासदी की गहराई और सीडीएस के निधन से हुए गंभीर नुकसान को समझते हैं तो उनके उत्तराधिकारी की नियुक्ति को समझना भी बेहद जरूरी है. यह सिर्फ सहज आधिकारिक परिवर्तन का सवाल नहीं है, क्योंकि नियुक्ति में देरी से मामले का राजनीतिकरण शुरू हो जाता है. ऐसी बात पर सस्पेंस खड़ा हो जाता है, जिस पर कतई नहीं होना चाहिए. इसके अलावा थ्री और फोर स्टार अफसरों के बीच तनाव बढ़ जाता है. जब तीन सेना प्रमुखों में से कोई अभी सेवानिवृत नहीं हो रहे हैं तो जाहिर तौर पर इन तीनों में से ही कोई एक अगला सीडीएस होना चाहिए. लेकिन इस बात को इतना लंबा क्यों खींचा जा रहा है?
उत्तराधिकारी के लिए ठीक से योजना नहीं बनाई गई
देरी से साफ है कि जब इस पद के लिए नियुक्ति की गई तब इसके उत्तराधिकारी के बारे में ठीक से योजना नहीं बनाई गई थी. आखिरकार, जनरल रावत को भी एक न एक दिन रिटायर होना ही था. उनके कार्यकाल के दो साल पूरे हो गए थे और उन्हें अपना कार्यभार किसी और को सौंपना था. फिर स्पष्ट है कि इस बारे में कोई योजना मौजूद ही नहीं है. यह बेहद अफसोस की बात है, क्योंकि इससे न सिर्फ सीडीएस के पद का मान घटता है बल्कि व्यवस्था पर भी सवाल खड़े करता है कि क्या वाकई ये इतना अहम पद है या किसी को सर्विस में बनाए रखने के लिए इसे क्रिएट किया गया था, शासन से वफादारी के लिए वर्दी के रूप में इनाम दिया गया था.
सेना, नौसेना और वायु सेना के प्रमुखों की नियुक्ति को लेकर होने वाला तनाव अच्छी बात नहीं है. जिसमें मिलिट्री कोड के खिलाफ जाकर थ्री स्टार दावेदार ऑफिसर्स इसके लिए कैंपेनिंग करते हैं. वे किस राज्य से आते हैं, उनके राजनीतिक विचार कैसे हैं, सत्ता के साथ उनका तालमेल कैसा है और वे किन अधिकारियों को पीछे छोड़ते हुए वे इस पद तक पहुंच रहे हैं, अमूमन ये सभी बातें ध्यान में रखी जाती है. हालांकि ये बात समझ से परे है कि किसी थ्री स्टार अधिकारी के सबसे सीनियर होने के बावजूद किसी दूसरे थ्री स्टार ऑफिसर को चार सितारों से नवाजा जाए. लेकिन यही अब परिपाटी बन चुका है. जिस पद तक पहुंचने के लिए किसी को असाधारण होना पड़ता है तो फिर उसे उस रैंक से वंचित क्यों रखा जाए?
सेना प्रमुख जनरल मनोज नरवणे मजबूत दावेदार
ऐसा लगता है कि सीडीएस के खाली पद के साथ भी ऐसा ही हो रहा है. जिससे ये संदेह पैदा हो सकता है कि ये नौकरशाह और राजनेताओं का वो खेल है जिससे वो अपने शक्तिशाली होने का संदेश देना चाहते हैं. जब सेना प्रमुख जनरल मनोज नरवणे स्पष्ट रूप से इस पद के लिए सबसे बड़े दावेदार हैं तो उन्हें इतना इंतजार क्यों कराया जाए? नियम के मुताबिक, उन्हें उसी दिन ही इस पद पर नियुक्त किया जाना चाहिए था.
अमेरिका में आर्मी कमांड पॉलिसी है. आमतौर पर सामान्य हालात में टेकओवर की घोषणा पहले ही कर दी जाती है, जिससे उचित रूप से कार्यभार सौंपा जा सके. भारतीय सिस्टम भी आधिकारिक रूप से ऐसा ही है, लेकिन यहां किसी भी ऐलान को अंतिम क्षणों तक जारी न करने की प्रक्रिया है, जिससे इस तरह के बदलाव का असर कम हो जाता है.
यूनाइटेड किंगडम में कमांडर इन चीफ का पद आखिरी बार 1745 में खाली रखा गया था. जब ड्यूक ऑफ कंबरलैंड प्रिंस विलियम ड्यूक ने फील्ड मार्शल जॉर्ज वेड की जगह ली थी.
हमारा सशस्त्र बल राष्ट्रीय एक गौरवशाली सेवा है. इसकी मौलिकता बरकरार रखने के लिए इस तरह की सभी नियुक्तियों में सशस्त्र बलों के मनोबल को ध्यान में रखना चाहिए. जिससे इसकी गरिमा बरकरार रहे. इस नियुक्ति में देर करने की कोई वजह नहीं है. रक्षा मंत्रालय आखिर किसका इंतजार कर रहा है? इस तरह की भयानक परिस्थितियों में हालात की मांग तत्काल प्रभाव से नियुक्ति की होती है, जिससे साफ-साफ संदेश जाए कि मोर्चे पर हर वक्त कोई न कोई डटा हुआ है.
(डिस्क्लेमर: लेखक एक वरिष्ठ पत्रकार हैं. आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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