क्यों राहुल गांधी अंधेर नगरी के चौपट राजा कहलाने के लिए आमदा हैं?

भारतीय जनता पार्टी यूं ही नहीं राहुल गांधी को कांग्रेस पार्टी का युवराज कहती है.

Update: 2021-10-07 06:40 GMT

अजय झा.

भारतीय जनता पार्टी (BJP) यूं ही नहीं राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को कांग्रेस पार्टी (Congress Party) का युवराज कहती है. एक बड़े खानदान के वारिस हैं. पिता राजीव गांधी, दादी इंदिरा गांधी और परनाना जवाहरलाल नेहरु देश के प्रधानमंत्री रह चुके हैं. राहुल गांधी की परवरिश एक राजकुमार की तरह ही हुई और उन्हें आज भी अहसास दिलाया जाता है कि उनका जन्म ही देश पर राज करने के लिए हुआ है. पुराने ज़माने में जब राजा खुश होते थे तो वह अपना खज़ाना खोल देते थे. हालांकि 2019 के आमचुनाव में राहुल गांधी ने अपनी स्वयं की संपत्ति 16 करोड़ और सालाना आमदनी 1 करोड़ घोषित की थी, पर माना जाता है कि उनकी संपत्ति इससे कई गुना अधिक है. यानि राहुल गांधी धनाढ्य हैं. कांग्रेस पार्टी का खज़ाना खाली है और राजनीति करने के लिए वह स्वयं का पैसा खर्च करने से रहे, पर दो कांग्रेस शासित राज्यों का खज़ाना कल उन्होंने अपने और पार्टी के प्रमोशन में खुलवा ही दिया.


राहुल गांधी कल उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ पहुंचे. उनके साथ उनके दो सिपहसालार के.सी. वेणुगोपाल और रणदीप सिंह सुरजेवाला थे और साथ में थे छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल तथा पंजाब के नवनियुक्त मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी थे. तीसरे कांग्रेस शासित राज्य राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत वहां हो नहीं सकते थे क्योंकि राहुल गांधी और गहलोत की आपस में बनती नहीं है. वेणुगोपाल और सुरजेवाला पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव सिर्फ इस लिए हैं क्योंकि दोनों को राहुल गांधी के अति-करीबियों में गिना जाता है.

मुआवजे में बीजेपी से आगे रहना चाहते हैं राहुल गांधी?
बघेल छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री तब तक ही हैं जब तक राहुल गांधी की इच्छा है और चन्नी की पिछले महीने लॉटरी निकल आई जब राहुल गांधी के इशारे पर अमरिंदर सिंह को पंजाब के मुख्यमंत्री पद से हटना पड़ा और चन्नी अप्रत्याशित रूप से मुख्यमंत्री बन गए. यानि दोनों मुख्यमंत्री, मुख्यमंत्री ना हो कर कल राहुल गांधी के खजांची दिख रहे थे. उन्हें जो आदेश दिया उसका पालन हुआ. चन्नी और बघेल ने उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में कल लखीमपुर खीरी में पिछले रविवार को हिंसक वारदात में मारे गए नौ लोगों के परिवार को 50-50 लाख रुपये देने की घोषणा की.

उत्तर प्रदेश सरकार ने सोमवार को मृतकों के परिवार को 45 लाख रुपयों के मुआवजे की घोषणा की थी. चूंकि बीजेपी शासित उत्तर प्रदेश में अगले वर्ष की शुरुआत में विधानसभा चुनाव होना है, इस लिए राहुल गांधी ने पंजाब और छत्तीसगढ़ का खज़ाना उत्तर प्रदेश में खुलवा दिया. चुनाव हैं तो राहुल गांधी को बीजेपी से एक कदम आगे रहना ही है.

क्या सुरक्षाबलों के जवानों की कीमत राहुल गांधी की नज़र में कम है?
गौरतलब है कि सुरक्षाबल के जवान जब नक्सलियों के हाथों मारे जाते हैं तो छत्तीसगढ़ सरकार उनके परिवार को 20 लाख रुपये का मुआवजा देती है, जबकि पंजाब सरकार सुरक्षाकर्मियों के परिवार को 10 लाख रुपयों का मुआवजा देती है. सवाल यह है कि राहुल गांधी की नज़रों में सुरक्षाकर्मियों के जान की कीमत लखीमपुर खीरी के आन्दोलनकारी किसानों से इतनी कम क्यों है, क्या इसलिए कि सुरक्षाकर्मी देश या राज्य की सुरक्षा के लिए तैनात होते हैं और उनमें से बहुत कम ही वोट दे पाते हैं? यानि जो वोटर नहीं उसकी जान की कीमत कम, जो देश के लिए मरे उसकी जान की कीमत कम और जो किसान कानून और सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना करके सड़क जाम कर के प्रदर्शन करे उनके जान की कीमत ज्यादा? इसे ही शायद कहते हैं अंधेर नगरी चौपट राजा!

क्या कभी किसी ने सुना है कि अगर किसी अन्य राज्य का सुरक्षाकर्मी देश की सेवा में अपने जान की आहुति देता है तो छत्तीसगढ़ या पंजाब की सरकार उनके परिवार को मुआवजा देती है? इसका सीधा अर्थ यही है कि राहुल गांधी की नज़र सिर्फ प्रधानमंत्री की कुर्सी पर है, 2024 के चुनाव जीतने का उनका सपना तब ही सच होगा अगर देश के किसान कांग्रेस पार्टी को वोट दें. लखीमपुर खीरी के मृतक किसानों से राहुल गांधी की संवेदना ना हो कर वह वहां वोट की राजनीति करने गए.

मुआवजे की राजनीति कर क्या राहुल गांधी अपना अपरिपक्व नेतृत्व दिखा रहे हैं?
जब नेतृत्व अपरिपक्व होता है तो उसका नतीजा यही होता है जो आज कांग्रेस पार्टी का है. राहुल गांधी ने एक ऐसी परंपरा की शुरुआत करवाई है जिससे देश और समाज में फूट पड़ेगा. 4.5 करोड़ की धनराशि किसी राज्य सरकार के लिए ज्यादा नहीं है, चाहे वह कंगाल हो चुका पंजाब ही क्यों ना हो. जिसके खजाने में अक्सर सरकारी कर्मचारियों को वेतन देने तक का भी पैसा नहीं होता है. अब अगर छत्तीसगढ़ या पंजाब में किसी व्यक्ति की किसी हादसे या प्रदर्शन में मृत्यु होगी तो उसका परिवार राज्य सरकार से 50 लाख रुपयों के मुआवजे की मांग नहीं करेगा?

राहुल गांधी ने तो वाहवाही लूट ली, कम से कम उनकी तमन्ना यो यही थी. पर इस घोषणा का दूरगामी और दुखद परिणाम होगा जिसके कारण भविष्य में राज्य सरकारों की मुसीबतें बढ़ जाएंगी. राहुल गांधी के उदय के बाद कांग्रेस पार्टी की सोच यही हो गयी है कि वोटर को लुभाने का सबसे अच्छा और सरल तरीका पैसे लुटाना है.

राहुल गांधी को अपने खज़ाना खोल राजनीति पर अंकुश लगाने की जरूरत है
राज्य चुनावों में किसानों का क़र्ज़ माफ, बिजली के लंबित बिल का भुगतान नहीं करने की आज़ादी, कोरोना में सभी विस्थापित लोगों को आर्थिक सहायता की मांग, 2019 के आमचुनाव में न्याय यानि न्यूनतम आय योजना की घोषणा, जिसके तहत सरकार बनने के बाद कांग्रेस पार्टी ने देश के 20 प्रतिशत गरीब परिवारों को हर साल 72,000 रूपये सालाना आर्थिक मदद की घोषणा की है. लिस्ट काफी लम्बी है. यह अलग बात है कि इसके बावजूद भी राहुल गांधी को देश के प्रधानमंत्री के रूप में जनता ने अस्वीकार कर दिया. देश हित और कांग्रेस हित में अच्छा यही होगा कि राहुल गांधी खज़ाना खोलने की राजनीति पर अंकुश लगाएं, वर्ना अगर उनका प्रधानमंत्री बनने का सपना कभी पूरा हो गया तो देश कंगाल जरूर हो जाएगा.
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