ओमप्रकाश चौटाला चुनाव लड़ने के लिए इतनी जल्दबाजी क्यों दिखा रहे हैं?

उस समय उनकी उम्र 91 साल से सिर्फ तीन महीने ही कम होगी

Update: 2021-08-01 08:04 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | सत्ता की भूख इतनी आसानी से नहीं मिटती. इंडियन नेशनल लोकदल (INLD) के अध्यक्ष ओमप्रकाश चौटाला (Om Prakash Chautala) इसके जीते-जागते प्रमाण हैं. उम्र 87 साल, 1966 में पंजाब से अलग हो कर पृथक राज्य गठित हुए हरियाणा में वह सर्वाधिक पांच बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं, हालांकि सत्ता में बिताये समय के अनुसार भजन लाल (11 साल 298 दिन) और बंसीलाल (11 साल 282 दिन) के मुकाबले चौटाला मात्र 6 साल 49 दिन ही मुख्यमंत्री पद पर रह सके. पद पर बिताये समय अनुसार चौटाला अब तक हरियाणा में बने 10 मुख्यमंत्रियों की लिस्ट में पांचवे स्थान पर आते हैं. और शायद यही कारण है कि उम्र के इस पड़ाव में भी उनकी सत्ता की भूख बनी हुई है और वह एक बार फिर से मुख्यमंत्री बनने का सपना देखने लगे हैं. उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि जब हरियाणा में अगला विधानसभा चुनाव 2024 में होगा तो उस समय उनकी उम्र 91 साल से सिर्फ तीन महीने ही कम होगी.

जवाहरलाल नेहरु के ज़माने के कामराज योजना से नरेन्द्र मोदी द्वारा जारी किया गया नियम कि उनकी भारतीय जनता पार्टी में 75 वर्ष से अधिक उम्र के नेताओं को पार्टी या सरकार में जगह नहीं मिलेगी, नेताओं के एक उम्र के बाद रिटायर करने की बात की जाती रही है. मगर भारतीय संविधान में ऐसा कोई भी प्रावधान नहीं है जिसके तहत चौटाला को उनकी अधिक उम्र के कारण कोई चुनाव लड़ने से रोक सके.

चाह कर भी चुनाव नहीं लड़ सकते चौटाला

हालांकि वह चाह कर भी अभी चुनाव नहीं लड़ सकते. कारण है कि जुलाई के महीने में ही वह आठ साल की जेल की सजा काट कर छूटे हैं. 2013 में प्राथमिक शिक्षक घोटाले में चौटाला और उनके बड़े बेटे अजय सिंह चौटाला को 10 वर्ष की सजा सुनाई गयी थी. अधिक उम्र और अपाहिज होने के आधार पर दी गयी उनकी अर्जी मंज़ूर हुई और वह जेल से दो साल पहले ही रिहा हो गए. पर चौटाला और चुनाव के बीच एक कानूनी पेंच फंसा है. सजायाफ्ता नेताओं के चुनाव लड़ने पर कुछ पाबंदियां हैं जिसके तहत चौटाला, लालू प्रसाद यादव, शशिकला जैसे नेता 10 वर्षों तक चुनाव नहीं लड़ सकते, इसमें जेल में बितायी गयी अवधि भी शामिल है. यानि चौटाला 2023 के बाद चुनाव लड़ सकते हैं. पर समस्या है कि चौटाला अभी चुनाव लड़ना चाहते हैं.

उनके छोटे बेटे अभय सिंह चौटाला ने इस साल के शुरुआत में किसान आन्दोलन के समर्थन में हरियाणा विधानसभा से इस्तीफा दे दिया था. वह सिरसा जिले के ऐलनाबाद से विधायक थे और वह INLD के एकलौते विधायक थे. नियमानुसार उपचुनाव छः महीने में हो जाना चाहिए था, पर कोरोना संक्रमण के मद्देनजर चुनाव आयोग अभी चुनाव कराने का रिस्क नहीं लेना चाहती, वह भी तब जबकि मद्रास हाई कोर्ट से उसे पांच राज्यों में करोना महामारी के मध्य चुनाव कराने के लिए फटकार लगाई जा चुकी हो.

चुनाव आयोग फिलहाल उपचुनाव कराने के मूड में नहीं है

2 जुलाई को चौटाला विधिवत जेल से अपनी सजा काट कर छुट गए और अब अभय सिंह की जगह वह स्वयं ऐलनाबाद से उपचुनाव लड़ना चाहते हैं. उपचुनाव कब होगा इस पर चुनाव आयोग ने चुप्पी साध रखी है. उतराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को 4 जुलाई को इसलिए इस्तीफा देना पड़ा कि वह छः महीने के भीतर विधायक नहीं बन सकते थे. वह सांसद थे, प्रदेश के विधायक नहीं. पर चुनाव आयोग अभी उपचुनाव नहीं कराना चाहता.

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के सिर पर भी तलवार लटकी हुई है. उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने राज्य विधानसभा चुनाव में शानदार विजय हासिल की पर ममता बनर्जी अपना चुनाव हार गईं. वह वर्तमान में विधायक नहीं है और अगर 5 नवम्बर के पहले वह विधायक नहीं चुनी गयीं तो उनकी मुख्यमंत्री की कुर्सी स्वतः चली जाएगी. संकेत यही है कि चुनाव आयोग विभिन्न राज्यों में उपचुनाव अगले वर्ष के शुरूआती महीनों में होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के साथ ही कराएगा.

बहरहाल, चौटाला ने चुनाव आयोग को आवेदन दे दिया है, जिसमें उन्होने उनके चुनाव नहीं लड़ने पर लगे प्रतिबन्ध पर सवाल उठाये हैं. चौटाला का कहना है कि अगर चुनाव आयोग ने उनपर लगे प्रतिबन्ध को नहीं हटाया तो वह उसे न्यायालय में चुनौती देंगे.

चौटाला को चुनाव लड़ने की जल्दी क्यों है?

सवाल है कि आखिर चौटाला को चुनाव लड़ने की इतनी जल्दबाजी क्यों हैं? क्यों वह अभय सिंह को घर बैठा कर खुद विधानसभा में जाना चाहते हैं जबकि वह चुनाव होने, चुनाव लड़ने और चुनाव जीतने की स्थिति में भी अपनी पार्टी के एकलौते विधायक ही होंगे. कारण हैं INLD की दुर्दशा.

चौटाला को लगता है कि अगर वह चुनाव लड़ कर विधानसभा में प्रवेश करें तो वह INLD को फिर से जिंदा कर सकते हैं. ऐसा भी नहीं है कि हरियाणा में कोई भी चुनाव, चाहे वह लोकसभा का हो रहा हो या विधानसभा का, उनकी अनुपस्थिति में हुआ हो. आठ वर्षों में वह कितनी बार और कितने दिन तक किसी ना किसी कारणवश पेरोल पर जेल से बहार रहें, इसका हिसाब लगाना कठिन है और हर एक चुनाव में उनका हस्तक्षेप रहा है. फिर भी INLD लगातार डूबती ही चली गयी.

चौटाला ना सिर्फ हरियाणा में अपनी खोयी हुई जमीन तलाशना चाहते हैं, बल्कि केंद्र की राजनीति में भी उनका दखल देने का इरादा है. जहां ममता बनर्जी बीजेपी के खिलाफ विपक्षी दलों के गठबंधन बनाने के प्रयास में जुटी हुई हैं, चौटाला ने तीसरा मोर्चा बनाने की बात कही है और उसपर वह काम भी करना चाहते हैं. देखना होगा कि उम्र के इस पड़ाव में सफलता उनके कदम चूमती है या फिर वह घड़ी को उल्टी दिशा में चलाने में असफल हो कर गुमनामी की गलियों में खो जाते हैं.

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