भारत के लिए क्यों जरूरी है रूस-यूक्रेन युद्ध का जल्द खत्म होना?
रूस-यूक्रेन के बीच जारी युद्ध को लेकर भारत में बेतहाशा महंगाई बढ़ने की जो आशंका जताई जा रही थी
नरेन्द्र भल्ला
रूस-यूक्रेन के बीच जारी युद्ध को लेकर भारत में बेतहाशा महंगाई बढ़ने की जो आशंका जताई जा रही थी, उसके सही साबित होने का वक़्त आ गया है. वैश्विक बाजार में कच्चे तेल और गैस की कीमतों में लगातार हो रहे उछाल को लेकर आईएमएफ (International Monetary Fund) ने भी आज चेता दिया है कि भारत की अर्थव्यवस्था पर इसका बेहद नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है. पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के चलते तेल कंपनियों के हाथ बंधे हुए थे और वे चाहकर भी पेट्रोल-डीजल की कीमतें नहीं बढ़ा सकीं. लेकिन अब नतीजे आने के बाद अगले एक-दो दिन में ही इनकी कीमतों में भारी इजाफा हो सकता है.
अर्थव्यवस्था के जानकारों का अनुमान है कि इनकी कीमत में सीधे 6 से 10 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी हो सकती है. अगर युद्ध जारी रहा तो अगले कुछ दिनों में ही पेट्रोल-डीजल के दाम में 20-22 रुपये लीटर तक का इजाफा हो जाए, तो किसी को हैरानी नहीं होना चाहिए. लेकिन इसका सीधा असर खाने-पीने की वस्तुओं से लेकर हर चीज पर पड़ेगा और चौतरफा पड़ने वाली महंगाई की मार घर के किचन का बजट बिगाड़ने के साथ ही और भी बहुत कुछ खराब करके रख देगी.
इसीलिये आईएमएफ की प्रबंध निदेशक क्रिस्टलिना जॉर्जीवा (Kristalina Georgieva) ने आज कहा है कि भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था का प्रबंधन बहुत अच्छी तरह किया है लेकिन इसके बावजूद भारत की अर्थव्यवस्था पर सबसे अधिक असर ऊर्जा कीमतों के रूप में पड़ेगा क्योंकि भारत ऊर्जा का एक बड़ा आयातक देश है और इसकी कीमतों में वृद्धि का उस पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा. ऊर्जा क्षेत्र के विशेषज्ञों के मुताबिक भारत 85 फ़ीसदी तेल आयात करता है, जिसमें से ज़्यादातर आयात सऊदी अरब और अमेरिका से होता है. इसके अलावा भारत, इराक, ईरान, ओमान, कुवैत, रूस से भी तेल लेता है. दरअसल दुनिया में तेल के तीन सबसे बड़े उत्पादक देश - सऊदी अरब, रूस और अमेरिका हैं. दुनिया के तेल का 12 फ़ीसदी रूस में, 12 फ़ीसदी सऊदी अरब में और 16-18 फ़ीसदी उत्पादन अमेरिका में होता है.
अगर इन तीन में से दो बड़े देश युद्ध जैसी परिस्थिति में आमने-सामने होंगे, तो जाहिर है इससे तेल की सप्लाई विश्व भर में प्रभावित होगी. अभी तो सिर्फ यूक्रेन से युद्ध छिड़ने पर ही कच्चे तेल की कीमत 140 डॉलर प्रति बैरल को छू चुकी हैं. अगर नाटो और अमेरिका भी इसमें कूद गया, तो सोचिये तब भारत समेत दुनिया का क्या हाल होगा. इसीलिये तीन दिन पहले ही रूस ने चेतावनी दी है कि अगर उस पर लगे प्रतिबंध नहीं हटाये गए तो तेल की कीमत 300 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच जाएगी. एक अनुमान के मुताबिक़ कच्चे तेल की कीमत में 1 डॉलर प्रति बैरल की बढ़ोतरी से भारतीय अर्थव्यवस्था पर 8 से 10 हजार करोड़ रुपये तक का बोझ बढ़ जाता है. जाहिर है कि इसका सीधा असर आम आदमी की जेब पर ही पड़ेगा.
जहां तक प्राकृतिक गैस का सवाल है, तो भारत की कुल ईंधन खपत में प्राकृतिक गैस की हिस्सेदारी लगभग 6 प्रतिशत है और इस 6 फ़ीसदी का तकरीबन 56 प्रतिशत भारत आयात करता है. ये आयात मुख्यत: क़तर, रूस,ऑस्ट्रेलिया, नॉर्वे जैसे देशों से होता है. कुएं से पहले गैस निकाली जाती है, फिर उसे तरल किया जाता है और फिर समुद्री रास्ते से ये गैस भारत पहुंचती है. इस वजह से इसे लिक्विफाइड नैचुरल गैस यानी एलएनजी कहा जाता है. भारत लाकर इसे पीएनजी और सीएनजी में परिवर्तित किया जाता है. फिर इसका इस्तेमाल कारखानों, बिजली घरों, सीएनजी वाहनों और रसोई घरों में होता है.
रूस-यूक्रेन में छिड़ी जंग के बीच एलएनजी की कीमतों में भी बढ़ोतरी देखने को मिली है. रूस, पश्चिम यूरोप को प्राकृतिक गैस निर्यात करने वाला सबसे बड़ा देश है. इसी क्षेत्र में सारी पाइप लाइन बिछी हुई हैं. ऊर्जा विशेषज्ञों के मुताबिक रूस 40 फ़ीसदी तेल और प्राकृतिक गैस, यूरोप को बेचता है. अगर उसने भी ये बंद कर दिया, तो स्थिति ख़राब हो सकती है. इस तनाव के बीच अमेरिका कोशिश कर रहा है कि दूसरे देश जैसे क़तर से एलएनजी का डाइवर्जन यूरोप की तरफ़ करा सके. एलएनजी के लिए क़तर के सबसे बड़े ग्राहक देश हैं - भारत, चीन और जापान. अगर क़तर अमेरिका के दबाव में एलएनजी यूरोप को देने के लिए तैयार हो जाए, तो वो किसके हिस्से से जाएगा? ज़ाहिर है कि भारत का हिस्सा भी कुछ कटेगा.
इस युद्ध के कारण तेल और नैचुरल गैस के बाद तीसरा बड़ा असर खाद्य तेल की कीमतों पर भी पड़ना शुरु हो गया है. यूक्रेन, विश्व का सबसे बड़ा रिफ़ाइन्ड सूरजमुखी के तेल का निर्यातक देश है. दूसरे स्थान पर रूस है. इसलिये भारत के लिये बड़ी चिंता की बात ये भी है कि दोनों देशों के बीच लड़ाई अगर लंबे समय तक चलती रही, तो घरों में इस्तेमाल होने वाले सूरजमुखी के तेल की देश में भारी किल्लत हो सकती है. हालांकि इसके अलावा यूक्रेन से भारत फर्टिलाइज़र भी बड़ी मात्रा में ख़रीदता है. भारतीय नेवी के इस्तेमाल के लिए कुछ टर्बाइन भी यूक्रेन भारत को बेचता है. लेकिन फिलहाल तो भारत के लिए बड़ा खतरा यही है कि अगर युद्ध लंबा चला,तो देश की अर्थव्यवस्था को पटरी से उतरने में ज्यादा देर नहीं लगेगी, इसलिये यही दुआ करें कि जितनी जल्द हो सके,के जंग रुकनी चाहिए.