अब ऐसा लग रहा है कि वैक्सीन लगवाने के लिए मोबाइल लिंक्ड आधार अनिवार्य होगा या कम से कम इस पर जोर दिया जाएगा। वैक्सीनेशन से लेकर डिजिटल सर्टिफिकेट दिए जाने तक की परियोजना से जुड़े भारत सरकार के एक बड़े अधिकारी ने इसका संकेत दिया है। कोविड-19 से मुकाबले के लिए बने एम्पावर्ड ग्रुप ऑन टेक्नोलॉजी एंड डाटा मैनेजमेंट के चेयरमैन और नेशनल एक्सपर्ट ग्रुप ऑन वैक्सीन एडमिनिस्ट्रेशन के सदस्य रामसेवक शर्मा ने कहा है कि आधार के जरिए सत्यापन में किसी तरह की प्रॉक्सी होने की संभावना नहीं है। यानी ऐसा दोहराव या ऐसी धोखाधड़ी नहीं होगी कि किसी के बदले किसी को टीका लग जाए। उन्होंने कहा है कि यह बहुत जरूरी है कि जिसे टीका लगे उसकी स्पष्ट पहचान हो और इस बात का डिजिटल रिकार्ड रखा जाए किसे वैक्सीन लगी, किसने वैक्सीन लगाई और कौन सी वैक्सीन लगाई गई। इसी आधार पर केंद्र सरकार की ओर से राज्यों को सलाह दी गई है कि वे वैक्सीन लगवाने वाले हर व्यक्ति का मोबाइल नंबर और आधार जरूर लें और यह सुनिश्चित करें कि कोई गड़बड़ी न हो क्योंकि हर व्यक्ति की यूनिक पहचान जरूरी है।
राज्यों को भेजी गई एडवाइजरी में 'यूनिक पहचान' पर खास तौर से जोर दिया गया है। कहने की जरूरत नहीं है कि भारत में 'यूनिक पहचान' सुनिश्चित करने वाला एक ही पहचान पत्र है और वह है आधार। सो, वैक्सीनेशन के लिए किसी न किसी तरह से आधार अनिवार्य किया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ वर्चुअल मीटिंग में डिजिटल सर्टिफिकेट की बात कही। उन्होंने हालांकि आधार का जिक्र नहीं किया पर मोबाइल नंबर का जिक्र जरूर किया ताकि लोगों को वैक्सीनेशन के बारे में हर तरह की जानकारी मैसेज के जरिए दी जा सके। उन्होंने आगे कहा कि दोनों डोज लगने के बाद हर व्यक्ति को एक डिजिटल सर्टिफिकेट दिया जाएगा। इसके आगे की प्रक्रिया यह है कि उस डिजिटल सर्टिफिकेट को डिजीलॉकर में रखा जाएगा।
अब सवाल है कि आधार की अनिवार्यता क्यों होनी चाहिए और डिजिटल सर्टिफिकेट की क्या जरूरत है? क्या यह वैक्सीन किसी व्यक्ति को जीवन भर के लिए कोरोना वायरस के संक्रमण से सुरक्षा दे रही है? वैक्सीन का परीक्षण छह महीने पहले ही शुरू हुआ है और इसलिए कोई कंपनी यह दावा नहीं कर सकती है कि उसकी वैक्सीन छह महीने से ज्यादा सुरक्षा देगी। जैसे जैसे समय बीतेगा वैसे वैसे यह पता लगेगा कि एक बार वैक्सीन लगवाने पर कितने दिन सुरक्षा मिलती है। इसके बावजूद डिजिटल सर्टिफिकेट इस तरह से बांटा जाना है, जैसे यह जीवन भर की उपलब्धि हो और जीवन भर साथ रहने वाली चीज हो! हकीकत यह है कि वैक्सीन की पहली डोज लगवाने के डेढ़ महीने बाद सुरक्षा हासिल होनी है, उस बीच 28 दिन के बाद दूसरी डोज लगवानी है। उस डेढ़ महीने के पहले और बाद में भी किसी को कोरोना का संक्रमण हो सकता है। भारत में ऑक्सफोर्ड की जिस वैक्सीन की सबसे ज्यादा चर्चा है वह सिर्फ 70 फीसदी प्रभावी है। इसका मतलब है कि वैक्सीन की फुल डोज लगवाने वाले सौ में से 30 लोगों को किसी तरह की सुरक्षा हासिल नहीं हो रही है। ऊपर से बिल गेट्स पहले ही कह चुके हैं कि दूसरी पीढ़ी की वैक्सीन आए बगैर सुरक्षा हासिल नहीं होगी। और अगर वायरस के जो नए-नए स्ट्रेन दुनिया में फैल रहे हैं उनका संक्रमण शुरू हो गया तो वैक्सीनेशन की पूरी प्रक्रिया बेकार हो जाएगी।
जहां तक आधार की अनिवार्यता का सवाल है तो वह भी समझ में नहीं आने वाली बात है। सरकार पता नहीं क्यों यह सुनिश्चित करने पर इतना जोर दे रही है कि कहीं प्रॉक्सी न हो जाए यानी किसी की वैक्सीन किसी और को न लग जाए। कोरोना की वैक्सीन कोई पांच किलो अनाज की पोटली नहीं है कि एक का अनाज दूसरा लेकर चला जाएगा या कोई दो बार अनाज की पोटली ले जाएगा। यह कोई नौकरी भी नहीं है, जो इस बात की चिंता की जाए कि एक की नौकरी दूसरा न ले जाए। यह कोई वोट भी नहीं है जो कोई व्यक्ति दो बार देने का प्रयास करेगा। यह वैक्सीन है, दवा है, जिसे पहली बार लगवाने में ही लोग हिचक रहे हैं तो दूसरी बार कौन लगवा लेगा! इसलिए कायदे से हर तरह के पहचान पत्र के जरिए वैक्सीनेशन की अनुमति देनी चाहिए और जिस तरह से मतदान के बाद उंगलियों पर निशान लगाया जाता है वैसे ही कोई पहचान लगा देना चाहिए या वैक्सीनेशन के बाद उसी जगह पर कोई पर्ची दे देनी चाहिए, जो टीकाकरण का सबूत हो। इसके लिए इतने ताम-झाम की जरूरत नहीं है। हां, अगर वैक्सीन के सर्टिफिकेट को इम्यूनिटी पासपोर्ट के तौर पर इस्तेमाल करना है तो अलग बात है!
इतना ताम-झाम हो रहा है तभी इस पूरी प्रक्रिया पर संदेह हो रहा है या ऐसा लग रहा है कि यह किसी बड़े गेम का हिस्सा है। ध्यान रहे बांग्लादेश में बच्चों के वैक्सीनेशन के बहाने दुनिया के सबसे अमीर कारोबारियों में से एक और माइक्रोसॉफ्ट के मालिक बिल गेट्स के आईडी 2020 प्रोजेक्ट की शुरुआत हो चुकी है। कहीं भारत में कोरोना वैक्सीनेशन के बहाने हो रही भारी भरकम कवायद का मकसद भारत के 138 करोड़ लोगों को इस प्रोजेक्ट के साथ जोड़ना तो नहीं है? अगर ऐसा है तो यह फिर सिर्फ आईडी 2020 के प्रोजेक्ट पर नहीं रूकेगा। यह इंसान की सतत निगरानी की नई विश्व व्यवस्था का हिस्सा होगा। सर्विलांस कैपिटलिज्म के फलने-फूलने के लिए जरूरी है कि हर व्यक्ति की यूनिक पहचान कंप्यूटर के डाटा बेस में हो और उसके पास कोई ऐसी चीज हो, जिससे उसे कहीं भी ट्रेस किया जा सके और उसकी निगरानी की जा सके। इसके लिए जरूरी हुआ तो शरीर में चिप लगाने की योजना भी आएगी। वैक्सीनेशन, यूनिक आईडेंटिटी, डिजिटल सर्टिफेकेट आदि इसी प्रोजेक्ट का हिस्सा लग रहे हैं।