हमारी नानियां क्यों अच्छे खानपान व स्वस्थ वजन पर जोर देती थीं, खासकर गर्भवती बेटियों के मामले में?
मैं हाल ही में कुछ युवा दंपतियों से मिला, जिन्होंने परिवार बढ़ाने का विचार आगे बढ़ा दिया था
एन. रघुरामन का कॉलम:
मैं हाल ही में कुछ युवा दंपतियों से मिला, जिन्होंने परिवार बढ़ाने का विचार आगे बढ़ा दिया था। इसका कारण अजीब था। अपने लिए वक्त की कमी और कोविड में कसरत का समय नहीं मिलने से युवा महिलाओं का वजन थोड़ा बढ़ गया था और उन्हें लगता था कि इसका उनके बच्चों के बचपन और युवावस्था के दौरान उनके बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) पर असर पड़ेगा। संक्षेप में, उन्हें डर था कि उनका मोटापा बच्चों पर असर कर सकता था।
मैं सोचने लगा कि अगर ये सच होता तो हमारी नानियांं क्यों अच्छे खानपान व स्वस्थ वजन पर जोर देती थीं, खासकर गर्भवती बेटियों के मामले में? जबकि हममें से बहुतेरे बच्चे बचपन व युवावस्था में दुबले-पतले थे और जीवनशैली में बदलाव से ही हमारा वजन बढ़ा था। और मैं सही था।
यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिस्टल एंड इम्पीरियल कॉलेज, लंदन के शोधकर्ताओं ने हाल ही में पाया कि मांओं का बढ़ा बीएमआई बच्चों या टीनएजर्स में मोटापे का कारण नहीं होता, बल्कि संभव है कि ये लाइफस्टाइल फैक्टर्स का परिणाम हो। संक्षेप में, भावी मांओं को स्वस्थ बच्चा जन्म देने के लिए हेल्दी वेट (मोटापा नहीं) रखने पर प्रोत्साहित करना चाहिए और उनकी मदद करनी चाहिए।
मजे की बात है कि ये रिसर्च पढ़ते समय मेरा ध्यान एक और शोध पर गया, जिसमें इस पुरानी धारणा पर अनूठा समाधान दिया था कि मांओं की खराब ओरल हेल्थ से बच्चे के कम वजनी या प्रीमैच्योर जन्म का खतरा बढ़ता है। मुझे याद आया कि कैसे मेरी नानी परिवार में मां बनने जा रही महिलाओं से हर भोजन के बाद ब्रश करने को कहती थीं।
जो लोग सोच रहे हैं कि भला मुंह के रखरखाव का गर्भावस्था, विशेषकर प्रीमैच्योर डिलीवरी से क्या संबंध, उन्हें मैं बता दूं कि मुंह साफ नहीं है, तो उसमें 'फ्यूसोबैक्टीरियम न्यूक्लीएटम' नामक कीटाणु पनपने लगता है। रिसर्चर्स ने पाया कि जिन महिलाओं की प्रीमैच्योर डिलीवरी होती है, उनके भ्रूण को घेरे रहने वाले एम्नियोटिक फ्लुइड, गर्भनाल, गर्भाशय में भी ये कीटाणु पाया जाता है।
यही कारण है कि हाल ही में रिपब्लिक ऑफ मलावी में रिसर्चरों ने 10 हजार गर्भवती महिलाओं को ओरल हेल्थ केयर परामर्श दिया। दक्षिण-पूर्व अफ्रीकी देश मलावी को इस रिसर्च के लिए चुना गया, क्योंकि वहां दुनिया में सर्वाधिक प्रीमैच्यार (29.7%) व अंडरवेट बच्चे जन्मतेेे हैं।
प्रीमैच्योर बच्चों में अमूमन संक्रमण, दमा, स्तनपान संबंधी गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं। इसका ना केवल बच्चों के फेफड़ों, दिमाग, आंखों पर असर पड़ता है, बल्कि दीर्घकालीन बौद्धिक, शैक्षिक व विकासात्मक अक्षमताओं का भी सामना करना पड़ सकता है।
दिलचस्प है कि मलावी में रिसर्चरों ने मां बनने जा रही महिलाओं को जाइलिटोल च्युंइगगम दी और कहा कि वे हर दिन कम से कम दस मिनट चबाएं। इससे प्रीमैच्योर बच्चों की संख्या 31% तक घट गई! अनेक च्युइंगगम में जाइलिटोल, शुगर सब्स्टिट्यूट की तरह प्रयुक्त होता है। इस प्रयोग की खास बात है कि रिसर्चरों ने जोखिम कम करने के लिए एक बड़ी आसानी से उपलब्ध सस्ता-स्वादिष्ट साधन उपयोग किया।
अमेरिकन जर्नल ऑफ ऑब्स्टेट्रिक्स एंड गायनेकोलॉजी में प्रकाशित इस रिसर्च ने इसीलिए मेरा ध्यान खींचा, क्योंकि इसमें बच्चों के जन्म संबंधी समस्याओं से निजात पाने के लिए महज च्युइंगगम चबाने की बात कही। यकीनन, यह समय से पूर्व जन्म लेने वाले बच्चों का ताल्लुक मुंह के स्वास्थ्य से होने के हमारे पुराने प्रमाणों के अनुरूप तो है ही। फंडा यह है कि अगर गर्भवती महिलाएं स्वस्थ बच्चों को जन्म देना चाहती हैं तो उन्हें स्वस्थ वजन के साथ-साथ उससे भी ज्यादा अपने मुंह के रखरखाव की फिक्र करनी चाहिए।