अंधेरे में सीटी बजाना
बाकी तीन तिमाहियों के लिए आरबीआइ का अनुमान 6.3, 4.6 और 4.6 फीसद है। सात प्रतिशत का औसत अनुमान प्रभावशाली जान पड़ता है, लेकिन सच्चाई औसत में नहीं, बल्कि प्रवृत्ति-रेखा में है
पी. चिदंबरम; बाकी तीन तिमाहियों के लिए आरबीआइ का अनुमान 6.3, 4.6 और 4.6 फीसद है। सात प्रतिशत का औसत अनुमान प्रभावशाली जान पड़ता है, लेकिन सच्चाई औसत में नहीं, बल्कि प्रवृत्ति-रेखा में है: ध्यान दें कि तिमाही-दर-तिमाही विकास दर में गिरावट आएगी। अंकटाड ने 2022 के लिए 5.7 प्रतिशत और 2023 के लिए 4.7 प्रतिशत का निराशाजनक पूर्वानुमान लगाया है।
ऐसी कई समानताएं हैं। 2016 में विमुद्रीकरण के बाद से 2016-17, 2017-18, 2018-19, 2019-20 और 2020-21 में वार्षिक वृद्धि दर 8.26, 6.80, 6.53, 4.04 और -7.25 थी। इसी तरह, 2017-18 की चौथी तिमाही से तिमाही वृद्धि दर 8.93 थी, 7.56, 6.49, 6.33, 5.84 (2018-19) और 5.39, 4.61, 3.28, 3.01 (2019-20)। करीब से देखेंगे तो आप पाएंगे कि चार वित्तीय वर्षों और आठ तिमाहियों में गिरावट की प्रवृत्ति जारी है!
मजबूत आर्थिक नीति हमेशा प्रासंगिक होती है, जबकि उदारवादी, बाजार अर्थव्यवस्था में आर्थिक नीति के कुछ तत्व स्थिर रहते हैं, अन्य तत्वों को परिस्थितियों के अनुरूप बनाया जाना चाहिए। आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने इस संदर्भ को स्पष्ट किया है: "पिछले दो वर्षों में, दुनिया ने दो बड़े झटके देखे हैं- कोविड 19 महामारी और यूक्रेन में संघर्ष। अब, हम एक तीसरे बड़े झटके के बीच में हैं। आक्रामक मौद्रिक नीतियों की कार्रवाइयों और विकसित अर्थव्यवस्थाओं के केंद्रीय बैंकों के अधिक आक्रामक तेवर अपनाने के कारण एक तूफान उत्पन्न हुआ है।
एक ऐसे दौर में जब संयुक्त राज्य अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और अमेरिकी डालर आरक्षित मुद्रा है, आज का विवेकपूर्ण सबक 'अगुआ का अनुसरण' करना है। यूएस फेडरल तब तक ब्याज दरें बढ़ाना बंद नहीं करेगा जब तक कि अमेरिका की मुद्रास्फीति, वर्तमान में 8.3 प्रतिशत, पर काबू नहीं पा लिया जाता है।
सितंबर 2022 की आरबीआइ बुलेटिन में 'अर्थव्यवस्था की स्थिति' पर एक लेख है। उसके परिचय में बताया गया है कि "हम परस्पर विरोधी संभावनाओं के समय में रहते हैं- बढ़ी हुई मुद्रास्फीति और बढ़ती मंदी के जोखिम: आर्थिक ठहराव और बढ़ता कर्ज: अमेरिकी डालर को मजबूत करना और दुनिया के बाकी हिस्सों में कमजोर मुद्राएं: आपूर्ति शृंखला के दबाव को कम करना और फिर से शुरू करना: नीतिगत कार्यों में 'सिंक्रनाइजेशन' और वैश्वीकरण: बैलेंस शीट सामान्यीकरण और तरलता तनाव।"
उपरोक्त आकलन सभी देशों पर लागू होता है। मगर ऐसा केवल भारत में है कि चुनौतियों से पार पाने के लिए अंधेरे में सीटी बजाना एक प्रभावी नीति मानी जाती है! इस लेख में, मैं उन शीर्षों को सूचीबद्ध करना चाहता हूं, जिनके तहत आप यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि सरकार का प्रदर्शन पास करने के लायक है या फेल।
आरबीआइ के अनुदेश के अनुसार मुद्रास्फीति को धनात्मक 4 / ऋणात्मक 2 प्रतिशत पर रखने की आवश्यकता है। खुदरा मूल्य मुद्रास्फीति पिछले चौबीस महीनों में से अधिकतर में छह प्रतिशत की सीमा से ऊपर रही है। थोक मूल्य मुद्रास्फीति करीब बारह महीने से दोहरे अंक में है। वर्तमान मुद्रास्फीति दरें हैं: सीपीआइ 7 प्रतिशत, डब्ल्यूपीआइ 12.37 प्रतिशत। मौद्रिक नीति के बाद प्रेस कान्फ्रेंस में, गवर्नर दास ने स्पष्ट रूप से स्वीकार किया कि "हम उम्मीद करते हैं कि मुद्रास्फीति दो साल के चक्र में लक्ष्य के करीब आ जाएगी, लेकिन बहुत सारी अनिश्चितताएं हैं" (जोर मेरा)। मौद्रिक नीति की प्रभावशीलता के बारे में वित्तमंत्री और आरबीआइ के बीच मतभेदों के कारण मुद्रास्फीति प्रबंधन की दिशा अनिश्चित है।
आरबीआइ की सांख्यिकीय तालिकाओं के अनुसार, पहली तिमाही में चालू खाता घाटा (सीएडी) 23.9 अरब अमेरिकी डालर या अनुमानित सकल घरेलू उत्पाद का 2.8 प्रतिशत था, जिसका मुख्य कारण व्यापार में कमी थी। प्रारंभिक आंकड़ों से संकेत मिलता है कि अप्रैल-सितंबर, 2022 की अवधि में व्यापार घाटा बढ़ कर 149.5 अरब अमेरिकी डालर हो गया था (स्रोत: एमओसीआइ)। सोने का आयात बीस अरब अमेरिकी डालर था। पीओएल खाते में घाटा 65.1 अरब अमेरिकी डालर था। पहली तिमाही में एक आशाजनक शुरुआत के बाद, जुलाई, अगस्त और सितंबर में माल निर्यात में गिरावट की प्रवृत्ति देखी गई है: 36.27, 33.00 और 32.62 अरब अमेरिकी डालर। इस दर पर, पूरे वर्ष के लिए सीएडी तीन प्रतिशत से अधिक होगा और शायद 3.4 प्रतिशत के करीब होगा।
इस वित्त वर्ष की शुरुआत में रुपया-डालर विनिमय दर 75.91 रुपए थी। आज मूल्य 82.32 रुपए है। 1 अप्रैल, 2022 को, कुल विदेशी मुद्रा भंडार 606 अरब अमेरिकी डालर था। 30 सितंबर तक, कुल भंडार गिर कर 537 अरब अमेरिकी डालर हो गया था। आरबीआइ ने विनिमय दर बाजार में 'गैर-अस्थिरता' सुनिश्चित करने के लिए 69 अरब अमेरिकी डालर का उपयोग किया है, फिर भी रुपए में छह महीनों में लगभग आठ प्रतिशत की गिरावट आई है। धीमी वृद्धि, उच्च मुद्रास्फीति, बिगड़ता सीएडी और गिरता रुपया 'मैक्रो-इकोनामिक' तस्वीर बनाते हैं।
देश के सामने अभी जो स्थिति है, उसके बरक्स कुछ मिसालें भी हैं। 2012-13 में भारत को समान त्रिस्तरीय चुनौतियों का सामना करना पड़ा था, मगर वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी के प्रोत्साहन पैकेज, उच्च सोने के आयात और यूएस फेडरल के अध्यक्ष बेन बर्नानके के 'टेपर टैंट्रम' का आभार कि जब यूपीए का कार्यकाल समाप्त हुआ, तो 2013-14 के अंत तक सीएडी को 1.7 प्रतिशत पर लाया जा चुका था, सीपीआइ मुद्रास्फीति 9.4 प्रतिशत (जो 2014-15 में 5.9 प्रतिशत तक गिर गई) थी, विदेशी मुद्रा भंडार में 15.5 अरब अमेरिकी डालर की वृद्धि हुई थी और विनिमय दर 58.4 रुपए थी। जो लोग इतिहास पढ़ना चाहते हैं, उनके लिए यह इतिहास का एक अंश है।