जनता से रिश्ता वेबडेस्क। नीदलैंड्स के प्रधानमंत्री मार्क रुटे अपने देश की एक मजबूत राजनीतिक शख्सियत रहे हैं। उन्हें भारी जन समर्थन मिलता रहा है। इसके बावजूद पिछले हफ्ते उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। इसकी वजह थी सरकार की तरफ से बच्चों का ख्याल रखने के लिए दी जाने वाली आर्थिक मदद में घोटाला। इसे नीदरलैंड्स के लोकतंत्र की मजबूती के रूप में देखा जाएगा कि वहां जवाबदेही का तंत्र एक नेता की हैसियत से ज्यादा असरदार साबित हुआ।
लोकतंत्र दरअसल, जवाबदेही का दूसरा नाम है। पिछले महीने एक संसदीय जांच में पता चला था कि लगभग 10,000 परिवारों पर अनुचित रूप से धोखाधड़ी का आरोप लगाया गया, ताकि उन्हें सब्सिडी में हासिल किए हजारों यूरो की रकम सरकार को वापस देने पर मजबूर किया जा सके। इसका असर यह हुआ और वे परिवार बेरोजगारी और दिवालियापन की हद तक चले गए। इन कारणों से कई परिवार टूट गए।
संसदीय रिपोर्ट में लगभग एक दशक तक चलने वाले इस घोटाले और उसके नतीजों को "अभूतपूर्व अन्याय" कहा गया। इसको लेकर सरकार पर दबाव बढ़ गया। रुटे के नेतृत्व वाले गठबंधन में शामिल दलों पर इस दबाव का असर हुआ।
उन्होंने प्रधानमंत्री को इस्तीफा देने की सलाह दे डाली। गौरतलब है कि एक दिन पहले विपक्षी लेबर पार्टी के नेता ने पूरे मामले में उनकी भूमिका को लेकर उठे सवालों के कारण अपने पद से इस्तीफा दे दिया। अब 17 मार्च को देश में चुनाव होंगे। तब तक रुटे का मंत्रिमंडल बतौर कामचलाऊ सरकार के रूप में काम करेगा। 2012 के बाद देश में सरकार गिरने का यह पहला मौका है। उस समय रुटे ने पहली बार अपनी सरकार बनाई थी, जो आर्थिक संकट के दौरान खर्च कम करने के कठिन उपायों पर मतभेदों को लेकर गिर गई थी।
इस समय नीदरलैंड्स में कोरोना महामारी जूझ रहा है। वहां कठोर लॉकडाउन लागू है। फिर भी संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं। सरकार और भी कड़े प्रतिबंधों पर विचार कर रही है। इसी बीच सरकार गिर गई है। गौरतलब है कि नीदरलैंड्स में इस बात का बहाना नहीं बनाया गया कि महामारी के बीच चुनाव नहीं हो सकते। बल्कि जो प्रक्रिया है, उसका पालन किया गया। यह उन देशों के लिए एक सबक है, जहां की सरकारों ने आपदा को अवसर बनाकर खुद को जवाबदेही से मुक्त कर लिया है।