जब सबसे अच्छी मेडिसिन-यानी प्यार और परवाह- काम न करे तो उसकी डोज बढ़ा दीजिए, फिर खुद परिणाम देखिए

आज सुबह मैंने यूक्रेन का एक वायरल वीडियो देखा

Update: 2022-02-27 08:31 GMT
एन. रघुरामन का कॉलम: 
आज सुबह मैंने यूक्रेन का एक वायरल वीडियो देखा। एक बहादुर पिता ने रूसियों से यूक्रेन की रक्षा के लिए वहीं रहने का फैसला किया था और वह बेटी और पत्नी को सुबकते हुए विदा कर रहा था। बेटी के बस में सवार होने से पहले वह उसकी ऊनी टोपी को ठीक करता है। फिर वह झुकता है और उसके गुलाबी कोट में सिर छुपाकर फूट-फूटकर रोने लगता है। बस रवाना होने से पहले वह उसकी खिड़की को कोमलता से स्पर्श करता है।
यह विवरण आपमें से कुछ को शाहरुख खान की किसी फिल्म का दृश्य लग सकता है, लेकिन यकीन मानिए जब मैं यह पहला पैरा लिख रहा हूं तो अब भी मेरी आंखों में आंसू हैं। और अगर आपने मेरी तरह अपने कामकाजी जीवन का बड़ा हिस्सा विदेश या भारत के विभिन्न शहरों में बिताया है, तो आपको वह दृश्य और गहराई से महसूस होगा, क्योंकि तब हम इस बात को समझ सकेंगे कि हमने भी परिवार से दूर होने का निर्णय लिया है।
और युद्ध की स्थिति में तो हमें पता भी नहीं होता कि हम जीवित बचेंगे या नहीं और अपने परिवार से फिर कभी मिलेंगे या नहीं। उसी यूक्रेन में एक भारतीय रेस्तरां है 'साथिया'। यह कीव में चोकोलिव्स्की बुलेवार के एक बेसमेंट में है। वर्षों तक उसके मालिक मनीष दवे वहां मेडिकल की पढ़ाई करने आए भारतीय छात्रों व भारतीय खाना पसंद करने वाले यूक्रेनियों को न केवल बिरयानी खिलाते रहे, उन्हें घर जैसा अहसास भी कराते रहे।
जब रूस ने युद्ध की घोषणा की तो दवे ने 70 लोगों- जिनमें अधिकतर भारतीय थे- को अपने यहां पनाह दी। इनमें बच्चे व गर्भवती महिलाएं भी थीं। चूंकि दवे के पास केवल चार-पांच दिनों का राशन शेष है, इसलिए वे मुनाफा कमाने के बजाय खाने की सामग्री का बंदोबस्त करने को लेकर ज्यादा चिंतित हैं। मैं कल्पना कर सकता हूं कि दवे और वो 70 लोग किन हालात से गुजर रहे हैं।
मैंने भी वैसे दिन बिताए हैं, भले ही वो युद्ध के दिन नहीं थे। जर्मनी के डुसेलडोर्फ़ रेलवे स्टेशन से 200 मीटर दूर इकलौता भारतीय रेस्तरां, राजा रेस्तरां है। लगभग दस वर्षों तक मैंने कामकाज के सिलसिले में कोलोन में हर साल एक महीना बिताया है। कोलोन डुसेलडोर्फ़ से रेल से 20 मिनट की दूरी पर है। वहां कड़ाके की सर्दियां पड़ती हैं। ऐसे देश में होटल रूम लेकर रहना- जहां कोई अंग्रेजी नहीं बोलता और टीवी पर भी जर्मन के सिवा कोई कार्यक्रम नहीं आते- अकेलापन आपको जकड़ लेता है।
उन दिनों घर पर बात करना भी सरल न था, क्योंकि तब टेलीकम्युनिकेशन के साधन न केवल महंगे थे, बल्कि आज जैसी फ्री वॉट्सएप वीडियो कॉल जैसी सुविधाएं भी थीं। यही कारण है कि मैं उन वर्षों के दौरान हर रात कोलोन से ट्रेन पकड़कर राजा रेस्तरां जाता था। रेस्तरां के मालिक राजा मेरी पसंद की डिशेज़ पकाते थे, ताकि मुझे घर की कमी नहीं खले।
आज जैसे दवे युद्ध के कारण भोजन-सामग्री का प्रबंध और भंडारण करने में जुटे हैं, उसी तरह राजा भी वहां आयोजित होने वाली दुनिया की सबसे बड़ी फूड और भोजन-सामग्री सम्बंधी उपकरणों की प्रदर्शनी 'अनूगा' की शुरुआत से पहले भारतीय मसालों का भंडारण करते थे।
चूंकि मैं तब हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री कवर करता था, इसलिए उस प्रदर्शनी में नियमित रूप से शामिल होने वाला पत्रकार था। काम के दौरान महसूस होने वाले अकेलेपन के बावजूद मैं लगातार वहां जाता था, क्योंकि राजा बहुत प्यार से मेरा ख्याल रखते थे, जैसे कि आज दवे कर रहे हैं।
फंडा यह है कि जब सबसे अच्छी मेडिसिन-यानी प्यार और परवाह- काम न करे तो उसकी डोज बढ़ा दीजिए, फिर खुद परिणाम देखिए। मैं गारंटी देता हूं आपको इसके लिए प्रिस्क्रिप्शन की जरूरत नहीं!
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