जब ऐसे थे महंत नरेंद्र गिरी… तो आत्महत्या भला कैसे कर सकते हैं?

अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी की आत्महत्या से चारों ओर शोक की लहर

Update: 2021-09-21 12:01 GMT

विवेक त्रिपाठी।

अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी (Narendra Giri) की आत्महत्या से चारों ओर शोक की लहर है. ज्यादातर लोगों के दिमाग में एक ही सवाल है कि एक ऐसा संत जिसने समाज के हर अधिकारों की चिंता की, मजबूती से वंचितों को समाज में ऊंचा दर्जा दिलाया. जो सदाचित गंभीर रहा, संतों और भक्तों को सही मार्ग दिखाता रहा, वो संत भला कैसे आत्महत्या कर सकता है? महंत नरेंद्र गिरी के कुछ फैसलों पर गौर करें तो आत्महत्या वाली बात गले से नीचे नहीं उतरेगी.

किन्नरों को समाज में हमेशा से एक ओछी नजर से देखा जाता रहा है, नर हो या नारी किन्नरों से हमेशा दूर ही रहना चाहते हैं. ऊपर से बात तो तब और गहरी हो जाती है जब किन्नर संतों का एक दल अपने लिए मान्यता की मांग करता है, लेकिन हमेशा से उसे दरकिनार रखा जाता है. महंत नरेंद्र गिरी ने इस बात को सही नहीं समझा और किन्नर अखाड़े की मान्यता के लिए सभी अखाड़ों के सामने प्रस्ताव रख दिया. महंत नरेंद्र गिरी की महानता के आगे सबको झुकना पड़ा और किन्नर अखाड़े को 14वें अखाड़े के रूप में मान्यता दी गई.
फर्जी संत-महात्माओं के खिलाफ थे
महंत नरेंद्र गिरी समाज में ढोंग रचने वाले और संतों के नाम पर भक्तों से धन उगाही करने वाले फर्जी संतों और महात्माओं के घोर विरोधी थे. उन्होंने एक ऐसी लिस्ट जारी की थी जिसमें देशभर के फर्जी साधु-संतों का नाम था. हालांकि दूसरा पक्ष यानि जिन्हें महंत नरेंद्र गिरी फर्जी बताते थे वो अपने आप को पाक साफ धर्म संगत होने का दावा करता रहा, लेकिन सच्चाई तो ये है कि आज भी उन महात्माओं के पास करोड़ों और अरबों की संपत्ति हो गई, जिन्होंने अपने वंश को आर्थिक तौर पर और मजबूत किया. ऐसे में नरेंद्र गिरी का आरोप भी हमें एक बार सोचने के लिए मजबूर करता है.
संत हैं तो परिवार से जुड़ाव क्यों?
महंत नरेंद्र गिरी मानते थे कि एक संत भगवान और समाज के लिए होता है, जब कोई अपनी गृहस्थी छोड़कर संत बनता है तो उसी दिन उसका नाता उसके परिवार से टूट जाता है. इसी बात को ध्यान में रखकर और संतों पर समाज के भरोसे का मान रखते हुए नरेंद्र गिरी ने कई ऐसे संतों को अपने अखाड़े से बाहर कर दिया, जो संत तो बन गए थे लेकिन अपने परिवार की तरफ हमेशा उनका जुड़ाव रहता था. सोचिए तो कायदे से इसे कहते हैं असली संत जिसने इस बिरादरी की लाज रखी.
तीन तलाक और धर्मांतरण के विरोधी
महंत नरेंद्र गिरी मानते थे कि किसी को भी अगर कोई इंसान धोखा देता है तो वो समाज के किसी दर्जे में खड़े रहने लायक नहीं है. हम बात कर रहे हैं तीन तलाक की. नरेंद्र गिरी हमेशा से तीन तलाक के खिलाफ रहे. उनका मानना था कि किसी महिला की मर्जी के खिलाफ जाकर तलाक दे देना और उसे जायज ठहराना कतई सही नहीं है. हर किसी के अधिकार और विचार को ध्यान में रखना बेहद जरूरी है. महंत नरेंद्र गिरी धर्मांतरण के भी हमेशा खिलाफ रहे. वो कहते थे कि प्रभु ने इन्सानों की रचना की है, भगवान ने हर वर्ण को बांट रखा है, समाज को चलाने के लिए, पृथ्वी पर जीवन आसान करने के लिए ऐसा भगवान ने किया है. तो भगवान के अलावा किसी को कोई अधिकार नहीं कि धोखे से या दबाव बनाकर किसी भी मनुष्य का धर्म परिवर्तन कराया जाए.
जीव हत्या का खुलकर किया विरोध
भगवान शिव का दुग्धाभिषेक, देवी देवताओं को चढ़ने वाले फूल पेड़ों से तोड़े जाने वाले पंच पल्लव का विरोध बहुतों को करते हुए देखा होगा, लेकिन जीव हत्या के खिलाफ खुलकर बोलने वाले बस कुछ ही लोग हैं, उन्हीं में से एक थे महंत नरेंद्र गिरी. उनका मानना था कि बकरीद या किसी भी त्यौहार पर जीव हत्या करना एक बड़ा पाप है, चाहे वो किसी जीव का किसी भी धर्म में क्यों ना हो. किसी भी हाल में एक जीव की हत्या नर्क से भी बदतर है.
संतों और भक्तों को धर्म ज्ञान
हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन हो या नासिक का महाकुंभ. धर्म के लिए हर जगह महंत नरेंद्र गिरी ने संतों, दूसरे अखाड़ों के संतों और भक्तों को हमेशा सही मार्ग दिखाया. लोगों से छलावा, धन उगाही से दूर रहने की सलाह दी. एक संत और एक भक्त होने का मतलब समझाया. कई अखाड़ों को आर्थिक मदद दिलवाई. ऐसे में एक सवाल उठ रहा है कि कई पड़ावों पर और कई तरह के विवादों में खुद को संतुलित रखने वाले महंत नरेंद्र गिरी भला कैसे आत्महत्या कर सकते हैं.
नरेंद्र गिरी के महंत बनने की कहानी
नरेंद्र गिरी प्रयागराज की फूलपुर तहसील के उग्रसेनपुर के किसी गांव के रहने वाले थे. शुरू से ही उन्हें संतों से बड़ा लगाव था. गांव में जब कोई संत जाता था तो नरेंद्र गिरी उनके साथ अपना काफी समय बिताते और धर्म-संस्कृति के बारे में पूछा करते थे. धर्म से जुड़ाव की वजह से ही नरेंद्र गिरी युवावस्था में ही अपने गांव से निकलकर संतों की टोली में आ गए और एक संत के साथ राजस्थान पहुंचे. वहां पर वह एक अखाड़े में रहकर संतों की सेवा में जुट गए. राजस्थान में काफी समय बिताने के बाद वह वापस प्रयागराज आए और यहां पर निरंजनी अखाड़े से जुड़ गए.
नरेंद्र गिरी ने प्रयागराज में मठों के उद्धार के लिए प्रयास शुरू कर दिए. बंधवा के हनुमान मंदिर और बाघम्बरी मठ के पूर्व संचालक के स्वर्गवास के बाद लगभग दो दशक पहले बाघम्बरी मठ की जिम्मेदारी नरेंद्र गिरी को मिली. उन्होंने वैदिक शिक्षा और गोशाला के निर्माण के साथ-साथ संत समाज को जोड़कर सनातन धर्म और संस्कृति को आगे बढ़ाने का जिम्मा उठाया था.
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