इस पदयात्रा से क्या हासिल होगा
कुछ और हासिल हो या न हो इस ‘भारत जोड़ो’ पदयात्रा से, इतना तो तय है कि अगले पांच-छह महीनों के लिए राहुल गांधी भारत माता की सरजमीं को छोड़ कर कहीं नहीं जाएंगे।
तवलीन सिंह; कुछ और हासिल हो या न हो इस 'भारत जोड़ो' पदयात्रा से, इतना तो तय है कि अगले पांच-छह महीनों के लिए राहुल गांधी भारत माता की सरजमीं को छोड़ कर कहीं नहीं जाएंगे। छोटी बात नहीं है यह। याद रखें कि नेहरू-गांधी परिवार के इस वारिस की आदत है हर दूसरे महीने चुपके से खिसक जाना किसी रहस्यमय विदेश यात्रा पर। कुछ दिन गायब रहने के बाद लौट आते हैं, लेकिन तब तक कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं के हौसले कम हो ही जाते हैं।
पिछले तीन सालों में देश की इस सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी से कई वरिष्ठ नेता हार मान कर चले गए हैं। आखिरी जाने वाले ऐसे नेता थे गुलाम नबी आजाद, जिन्होंने जाते-जाते राहुल गांधी को कांग्रेस छोड़ने का मुख्य कारण बताया, वो भी उनकी माताजी को पत्र लिख कर। इस पत्र को आजाद साहब ने मीडिया और सोशल मीडिया में खूब प्रचारित किया। खैर, लौट कर आती हूं उस पदयात्रा पर, जो पिछले गुरुवार को चल पड़ी है कन्याकुमारी से और जिसका गंतव्य है कश्मीर।
वादा है राहुल गांधी का कि इस यात्रा का नेतृत्व वे खुद करेंगे शुरू से अंत तक। यात्रा शुरू करने से पहले राहुल ने समुद्र किनारे एक आमसभा को संबोधित किया। मैंने उनके भाषण को ध्यान से सुना और इस लेख को लिखने से पहले उसको अखबारों में ध्यान से पढ़ा। ऐसा करने के बाद एक दो बातों का विश्लेषण किया।
नई चीज यह पाई कि पहली बार कांग्रेस के इस पूर्व (और शायद भावी) अध्यक्ष ने राष्ट्रवाद और देशभक्ति को वापस कांग्रेस के हाथों में लेने की कोशिश की है। अभी तक उनका ज्यादा ध्यान रहा है मोदी पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाने में, उनको गरीबों का दुश्मन और कुछ 'मुट्ठी भर' धनवानों का दोस्त साबित करने में।
इतनी बार कह चुके हैं राहुल इस बात को पिछले आठ सालों में कि आरोप अब खोखला लगने लगा है। इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि मतदाताओं को यह आरोप बेबुनियाद लगा, वरना कांग्रेस का यह हाल न होता कि 2018 के बाद एक भी चुनाव जीती नहीं है।
लेकिन अगर राष्ट्रवाद के परचम और उस 'पुराने' इंडिया की सबसे बड़ी शक्ति, जो उसकी विभिन्नता थी, कांग्रेस वापस लेने में सफल होती है, तो 2024 में मोदी को चुनौती देने में भी सफल हो सकती है। अब सुनिए, राहुल ने अपने भाषण में कौन-सी बातें कहीं, जिससे मुझे लगा कि वे समझ गए हैं कि मोदी की सबसे बड़ी कमजोरी है कि वे इस देश के हर वर्ग को अपने साथ लेकर नहीं चल रहे हैं।
हिंदू हृदय सम्राट बेशक बन गए हैं, लेकिन इस देश में और भी कौमें हैं, जिनमें सबसे बड़ी है मुसलमानों की कौम, जिनको पूरी तरह लगने लगा है मोदी के राज में कि उनको हिंदुओं से कम दर्जा देने की कोशिश हुई है।
सो, जब राहुल ने तिरंगा उठा कर कहा कि यह हर भारतीय का है, किसी एक वर्ग का नहीं, उनकी यह बात मुझे बहुत अच्छी लगी। इसके बाद राहुल ने कहा, 'भारत का इतिहास, उसकी भाषाएं, उसकी सभ्यता हम सबकी है, लेकिन भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का प्रयास है कि यह झंडा, यह देश उनकी निजी जायदाद है। समझते हैं ये लोग कि इस देश का भविष्य सिर्फ वे तय कर सकते हैं। बांटना चाहते हैं देश को धर्म-मजहब और भाषाओं को लेकर दरारें पैदा करके।'
इन बातों का महत्त्व मेरी नजर में यह है कि यही एक मुद्दा है, जिसको लेकर मोदी और उनकी 'न्यू इंडिया' वाली भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस का किसी भी हाल में मुकाबला नहीं कर सकती है। बल्कि यह कहना कि वे इस स्पर्धा में हैं ही नहीं, गलत न होगा। बिल्कुल वैसे जैसे कांग्रेस की सबसे बड़ी कमजोरी है परिवारवाद, उसी तरह मोदी के भाजपा की कमजोरी है उसका उग्र हिंदुत्व, जो खोखला कर चुका है बहुत पहले मोदी के 'सबका साथ, सबका विकास' वाले नारे को।
नफरत का ऐसा माहौल बन गया है देश में कि अर्शदीप सिंह ने भारत-पाकिस्तान वाले क्रिकेट मैच में कैच क्या गिराई कि उसको खालिस्तानी कहने लगे सोशल मीडिया पर, ऐसे लोग जो गर्व से कहते हैं कि वे मोदी भक्त हैं। बाद में भारत सरकार की तरफ से कहा गया कि शरारत शुरू की थी पाकिस्तान में बैठे कुछ लोगों ने। शायद शुरू वहां से हुई है, लेकिन इस गंदे खेल में शामिल हुए हैं ढेर सारे भारतीय, जो मोदी भक्त हैं।
पांच महीने पदयात्रा पर रहने से पता नहीं कांग्रेस पार्टी अपना खोया हुआ जनसमर्थन वापस ले पाएगी कि नहीं, लेकिन अगर वह साबित कर देती है कि असली देशभक्ति और राष्ट्रवाद का परचम उसके पास है, तो 2024 वाले आम चुनावों में वह एक शक्तिशाली प्रतिद्वंद्वी बन के उतर सकती है युद्धभूमि में।
इस देश में करोड़ों लोग ऐसे हैं जो हिंदू हैं, लेकिन हिंदुत्ववादी नहीं हैं, इसलिए कि देख चुके हैं मोदी के राज में कि इस विचारधारा ने न सिर्फ सनातन धर्म को बदनाम किया है, देश को भी बांटने का काम किया है। ढूंढ़ रहे हैं विकल्प, लेकिन इस देश में एक ही राजनीतिक दल है, जो विकल्प बन सकता है और वह है कांग्रेस।
इस राजनीतिक दल का पुनर्जीवित होना देश के हित में है, लेकिन अभी तक गांधी परिवार के तीनों सदस्य ऐसे पेश आए हैं जैसे कांग्रेस को बचाने से ज्यादा महत्त्वपूर्ण है गांधी परिवार को बचाना। याद कीजिए कि दिल्ली की सड़कों पर प्रदर्शन और गिरफ्तारियां बड़े पैमाने पर तभी दी कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने जब प्रवर्तन निदेशालय ने सोनिया और राहुल गांधी से पूछताछ की थी। इस पदयात्रा के बाद अगर कांग्रेस गांधी परिवार की सेवा से आगे निकल पाती है, तो उसे बहुत कुछ हासिल होगा।