By NI Editorial
एक खास आय के ऊपर के लोग इनकम टैक्स देते हैं, लेकिन विभिन्न प्रकार के परोक्ष करों का बोझ सभी लोग उठाते हैँ। और अब तो ट्रेंड यह है कि सरकारी राजस्व में दोनों प्रकार के करों का हिस्सा लगभग बराबर हो गया है।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई सरकारी शिक्षण संस्थानों में हिजाब पहनने के मुद्दे पर हो रही थी। इस दरम्यांन तरह-तरह के परिधान (मसलन, जींस, शॉर्ट्स) पहनने के अधिकार संबंधी सवाल उठाए गए। मुस्लिम पक्ष के वकील संजय हेगड़े ने इसी सिलसिले में कहा- हर बात का एक संदर्भ होता है। आज का संदर्भ है सरकारी कॉलेजों में शिक्षा तक पहुंच का। सरकार सबके धन से चलती है। इस पर न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता ने एक अविश्वसनीय-सी टिप्पणी कर दी। कहा- सरकार सबरे धन से नहीं चलती, क्योंकि सिर्फ चार प्रतिशत लोग इनकम टैक्स देते हैं। यह टिप्पणी यह बताती है कि अभिजात्य वर्गों और उनके मीडिया के द्वारा लगातार किए जाने वाला दुष्प्रचार किस हद तक एक सचेत व्यक्ति की अंतर्चेतना में भी उतर जाता है। वरना, न्यायमूर्ति इतनी सहजता से यह बात नहीं कह पाते। उन्हें यह भान होना चाहिए था कि टैक्स हर नागरिक देता है।
एक खास आय के ऊपर के लोग इनकम टैक्स देते हैं, लेकिन विभिन्न प्रकार के परोक्ष करों का बोझ सभी लोग उठाते हैँ। और वर्तमान सरकार के शासनकाल में तो ट्रेंड यह है कि परोक्ष करों धीरे-धीरे इतनी बढ़ोतरी हो गई है कि सरकारी राजस्व में दोनों प्रकार के करों का हिस्सा लगभग बराबर हो गया है। इसके अलावा ये बात भी जरूर ध्यान में रखनी चाहिए कि जो लोग अधिक टैक्स देते हैं, व्यवस्था की सुरक्षा और सुविधाओं का भी अधिक लाभ वही उठाते हैँ। आखिर अरबों रुपये के खर्च से बनने वाले हाईवे और एक्सप्रेस-वे किसके काम आते हैं? अगर कार्बन उत्सर्जन में अमीर जीवन शैली के हिस्से पर ध्यान दें, तो यह बात भी स्पष्ट होगी कि धनी लोगों के उपभोग से हो रहे जलवायु परिवर्तन की सबसे ज्यादा मार गरीब तबकों को उठानी पड़ रही है। दरअसल, जो सोच न्यायमूर्ति ने जताई, उसके सर्वव्यापी होते जाने का ही परिणाम है कि देश लगातार अपनी संवैधानिक बचनबद्धताओं से हटता जा रहा है। लोकतंत्र के बाहरी आवरण के अंदर वह लगातार कुलीनतंत्र का रूप लेता जा रहा है। इसलिए ऐसी सोच जहां से भी आए, उसका जरूर प्रतिवाद होना चाहिए।