1-ममता की जीत से विपक्ष में जान फूंकेगी
तृणमूल कांग्रेस की जीत के साथ तमिलनाडु में डीएमके और केरल में वामपंथी मोर्चे की जीत से विपक्ष के हौसले में बढ़ोतरी होगी. अभी कुछ दिनों से ऐसा लग रहा था कि विपक्ष लगातार हार के चलते निस्तेज होता जा रहा है. जिस तरह पश्चिम बंगाल में बीजेपी ने जीत के लिए अपने सभी अस्त्र-शस्त्र इस्तेमाल किया पर ममता बनर्जी की अदम्य इच्छा शक्ति के आगे उसकी एक न चली सकी इसे देखकर निष्प्राण हो रहे विपक्ष में एक आशा का संचार हुआ है. अब लग रहा कि 2023 के लोकसभा चुनावों और उसके पहले सेमीफाइनल की तरह होने वाले विधानसभा चुनावों ( यूपी और पंजाब आदि) में विपक्ष मोर्चेबंदी के लिए इकट्ठा होने की कोशिश करेगा. तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी पहले भी कई बार तीसरे मोर्चे की बात करती रही हैं पर मामला सिरे नहीं चढ़ सका.
2- कांग्रेस के हाथ से निकल सकता है यूपीए का कमान
कुछ दिनों पहले शिवसेना के नेता संजय राउत ने एक बयान देकर सबको चौंका दिया था कि UPA में संशोधन होना चाहिए और गठबंधन का नेता एनसीपी प्रमुख शरद पवार को होना चाहिए. आम तौर पर अभी यही समझा जाता है कि UPA का नेता मतलब विपक्ष की ओर से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार. हालांकि अब तक यूपीए का नेतृत्व कांग्रेस के हाथों में रहता रहा है पर बदलते राजनीतिक दौर में कुछ भी हो सकता है. अभी कांग्रेस पार्टी बहुत बड़े संकट के दौर से गुजर रही है. एक तरफ पार्टी के अंदर ग्रुप 23 सक्रिय है जो राहुल के नेतृत्व के खिलाफ आवाजें बुलंद कर रहा है. दूसरी तरफ कांग्रेस लगातार हार का सामना कर रही है. असम और केरल की हार सोनिया गांधी और राहुल गांधी के लिए बहुत भारी पड़ने वाला है. अगर ऐसा कुछ होता है तो देश के राजनीतिक दल यूपीए गठबंधन का नेतृत्व बदलने के बारे में सोच सकते हैं . ऐसे में ममता बनर्जी की स्वच्छ और जुझारू इमेज एनसीपी के शरद पवार की छवि पर भारी पड़ सकती है.
3-बन सकता है ममता के नेतृत्व में तीसरा मोर्चा
ममता बनर्जी ने देश की राजनीति में तीसरा मोर्चा बनाने की कोशिश करती रही हैं. टीआरएस प्रमुख चंद्रशेखर राव के साथ मिलकर ममता बनर्जी ने 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले देश में एक गैर बीजेपी और गैरकांग्रेस गठजोड़ बनाने की कोशिश की थी. राजनीतिक गलियारों में इसकी खूब चर्चा भी हुई. कुछ दल इसके लिए तैयार भी थे. पर अभी देश की राजनीति में कांग्रेस का तिलस्म बचा हुआ था इसलिए बहुत से लोगों ने कांग्रेस के साथ रहने में ही भलाई समझी . इसलिए उस समय वो किसी तीसरे मोर्चे के गठन करने में सफल नहीं हो सकीं थीं. पर इधर कुछ ऐसी परिस्थितियां बन रहीं हैं कि क्षेत्रिय पार्टियां ममता बनर्जी को यूपीए में शामिल करने के लिए दबाव बनाएं. ऐसा करने के लिए हो सकता है कि उन्हें यूपीए में शामिल हो कर सोनिया की जगह लेने का ऑफर भी मिले. एक आंकलन यह भी है कि कांग्रेस पार्टी UPA की बागडोर नहीं छोड़ती है तो उसके साथ की कुछ क्षेत्रीय पार्टियां मिलकर देश में एक अलग तीसरे मोर्चे की तैयारी कर सकती हैं जिसका नेतृत्व पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के हाथों में हो सकता है.
4-ममता के रूप में प्रधानमंत्री पद का एक और दावेदार आ सकता है सामने
विधान सभा चुनावों के दौरान हुगली की एक रैली में ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री मोदी (PM Modi) और बीजेपी (BJP) पर निशाना साधते हुए कहा कि 'मैं अपने एक पैर पर खड़ी हो कर बंगाल जीतूंगी और भविष्य में मैं अपने दोनों पैरों पर खड़ी होकर दिल्ली में जीत हासिल करुंगी.' इसी तरह उन्होंने 2024 के लोकसभा इलेक्शन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी (Varanasi) लोकसभा से चुनाव लड़ने का ऐलान भी किया था. दरअसल इसे अब केवल चुनावी बात कहना बेमानी होगा. जिस प्रचंड बहुमत से ममता पश्चिम बंगाल का इलेक्शन तीसरी बार जीत रही हैं उन्होंने साबित कर दिया है कि बीजेपी को हराने की कूवत अगर किसी नेता में है तो वो केवल ममता बनर्जी ही हैं. उनकी यही जुझारु छवि विपक्ष के लिए संजीवनी का काम कर सकती है. दूसरी तरफ इतनी बड़ी सफलता व्यक्ति की महत्वाकांक्षाओं को सूली पर भी चढा़ता है.
4-किसान आंदोलन, कोरोना नियंत्रण के नाम पर बैकफुट पर आ सकती केंद्र सरकार
पश्चिम बंगाल में सौ से भी कम सीटों पर सिमटती बीजेपी के लिए बहुत मुश्किल भरा समय शुरू होने वाला हो सकता है. क्योंकि विपक्ष अब केंद्र की बीजेपी सरकार पर हमलावर हो जाएगा. विपक्ष को यह कहने का मौका मिल गया है कि किसान आंदोलन और कोरोना बीमारी से ठीक से हैंडल न करने के चलते देश की जनता ने बीजेपी के खिलाफ यह मैंडेट दिया है. क्योंकि बड़े राज्यों पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और केरल में केंद्र में सत्ताधारी पार्टी बीजेपी को मुंह की खानी पड़ी है. तमिलनाडु और केरल में तो बीजेपी का बहुत जोर नहीं था पर पश्चिम बंगाल में बीजेपी पूरी जोर शोर से लड़ी और सरकार बनाने के लिए भी पूरी तरह आश्वस्त थी इसलिए पार्टी को जवाब देना मुश्किल होगा.
5. 2023 के चुनावों में बीजेपी गंगा दोआब की पार्टी नहीं रहेगी बल्कि अखिल भारतीय पार्टी के रूप में लड़ेगी चुनाव
भले ही पश्चिम बंगाल के चुनावों में बीजेपी को अपेक्षित सफलता नहीं मिल सकी पर बीजेपी अब हिंदी बेल्ट के गंगा दोआब की पार्टी नहीं रही. पश्चिम बंगाल में 3 सीटों से करीब 80 से 85 सीट तक पहुंचना बीजेपी के लिए बहुत बड़ी सफलता इस मायने में है कि अब भारतीय जनता पार्टी हिंदी बेल्ट की पार्टी न होकर इसका स्वरूप अखिल भारतीय हो गया है . 2023 में होने वालों आम चुनावों में बीजेपी एक अखिल भारतीय पार्टी के रूप में देश में चुनाव लड़ रही होगी. पश्चिम बंगाल में विपक्ष में होगी तो दक्षिण के पुडुचेरी में सरकार बनने से उसके लिए तमिलनाडु और केरल में घुसने का मार्ग प्रशस्त हो गया है.