थके हुए नेता
पिछले आठ सालों में कांग्रेस के कई दिग्गज पाला बदल चुके। 2019 में दुबारा मिली हार के बाद ऐसे नेता, जो कांग्रेस को पुनर्जीवित करना चाहते थे उन्होंने अगस्त 2020 में पार्टी प्रमुख सोनिया गांधी को पत्र लिख कर पार्टी में व्यापक बदलाव करने के लिए कहा।
Written by जनसत्ता; पिछले आठ सालों में कांग्रेस के कई दिग्गज पाला बदल चुके। 2019 में दुबारा मिली हार के बाद ऐसे नेता, जो कांग्रेस को पुनर्जीवित करना चाहते थे उन्होंने अगस्त 2020 में पार्टी प्रमुख सोनिया गांधी को पत्र लिख कर पार्टी में व्यापक बदलाव करने के लिए कहा। इन नेताओं के समूह को जी-23 नाम दिया गया। मगर जी-23 की सक्रियता सोशल मीडिया या खुली चिट्ठी तक ही सीमित रही।
न तो इन्होंने कांग्रेस के उत्थान के लिए जमीन पर कोई काम किया न ही आलाकमान के सामने कोई ठोस योजना पेश की। कांग्रेस आलाकमान ने इनकी आवाज कितनी सुनी, यह तो नहीं कह सकते, मगर इनके खिलाफ कोई कार्यवाही भी नहीं की। सच्चाई तो यह है कि सालों तक सत्ता सुख भोगने के बाद कांग्रेस के इन पुराने तथाकथित दिग्गजों में अब विपक्ष वाली संघर्ष क्षमता बची ही नहीं है।
कांग्रेस आज जो भी जमीनी संघर्ष कर रही है, उसके केंद्र में सिर्फ राहुल और प्रियंका हैं। उनके अलावा न तो कोई नेता संघर्ष की रूपरेखा बना रहा है और न ही जमीन पर संघर्ष करता दिख रहा है।
एक बालिका की हत्या के बाद झारखंड में कुटिल शैतानी मुस्कान देखी गई। आरोपी को इस कृत्य पर शर्म नहीं, शायद फख्र रहा होगा। गनीमत यह है कि इस घटना को जातिगत संदर्भ से नहीं जोड़ा गया। गला काटने के बाद फख्र की मुद्रा और भाव भंगिमा, एक बालिका को जिंदा भस्मीभूत करने के बाद कुटिल मुस्कान, और न जाने कितनी घटनाएं एक इशारा दे रही हैं कि कुछ लोग इन कृत्यों पर शाबाशी दे रहे हैं इन मानसिक रोगियों को। जो इनकी खुराक का काम कर रही है।
इस धार्मिक कट्टरता और इन कुटिल, शैतानी, अमानवीय मुस्कराहटों को कुचलने के प्रयास अगर नहीं हुए, तो वोट बैंक की राजनीति एक दिन इस देश को जलते हुए ज्वालामुखी में परिवर्तित कर देगी। अभी सुप्त पड़े समाज में जहां-तहां हल्का धुआं और गर्मी दिखाई पड़ने लगी है। ऐसा न हो, यह एक दिन खौलते लावे के रूप में दिखाई पड़े और लोकतंत्र शर्मसार हो।
देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के हाथों से कई राज्य निकल और कई प्रतिभावान नेता पार्टी छोड़ चुके हैं। एक दौर में नेहरू-गांधी परिवार इस पार्टी की ताकत हुआ करती थी, लेकिन आज वही परिवार पार्टी की कमजोरी बन चुकी है। विगत तीन वर्षों से अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के बावजूद राहुल गांधी पर्दे के पीछे पार्टी का संचालन कर रहे है।
पार्टी ने 17 अक्टूबर को नए अध्यक्ष के चुनाव का ऐलान कर दिया है, लेकिन इसके आसार कम नजर आ रहे हैं, क्योंकि पार्टी कार्यकर्ताओं का एक बड़ा वर्ग राहुल गांधी को ही अध्यक्ष बनाना चाहता है। नेहरू-गांधी परिवार पार्टी को अपनी जागीर समझता है, इसीलिए आम लोगों में यह धारणा है कि राहुल गांधी स्वयं अध्यक्ष का पद ग्रहण करेंगे या किसी कठपुतली को बिठाया जाएगा।
दोनों ही स्थिति कांग्रेस के लिए नुकसानदेह है। कांग्रेस पार्टी को एक ऊर्जावान एवं स्पष्ट नीति के साथ काम करने वाले अध्यक्ष की जरूरत है, अन्यथा लोकतंत्र में पार्टियों के बनने और बिगड़ने का खेल चलता रहता है। कांग्रेस पार्टी को इतिहास से सबक लेकर अपनी नीतियों में सुधार लाना चाहिए।