युद्ध की मार

रूस-यूक्रेन की जंग का असर वैश्विक अर्थव्यवस्था पर साफ दिखने लगा है। कच्चे तेल के बढ़ते दाम और शेयर बाजारों में भारी गिरावट इसके स्पष्ट संकेत दे रहे हैं। सोमवार को बंबई शेयर बाजार का सूचकांक एक हजार चार सौ इनक्यानबे अंक गिर गया।

Update: 2022-03-08 04:05 GMT

Written by जनसत्ता: रूस-यूक्रेन की जंग का असर वैश्विक अर्थव्यवस्था पर साफ दिखने लगा है। कच्चे तेल के बढ़ते दाम और शेयर बाजारों में भारी गिरावट इसके स्पष्ट संकेत दे रहे हैं। सोमवार को बंबई शेयर बाजार का सूचकांक एक हजार चार सौ इनक्यानबे अंक गिर गया। पिछले हफ्ते भी शेयर बाजार में कमोबेश यही हाल रहा था। ऐसी ही हालत सिंगापुर, जापान से लेकर फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन के शेयर बाजारों की है। दरअसल, युद्ध की वजह से अनिश्चितता का जो माहौल बन गया है, उसमें किसी को भी कुछ समझ नहीं आ रहा।

कोई नहीं जानता कि आने वाले दिनों में घटनाएं क्या मोड़ ले लें। संकट इसलिए भी गहराता जा रहा है कि जंग लड़ रहे दोनों देश कच्चे तेल, गैस और गेहूं के बड़े निर्यातक हैं। यूरोप सहित कई अन्य देश भी इनसे गैस और तेल खरीदते हैं। इस वक्त कच्चा तेल एक सौ तीस डालर प्रति बैरल के करीब पहुंच चुका है और आने वाले दिनों में कितना ऊपर जाएगा, कोई नहीं जानता। गेहूं और निकल, एल्युमीनियम जैसी धातुओं के दाम भी पिछले पांच दशक के रिकार्ड तोड़ चुके हैं। रूस और यूक्रेन दुनिया का चौदह फीसद गेहूं पैदा करते हैं। ऐसे में महंगाई कहां जाएगी, कोई नहीं जानता।

युद्ध के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था चरमराने को लेकर चिंता इसलिए भी बढ़ गई है कि ज्यादातर देश महामारी की मार से अभी तक उबरे भी नहीं थे कि दूसरा संकट सिर पर आ गया। युद्ध और महामारी जैसी विपत्तियां मानव जीवन को कैसे तबाह कर देती हैं, यह अब छिपा नहीं रह गया है। महामारी की वजह से महंगाई और बेरोजगारी ने किसको नहीं रुलाया! अब फिर वैसे ही हालात बनते दिख रहे हैं। रोजाना नए रिकार्ड बनाता कच्चा तेल सबसे बड़ा संकट पैदा कर रहा है। कच्चा तेल महंगा होते ही सरकारें पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ाने का कदम उठाती हैं और इसका सीधा हर तरह के कारोबार से लेकर आम जीवन पर पड़ता है।

भारत दुनिया के कई देशों को दवाइयों से लेकर कपड़े, मशीनें, कलपुर्जे, इलेक्ट्रानिक सामान, चाय, काफी, वाहन आदि का निर्यात करता है। साथ ही दालें, खाने के तेल, उद्योगों के लिए कच्चा माल आयात करता है। वैश्विक कारोबार में हर देश इसी तरह एक दूसरे के सहारे टिका हुआ है। ऐसे में महंगा कच्चा तेल नौवहन की लागत बढ़ाता है और फिर इसका असर निर्यात-आयत पर पड़ता दिखता है। लागत बढ़ने से स्थानीय कारोबारी प्रभावित होते हैं और महंगाई बढ़ती है। रूस को वैश्विक भुगतान व्यवस्था से अलग-थलग कर देने के बाद कारोबारियों को पैसे फंसने का भी डर सता रहा है।

जंग के असर से भारत भी अछूता कैसे रह सकता है! सरकार और रिजर्व बैंक दोनों ही इस संकट को बखूबी समझ रहे हैं। हाल में वित्त मंत्री भी कह चुकी हैं कि कच्चे तेल के बढ़ते दाम चुनौती बन गए हैं। इसका संकेत यह भी है कि तेल कंपनियां जल्द ही पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ाना शुरू करेंगी। पिछले साल नवंबर के बाद अभी तक तेल कंपनियों ने दाम नहीं बढ़ाए हैं। इसके पीछे कारण विधानसभा चुनाव माना जा रहा है। पर अब चुनाव खत्म हो चुके हैं। वैसे तेल कंपनियां अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतों के मुताबिक रोजाना अपने दामों की समीक्षा करती हैं। जाहिर है, अब पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़े तो आम आदमी की मुश्किलें और बढ़ जाएंगी। महंगाई दर पहले से ही चिंताजनक बनी हुई है। ऐसे में सरकार को उन उपायों पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है जो पेट्रोल-डीजल की मार से लोगों को बचाएं।


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