By लोकमत समाचार सम्पादकीय
दिल्ली एनसीआर में भारी बारिश के एक दिन के बाद ही पानी से भरी सड़कें, रेंगता यातायात, टूटे वाहन और घुटनों तक गहरे पानी में चलने वाले नागरिक जैसे परिचित दृश्य देखने को मिले। बिजली की कटौती, ढहती दीवारें और बिजली के झटके के कारण लोगों की मौतें हुईं। कुछ हफ्ते पहले बेंगलुरु की 126 झीलें उफान पर थीं, जिससे वहां महादेवपुरा, बेलंदूर, बोम्मनहल्ली, मुन्नेकोलालु आदि इलाकों में जलजमाव की स्थिति थी।
दो हजार से अधिक घरों में बाढ़ का पानी आया था, तकरीबन दस हजार घर अलग-थलग पड़ गए। हर तरफ ऐसा मंजर है जैसे निजी संपत्ति को बट्टे खाते में डाल दिया गया है। इस तरह की दुखद स्थिति शहरी नियोजन की कमियों की तरफ इशारा करती है। आमतौर पर हमारे शहर नियमित रूप से शहरी नियोजन के प्रमुख तत्वों की उपेक्षा करते हैं।
नालियों की बेहतर निकासी क्षमता की कमी और झीलों व नदियों पर ध्यान न देने के साथ शहरी स्थानों को कांक्रीट में बदलने का जोर हर तरफ दिखाई देता है। कुल मिलाकर भारतीय शहर शहरी नियोजन पर सीमित क्रियान्वयन के संकट से ग्रस्त हैं। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट के अनुसार, बेंगलुरु जैसे शहर ने ईज ऑफ लिविंग इंडेक्स 2020 में क्वालिटी ऑफ लाइफ मेट्रिक के तहत 100 में से 55.67 स्कोर किया।
दिल्ली जैसा शहर राजधानी होने के बावजूद इंडेक्स में 57.56 तक पहुंचा, जबकि भुवनेश्वर जैसे शहर का स्कोर सिर्फ 11.57 था। प्रदूषण और भीड़भाड़ पर नियंत्रण के साथ जैव विविधता को बनाए रखने के लिए लंदन में शहर के चारों ओर एक महानगरीय हरित पट्टी है, जो 513860 हेक्टेयर क्षेत्र को कवर करती है। सवाल है कि भारतीय शहरों में ऐसा कुछ क्यों नहीं हो सकता है?
इस बीच, पेरिस ने अपनी कोशिश '15 मिनट सिटी' के तौर पर आगे बढ़ाई है। यह विचार काफी सरल है। इसके तहत प्रत्येक पेरिसवासी को अपनी खरीदारी, कामकाज, मनोरंजक गतिविधियों के साथ और अपनी सांस्कृतिक जरूरतों को 15 मिनट की पैदल या बाइक की सवारी के भीतर पूरा करने में सक्षम होना चाहिए। इस सक्षमता का मतलब यह होगा कि वाहनों की आवाजाही की संख्या काफी कम हो जाएगी।
क्या भोजन के लिए 10 मिनट की डिलीवरी के बजाय, काम करने के लिए 10 मिनट की पैदल दूरी बेहतर नहीं होगी? प्रत्येक भारतीय शहर में आदर्श रूप से एक मास्टर प्लान होना चाहिए, एक रणनीतिक शहरी नियोजन दस्तावेज जिसे एक-दो दशक के अंतराल पर अद्यतन किया जाए। इस तरह की योजनाओं में गरीबी से होने वाले विस्थापन पर ध्यान के साथ किफायती आवास पर ध्यान देना जरूरी है।