लेकिन हम इसे जितना सीधा समझ रहे हैं वह इतना सीधा है नहीं. अगर आपको लगता है कि अमेरिका इतनी आसानी से ऐसे किसी चीज का समर्थन कर देगा, जिससे उसका नुकसान होता हो तो आप को अमेरिका को और जानने की जरूरत है. दरअसल अमेरिका ने वैक्सीन से पेटेंट हटाने की बात कही है ना कि उससे जुड़ी तकनीक और उपकरणों या फिर कच्चे माल से. जाहिर सी बात है वैक्सीन से पेटेंट हटाकर भी आप क्या कर लेंगे जब तक उसके निर्माण के लिए आपको कच्चा माल ही सही कीमत और सही समय पर नहीं मिल पाएगा. अमेरिका का इतिहास रहा है कि उसने कभी भी अपने घाटे का सौदा नहीं किया है. जाहिर सी बात है इस वक्त भी अपने फायदे की ही सोच रहा है, क्योंकि वैक्सीन बनाने के लिए जिन उपकरणों या फिर कच्चे माल का प्रयोग होता है भारत और तमाम देश वह अमेरिका से ही खरीदते हैं.
कैसे हट सकता है पेटेंट
विश्व व्यापार संगठन (WTO) के नियमों के अनुसार, किसी भी उत्पाद से पेटेंट केवल तीन ही हालातों में हटाया जा सकता है. पहला, जब उस उत्पाद से कोई बहुत बड़ा खतरा टाला जा सकता हो. दूसरा जब वह उत्पाद पूरे मानव जाति के लिए जरूरी हो. तीसरा तब उत्पाद से पेटेंट हटाया जा सकता है जब पूरी मानव सभ्यता उस पर टिकी हो और केवल उसी से बचाई जा सकती हो. कोरोनावायरस के समय यह तीनों नियम लागू होते हैं. इसलिए इस बात की काफी संभावना है कि जल्द वैक्सीन पर से पेटेंट हट सकता है. हालांकि इसके निर्माण में उपयोग होने वाले कच्चे माल और उपकरणों पर अमेरिका क्या निर्णय लेता है इस पर सबकी नजर बनी रहेगी.
क्या है वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन का पेटेंट कानून
वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन के पेटेंट लॉ के मुताबिक किसी भी उत्पाद का पेटेंट कराने का मतलब होता है कि उससे जुड़े सभी कानूनी अधिकार उस व्यक्ति या संस्था के पास हो जाते हैं जिसने इस उत्पाद का पेटेंट कराया हो. यानि जब किसी उत्पाद का पेटेंट हो जाता है तो कोई दूसरा व्यक्ति उसकी कॉपी नहीं कर सकता है. ज्यादातर दवा कंपनियां इस कानून का इस्तेमाल करती हैं और अपनी तैयार की गई दवा का पेटेंट करा लेती हैं. क्योंकि एक दवा को तैयार करने में दशकों की मेहनत और ढेर सारा पैसा लगता है. इसलिए कोई भी कंपनी नहीं चाहती कि उसके दवा का डुप्लीकेट मार्केट में मिले इससे जिस कंपनी ने दवा की खोज की है उसे भारी नुकसान झेलना पड़ सकता है.
वैक्सीन पर कैसे पड़ रहा है सर
दरअसल जब कोरोनावायरस की वैक्सीन बनी तो उसे बनाने वाली तमाम कंपनियों ने इसका पेटेंट करा लिया और वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन के कानून के मुताबिक उन्हें इन वैक्सीनों पर 20 साल का पेटेंट प्राप्त है. इससे हो यह रहा है की टीके की खोज करने वाली कंपनियों ने पूरी दुनिया में जिन चुनिंदा कंपनियों को अपने टीके के उत्पादन का लाइसेंस दिया है केवल वही इसका उत्पादन कर रहे हैं. इस वजह से दुनिया भर में वैक्सीन की कमी है. अगर यह पेटेंट हटा दिया जाता है तो कोरोना वैक्सीन का उत्पादन दुनिया भर की कंपनियां कर सकती हैं, इससे लोगों तक कोरोना वैक्सीन बेहद आसानी से और कम कीमत पर पहुंच जाएगा. पूरी दुनिया को इस महामारी से बचाने का इस वक्त केवल एक ही तरीका है कि उन्हें जल्द से जल्द कोरोना की वैक्सीन दे दी जाए.
वैक्सीन के पेटेंट पर क्या कहती है दुनिया
इस वक्त अमेरिका सहित दुनिया के 80 देश यह चाहते हैं कि वैक्सीन से पेटेंट हटा दिया जाए. जिससे लोगों को तेजी से कोरोना वैक्सीन मिल सके. लेकिन ब्रिटेन, कनाडा और यूरोपीय यूनियन जैसे कई विकसित देश और उनकी फार्मा कंपनियां इस कानून का कड़ा विरोध कर रही हैं. 8 से 9 जून को विश्व व्यापार संगठन में एक बैठक होने वाली है जिसमें इस बात को लेकर चर्चा होगी कि क्या कोरोनावायरस वैक्सीन से पेटेंट हटाया जाना चाहिए या नहीं. जाहिर सी बात है जिसकी तरफ ज्यादा सहमति होगी फैसला उसी के हक में आएगा और जिस तरह से अमेरिका सहित दुनिया के 80 देश पेटेंट को हटाने की समर्थन में है उससे साफ जाहिर होता है कि डब्ल्यूटीओ में यह प्रस्ताव पास हो सकता है.
पेटेंट हटने के बाद भी आएंगी कई मुश्किलें
हम जिस तरह का सपना देख रहे हैं कि अगर वैक्सीन से पेटेंट हट जाता है तो हमें तुरंत कोरोनावायरस से निजात मिल जाएगी, ऐसा सोचना बिल्कुल गलत है. क्योंकि हर काम एक प्रक्रिया के अनुसार होता है जिसमें समय लगता है. डब्ल्यूटीए में प्रस्ताव पारित होने और दुनिया के तमाम कंपनियों को उत्पादन की अनुमति मिलते-मिलते कई महीनों का वक्त गुजर जाएगा. इसके बाद जो सबसे बड़ी मुसीबत सामने आएगी वह यह है कि वैक्सीन के निर्माण में इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल और उपकरणों का इंतजाम इतनी ज्यादा मात्रा में कैसे हो सकेगा और अभी तक जो बात चली आ रही है वह केवल वैक्सीन के निर्माण पर पेटेंट हटाने की बात हो रही है, ना कि उसमें इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल और उपकरणों पर पेटेंट हटाने की बात हो रही है.
जाहिर सी बात है अगर हम छोटी कंपनियों को वैक्सीन बनाने का अधिकार दे भी दें तो उनके लिए कोरोना वैक्सीन को बनाने में इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल और उपकरणों का इंतजाम करना टेढ़ी खीर साबित होगा. इस वक्त दुनिया की आबादी लगभग 1.3 अरब है. इतनी बड़ी आबादी को इतनी जल्दी वैक्सीन की दो डोज लगा देना आसान बात नहीं है. हालांकि भारत ने इस समस्या से निपटने के लिए भी एक अर्जी दी है उसने अमेरिका सरीखे कई देशों से कच्चे माल और वैक्सीन बनाने में इस्तेमाल होने वाले उपकरणों पर पेटेंट हटाने की बात कही है, लेकिन भारत की बात कितने देश मानते हैं यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा.
भारत में वैक्सीन को लेकर क्या हो सकता है
इस वक्त भारत के पास केवल एक ही वैक्सीन है जिसकी खोज भारत की कंपनी ने भारत में ही किया है. वह है 'कोवैक्सीन' जिसे भारत बायोटेक ने बनाया है. सरकार को चाहिए कि वह भारत बायोटेक से बातचीत करके इस वैक्सीन से पेटेंट हटवा दे और इसका उत्पादन करने के लिए भारत की बड़ी फार्मा कंपनियों को आगे लाए. इससे इस वैक्सीन के निर्माण में भी तेजी आएगी जिसकी जरूरत इस वक्त देश को सबसे ज्यादा है. क्योंकि हिंदुस्तान इस वक्त कोरोनावायरस की दूसरी लहर से जूझ रहा है और अगर समय रहते यहां लोगों को वैक्सीन नहीं दिया गया तो तीसरी लहर आने की भी पूरी संभावना है. ऐसे में भारत के पास केवल एक ही रास्ता है कि वह अपने लोगों को जल्द से जल्द कोरोना की वैक्सीन लगा दे.