उत्तराखंड राजनीति : कांग्रेसी पृष्ठभूमि वाले बीजेपी नेता काम बिगाड़ रहे सत्तारूढ़ पार्टी का

उत्तराखंड, 70 विधानसभा सीटों वाले इस छोटे से राज्य में इतनी ज्यादा सियासी उठापटक है

Update: 2021-11-09 15:11 GMT

संयम श्रीवास्तव उत्तराखंड, 70 विधानसभा सीटों वाले इस छोटे से राज्य में इतनी ज्यादा सियासी उठापटक है कि आज तक सिर्फ एक मुख्यमंत्री एनडी तिवारी को छोड़ दिया जाए तो किसी ने भी अपना कार्यकाल 5 सालों तक पूरा नहीं किया. यानि उत्तराखंड की स्थिति ऐसी होती है कि दिल्ली में बैठे आलाकमान को विपक्ष से ज्यादा अपने पार्टी के अंदर की गुटबाजी से डर लगता है. क्योंकि कब कौन सा गुट कोई दांव चलकर उत्तराखंड में सरकार गिरा दे कुछ कहा नहीं जा सकता. हालांकि इस वक्त उत्तराखंड की सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी उन नेताओं से परेशान है जो फिलहाल हैं तो बीजेपी का हिस्सा लेकिन उनकी पृष्ठभूमि कांग्रेस वाली रही है.

दरअसल इस वक्त उत्तराखंड बीजेपी में कई दिग्गज नेता कांग्रेस की पृष्ठभूमि वाले हैं और वही नेता पुष्कर सिंह धामी की सरकार से खुश नजर नहीं आ रहे हैं. इन नेताओं के बीजेपी में आने का सिलसिला शुरू हुआ 2012 के विधानसभा चुनाव के बाद. 2012 के विधानसभा चुनाव में उत्तराखंड में कांग्रेस पार्टी को बहुमत मिला और उसकी सरकार बनी. उस वक्त कांग्रेस की तरफ से उत्तराखंड में दो मुख्यमंत्री के दावेदार थे. पहले विजय बहुगुणा और दूसरे हरीश रावत. लेकिन कांग्रेस आलाकमान ने विजय बहुगुणा को आगे करते हुए मुख्यमंत्री बना दिया और हरीश रावत पीछे रह गए.
लेकिन सियासी उठापटक वाले इस राज्य में मुख्यमंत्रियों के बदलते देर नहीं लगती. विजय बहुगुणा के मुख्यमंत्री बनने के लगभग 1 साल बाद ही उत्तराखंड में गंभीर प्राकृतिक आपदा आई, जिसके बाद राज्य में काफी जान माल का नुकसान हुआ. कांग्रेस आलाकमान तक यह संदेश पहुंचा कि विजय बहुगुणा इस परिस्थिति से निपटने में फेल साबित हुए. इसके बाद 31 जनवरी 2014 को विजय बहुगुणा से इस्तीफा ले लिया गया और फिर बाद में मुख्यमंत्री बनाया गया हरीश रावत को. हालांकि हरीश रावत को मुख्यमंत्री बनाए जाने से विजय बहुगुणा और उनका गुट खुश नहीं था. लिहाजा विजय बहुगुणा और उनके गुट, जिनमें हरक सिंह रावत, यशपाल आर्य जैसे दिग्गज नेता शामिल थे बीजेपी में शामिल हो गए. इस तरह से उत्तराखंड में बनी दो कांग्रेस एक बीजेपी के अंदर और एक बीजेपी के बाहर, जिससे मूल बीजेपी अब जूझ रही है.
सरकार बीजेपी की मंत्री कांग्रेस के
2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी के अंदर चल रहे हो उठापटक की वजह से चुनाव हार गई. और भारतीय जनता पार्टी को उत्तराखंड में बहुमत मिला. सरकार बनने पर त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया गया और उनके साथ जिन 10 मंत्रियों की शपथ दिलाई गई उसमें पांच वह चेहरे थे जो कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए थे. कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता हमेशा यह कह कर बीजेपी की हंसी उड़ा देते कि भारतीय जनता पार्टी की उत्तराखंड में सरकारी कांग्रेसियों के दम पर चल रही है. हालांकि जैसा उत्तराखंड में होता आया है त्रिवेंद्र सिंह रावत भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए. त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाकर बाद में तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया गया और फिर तीरथ सिंह रावत को हटाकर पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बनाया गया.
घर वापसी की तैयारी में पुराने कांग्रेसी
जो दिग्गज नेता कांग्रेस छोड़कर विजय बहुगुणा के साथ भारतीय जनता पार्टी का दामन थामे थे. अब फिर से कांग्रेस में जाने की बात कर रहे हैं. यशपाल आर्य तो कांग्रेस में पिछले दिनों शामिल भी हो गए. अब खबर आ रही है कि हरक सिंह रावत और सतपाल महाराज भी कांग्रेस में वापसी की राह तलाश रहे हैं. यशपाल आर्य बीजेपी सरकार में तीनों मुख्यमंत्रियों के साथ काम कर चुके हैं और सतपाल महाराज भी मौजूदा सरकार में वरिष्ठ मंत्री हैं. ऐसे में अगर चुनाव से ऐन पहले यह बड़े-बड़े दिग्गज नेता बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में शामिल होते हैं तो भारतीय जनता पार्टी के लिए उत्तराखंड के विधानसभा चुनाव में मुश्किलें खड़ी हो जाएंगी. क्योंकि एक तो पार्टी के अंदर ऐसे ही उठापटक की वजह से तीन मुख्यमंत्री बनाए जा चुके हैं. ऊपर से अगर पार्टी के दिग्गज नेता पार्टी छोड़ देते हैं तो जनता के बीच भारतीय जनता पार्टी को लेकर गलत संदेश जाएगा.
जहां मिली मलाई वहां चले नेताजी
भारतीय राजनीति में अब कोई विचारधारा नाम की चीज बची नहीं है. जहां मलाई दिखती है नेताजी वहीं कटोरी लिए चल देते हैं. जब यह बड़े नेता कांग्रेस पार्टी में थे तब उन्हें लगा कि अब कांग्रेस में हरीश रावत की सरकार बन चुकी है और उन्हें मलाई खाने को नहीं मिलेगी. तो वह बीजेपी की ओर अपना रुख कर गए और अब उन्हें समझ आ रहा है कि बीजेपी में भी उन्हें ना तो मुख्यमंत्री की कुर्सी मिलने वाली है. ना ही आने वाले समय में उतनी मलाई खाने को मिलेगी और जिस तरह की उत्तराखंड की रीत रही है कि हर 5 साल में सरकार बदल जाती है, उसे देख कर भी यह नेतागण सोच रहे हैं कि अब बीजेपी तो सरकार में रहेगी नहीं फिर इस पार्टी का हिस्सा बनकर क्या फायदा. इसलिए अपनी पुरानी पार्टी में घर वापसी ही कर लेना ही बेहतर होगा.
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