प्रदीप पंडित
पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में से चार राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने जा रही है। मुट्ठी भर आरजुओं का गारा, इच्छाओं और जरूरतों की अन्न की बाली लेकर भाजपा के योगी आदित्यनाथ ने यूपी चुनाव में उतरने की तैयारी की। वे तमाम लोग जो योगी की सीधी रीढ़ से परेशान थे, उन्होंने कहना शुरू कर दियाा कि इस बार सवर्ण विशेषकर ब्राह्मण और दलित वोट इनके साथ नहीं हैं। बिना ये समझे कि योगी अपने कार्यकाल में गरीबों और वंचितों के लिए 43 लाख मकान बना चुके। वे पूरे समय महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान की चिंता में उनके चूल्हे और अब तक की दूसरी सरकारों द्वारा ईनाम में उन्हें दी गई रोती रातों को हँसाने में लगे रहे। और यही वजह है कि यूपी भाजपा को प्रदेश में एलआईसी मानती रही। यानी लीडरशिप (एल) आइडियोलॉजी (आई) और (सी) कॉडर। एक गारंटी की तरह मतदाताओं ने इसे लिया। अखिलेश यादव को आश्चर्य है कि इतनी भीड़ जुटने के बावजूद उन्हें वोट क्यों नहीं मिला। यह अचरज की बात है ही नहीं। भीड़ तो प्रियंका गाँधी की सभाओं में भी जुटी, लेकिन वोट तो उनके प्रदेश अध्यक्ष लल्लू को भी नहीं मिला। इसे जिद कर प्रियंका ने स्वयं अध्यक्ष बनाया और लगातार रैलियां भी की।
वे सारे लोग जो रैलियों में जुटते हैं, वे पार्टी के सदैव मतादाता नहीं होते। याद रखना जाना चाहिए कि अटल बिहारी वाजपेयी उस दौर की सभाओं में भी लाखों की उपस्थिति होती थी, लेकिन वोट कांग्रेस को मिलता था। वस्तुत: अखिलेश की दिक्कत यह है कि वे राजनीति को महज अंकगणित का खेल मानते हैं, जबकि ऐसा है नहीं। छोटी संख्या के वोटरों के मत प्रतिशत को जोड़कर वे विजय की संभावना तलाशने निकले। और इसी का नतीजा है कि पश्चिमी यूपी में 97 सीटों में से 72 पर भाजपा ने कब्जा जमाया, पूर्वांचल की मात्र 25 सीटों पर सपा पहुंच पायी, अवध में सपा 25 और भाजपा 85, रोहिल खंड की 52 सीटों में से 41 भाजपा और सपा 10 पर ठिठक गई।
इसने क्या साबित किया? इसने साबित किया कि किसान आंदोलन किसी तरह से यूपी का आंदोलन नहीं था। यहां के किसान उससे, उसकी मांगों से मुतमईन नहीं थे। जाट वेल्ट को बेवजह बताया गया कि वह भाजपा के साथ नहीं है। ऐसा होता तो प. यूपी में भाजपा को इस तरह की विजय नहीं मिलती। परिणामों ने बताया कि गैर- जाटव दलित भाजपा के साथ हैं। बताया कि पीलीभीत में वरुण गाँधी की बगावत का कोई असर नहीं पड़ा। छत्तीसगढ़ के पूर्व मंत्री और वर्तमान भाजपा विधायक बृजमोहन अग्रवाल को वहाँ प्रभारी के रूप में भेजा गया था। उन्होंने वहाँ से लौटने पर बताया था कि पीलीभीत की सभी सीटें हम जीत रहे हैं और वरुण की बगावत का कोई फर्क नहीं पड़ रहा।
नतीजों की बारीकी से देखें तो पता चलेगा कि यह पारंपरिक चुनावी अर्थों की स्थिति नहीं है। यदि ऐसा होता तो तीन दशक से ज्यादा हो गया। यहाँ कोई सरकार रीपीट नहीं करती। इसी को आधार मानकर अखिलेश ने रथ तैयार किया था। लेकिन अमरोहा की सभी चार सीटें भाजपा की झोली में गई जो बताती हैं कि एमवाय कनेक्शन भी सपा की गलतफहमी है। इसी तरह आजमगढ़ की 6 में से 3 सीटें भाजपा को मिली। बहराइच की सभी 7 सीटों पर भाजपा का परचम है। इसका साफ अर्थ है कि राकेश टिकैत से लेकर प्रियंका गाँधी तक किसानों को बरगला नहीं पाए। बाराबंकी और बस्ती की ज्यादातर सीटों पर समाजवादी पार्टी को जगह नहीं मिली। अलबत्ता, इस चुनाव में इतना जरूर हुआ कि मतदाता ने चुनाव को बहुकोणीय नहीं होने दिया। वह सीधे सपा से चुनाव में बदल गया। इसी तरह को वोट शेयर भी है। सपा को 32 फीसदी, बसपा को 13 फीसदी और भाजपा को 42 फीसदी वोट मिले। इसी तरह लखनऊ की 7 सीटें भाजपा के पास और 2 समाज पार्टी की तरफ गई हैं। प्रयागराज की 9 सीटों पर भाजपा और 3 पर समाजवादी पार्टी ने 9 सीटों पर भाजपा और 3 पर समाजवादी पार्टी ने ध्वजारोहण किया है। बात इतनी भर है कि जिन लोगों को योगी पर भरोसा नहीं था उनका राजनीतिक परिकसन गलत साबित हुआ। वोटों ने बाबा है और रहेगा पर अपनी मुहर लगा दी।
विचारार्थ यह भी कि मणिपुर, उत्तराखंड और गोवा में भी भाजपा के लिए कोई खास चुनौती पेश नहीं आई। पर यह उन सबके लिए आश्चर्य मिश्रित खेद का विषय है जो हर चुनाव को मोदी सरकार के लिए दिया मेन्डेट साबित करने में जुटे रहते हैं। तो क्या अब वे मानेंगे कि इस आधार पर जनता में अब भी मोदी के लिए लबालब समर्थन है। मणिपुर कांग्रेस जीत सकती थी, लेकिन उनसे इसका कोई प्रयास नहीं किया और भाजपा 33 सीटें जीत गई। यह बिल्कुल असम की तरह का चुनाव था। यानी संभावनाओं के लिहाज से। गोवा में 19 सीटें भाजपा को मिल गई हैं और यहाँ भी कांग्रेस की उम्मीदें डायलेसिस पर हैं। उत्तराखंड जिसकी उम्मीद पारंपरिक आंकलनकर्ता इस बार बदलाव में कर रहे थे, वहाँ भी नए-नए मुख्यमंत्री धामी ने जीत का परचम फरहरा दिया है। कांग्रेस की आपसी खींचतान, कतरब्योंत, निंदा- सतुति के चलते पंजाब उससे छिन गया। यह साधारण बात नहीं कि आम आदमी पार्टी की सरकार वहाँ बनने जा रही है। यह पूरा पहला राज्य है जहां केजरीवाल निर्णायक होंगे। पहले अकाली दल ने फिर कांग्रेस ने गलतियां कीं और आम आदमी पार्टी को रास्ता दे दिया। यह आने वाले समय में एक नए किस्म की राजनीतिक बिसात की शुरूआत है। कांग्रेस अब तो चेते।