हंगामा बनाम जवाबदेही
संसद के मानसून सत्र का दूसरा दिन भी हंगामे की भेंट चढ़ गया। हालांकि सरकार पहले से इस बात के लिए तैयार थी कि यह सत्र हंगामेदार होने वाला है |
संसद के मानसून सत्र का दूसरा दिन भी हंगामे की भेंट चढ़ गया। हालांकि सरकार पहले से इस बात के लिए तैयार थी कि यह सत्र हंगामेदार होने वाला है, मगर इसी बीच कुछ राजनेताओं और पत्रकारों के फोन से जासूसी करने का मामला उजागर हुआ, तो फिर वही सबसे बड़ा मुद्दा बन गया। परंपरा के मुताबिक प्रधानमंत्री सदन में अपने नए मंत्रियों का परिचय कराना चाहते थे, पर हंगामे की वजह से वह भी नहीं हो पाया। विपक्ष चाहता था कि पहले उसके सवालों पर चर्चा हो, फिर बाकी मुद्दों पर बातचीत हो। तमाम अवरोधों के बावजूद दूसरे दिन दोपहर बाद राज्यसभा में कोरोना को लेकर बहस शुरू हुई। इस पर विपक्ष ने सरकार को घेरा। कोरोना की दूसरी लहर में जिस तरह पूरे देश में अफरा-तफरी का माहौल देखा गया, अस्पतालों में बिस्तर उपलब्ध नहीं थे, दवाएं नहीं मिल पा रही थीं, आॅक्सीजन की भयानक कमी हुई, उसके चलते लाखों लोगों की जान चली गई, उस पर सरकार से सवाल तो पूछे ही जाने थे। इसके अलावा केंद्र और राज्य सरकारों पर कोरोना से हुई मौतों के आंकड़े छिपाने के भी आरोप हैं, जिस पर विपक्ष ने सरकार से जवाब मांगा। फिर कोरोना के टीके उपलब्ध न हो पाने की असल वजहें स्पष्ट करने की मांग की गई।
इस मसले पर विपक्ष के हंगामे के बीच स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि कोरोना को लेकर राजनीति नहीं की जानी चाहिए। यह ठीक है कि आपदा के वक्त सियासी नफे-नुकसान से ऊपर उठ कर उससे पार पाने के लिए एकजुटता की जरूरत होती है। पर हकीकत यह भी है कि सरकार खुद इसे राजनीतिक रंग देने के आरोपों से बच नहीं सकती। पहली लहर के मंद पड़ते ही सरकार ने उसे संभालने का बढ़-चढ़ कर श्रेय लेना शुरू कर दिया। फिर जब टीके लगाने की बात आई तब भी सरकार ने उसका राजनीतिक लाभ लेने का प्रयास किया। पहले बिहार के चुनाव में मुफ्त टीके की घोषणा की गई, फिर जगह-जगह लोगों को लुभाने के लिए इसके मुफ्त वितरण की बात कही गई। जब विपक्षी दलों ने सवाल उठाए, तो बार-बार टीकाकरण के नियमों में बदलाव किए गए, फिर अंतत: सभी को मुफ्त टीके लगाने की घोषणा की गई। फिर उसका भी श्रेय लेते हुए देश भर में होर्डिंग लगाए गए। पहली लहर के थमते और टीकाकरण अभियान शुरू होते ही जैसे मान लिया गया कि अब कोरोना का कोई खतरा नहीं है। उसी का नतीजा था कि दूसरी लहर में लाखों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। इस शिथिलता की जवाबदेही आखिरकार सरकार पर ही तो है।
कोरोना के टीकाकरण अभियान में अब तक अपेक्षित गति नहीं आ पाई है। इसके चलते बहुत सारे टीका केंद्र बंद हैं और लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। गैर-भाजपा शासित प्रदेशों की सरकारें अक्सर केंद्र पर टीके उपलब्ध कराने के मामले में भेदभाव का आरोप लगाती हैं। यह तब है, जब केंद्र ने बाहर से टीके मंगाने शुरू कर दिए हैं और अपने यहां टीका उत्पादन बढ़ाने पर जोर दिया गया है, टीके की पहली और दूसरी खुराक के बीच की अवधि बढ़ा दी गई है। आरोप है कि सरकार ने समय रहते टीकों की खरीद, उत्पादन और वितरण के मामले में व्यावहारिक रुख अख्तिायार नहीं किया। इन आरोपों की सफाई में सरकार से सदन के सामने तथ्यात्मक जानकारियां उपलब्ध कराने की अपेक्षा स्वाभाविक है। वह यह कह कर इससे अपना पल्ला नहीं झाड़ सकती कि इस मुद्दे पर राजनीति नहीं होनी चाहिए।