यह मेरा कहना नहीं बल्कि सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि लखीमपुर खीरी कांड की जांच को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार गंभीर नहीं। तभी तो अभी तक कुल 164 गवाहों में से मात्र 44 के ही बयान दर्ज क्यों हुए? साफ बात है कि सरकार इतनी धीमी जांच चला कर विधानसभा चुनाव तक इसे ठंडे बस्ते में डाल देना चाहती है। अभी तक तो केंद्रीय राज्य मंत्री महोदय का इस्तीफा तक नहीं लिया गया केंद्र सरकार की ओर से। सीधी बात है कि वे जांच को प्रभावित करने के लिए खुले छोड़ दिए गए हैं। लखीमपुर खीरी कांड के बाद से उत्तर प्रदेश सरकार बैकफुट पर है।
पहले तो विपक्ष को वहां पीडि़त परिवारों से मिलने ही न दिया, जब प्रियंका गांधी और दीपेंद्र हुड्डा हिरासत में लिए जाने के बाद भी डटे रहे तब कहीं जाकर मिलने की इजाजत मिली, नहीं तो कह रहे थे कि इसे टूरिस्ट प्लेस न बनाइए। उधर अखिलेश यादव को भी घर पर ही घेर लिया गया था, जबकि जयंत को भी हिरासत में ले लिया गया था। बाद में पांच-पांच प्रतिनिधियों के साथ जाने की इजाजत दी गई। अब वही हाल आगरा के लिए प्रियंका गांधी के साथ किया गया। पहले हाइवे पर रोक लिया और बाद में पांच लोगों के प्रतिनिधिमंडल के साथ जाने की इजाजत दे दी। वैसे प्रियंका गांधी ने रोके जाने पर कहा कि क्या वे रेस्ट हाउस को ही अपना घर मान लें? किसी भी जगह विपक्ष को विरोध करने के अधिकार से वंचित करने की कोशिश क्यों करते हैं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ? अब तो सुप्रीम कोर्ट भी सवाल कर रहा है कि जांच की रफ्तार इतनी सुस्त क्यों? रोज़ गोदी मीडिया में अपनी सरकार की रिकार्डिड उपलब्धियां गिनवाने से क्या लखीमपुर खीरी कांड की याद भूल जाएगी? क्या लखीमपुर खीरी कांड धुल जाएगा? विपक्ष इतनी आसानी से इसे भुलाने न देगा। क्या सन् 84 के दिल्ली दंगे भुला दिए गए? विपक्ष यानी आज के सत्ताधारी दल ने इसे भूलने दिया? तो आप जांच में सहयोग क्यों नहीं कर रहे? केंद्रीय गृह राज्य मंत्री को पद से मुक्त क्यों नहीं कर देते साहब? लोकतंत्र की परंपराओं का पालन कीजिए और जांच में सहयोग कीजिए।
-कमलेश भारतीय, साहित्यकार