UP Assembly Election: क्या उत्तर प्रदेश में कम मतदान राजनीति से निराशा के संकेत हैं?
कम मतदान का मतलब मौजूदा सरकार को झटका हो सकता है
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election) के चौथे चरण में 59 सीटों पर मतदान (Voting) के साथ चुनाव का आधा चरण पूरा हो गया. हालांकि, चौथे चरण में भी कम मतदान का ट्रेंड जारी रहा, साथ ही अवध क्षेत्र (Awadh Region) के नौ जिलों में 61.65 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया, जो 2017 में हुए 62.55 प्रतिशत मतदान की तुलना में थोड़ा कम है. चौथे चरण का मतदान लगभग शांतिपूर्ण था. हालांकि, 2017 के विधानसभा चुनावों की तुलना में हुआ कम मतदान लोगों को जुटाने में सत्तारूढ़ बीजेपी की नाकामयाबी का संकेत दे रहा है.
तराई क्षेत्र के लखीमपुर खीरी और पीलीभीत जिलों में, जहां अक्टूबर 2021 में किसानों के खिलाफ हिंसा भड़की और चार सिख किसानों की मौत हो गई थी, क्रमशः 67.15 और 67.16 प्रतिशत का उच्चतम मतदान दर्ज किया गया. 2017 के चुनावों में, बीजेपी ने लखीमपुर खीरी में 68.47 प्रतिशत मतदान और पीलीभीत में 67.05 प्रतिशत मतदान के साथ दोनों जिलों में जीत हासिल की थी. सीतापुर जिले में 62.66 प्रतिशत मतदान हुआ, जबकि अन्य जिलों में 60 प्रतिशत से कम मतदान किया गया, वहीं उन्नाव में सबसे कम 57.73 प्रतिशत मतदान दर्ज हुआ.
हालांकि, लखनऊ जिले ने 60.05 प्रतिशत मतदान के साथ 60 प्रतिशत का आंकड़ा पार कर लिया. जिलाधिकारी और जिला निर्वाचन अधिकारी अभिषेक प्रकाश ने बताया कि 1952 के बाद पहली बार लखनऊ में मतदान 60 प्रतिशत से ज्यादा हुआ है. लखनऊ में लगभग सभी बूथों पर मतदान के लिए भीड़ देखी गई, लेकिन दोपहर में मतदान की रफतार धीमी पड़ गई. महिलाओं ने बड़ी संख्या में मतदान में हिस्सा लिया. 2012 में जिले में 56.49 फीसदी और 2017 में 58.45 फीसदी मतदान हुआ था.
कम मतदान का मतलब मौजूदा सरकार को झटका हो सकता है
सात चरणों वाले 2022 यूपी विधानसभा चुनाव के पिछले तीन चरणों में मतदान प्रतिशत 60.17 प्रतिशत (प्रथम चरण में), 64.42 प्रतिशत (दूसरे चरण में) और 57.58 प्रतिशत (तीसरे चरण में) रहा. बीजेपी ने 2017 में चौथे चरण में हुए 59 सीटों में से 50 पर जीत हासिल की थी, इसके बाद सपा, कांग्रेस और बीएसपी के लिए चार सीटों पर दो-दो सीटें और अपना दल (बीजेपी की सहयोगी) ने एक सीट जीती थी. 2012 में, सपा 40 सीटों के साथ इस क्षेत्र में आगे चल रही थी, जबकि बीजेपी ने चार सीटों पर जीत हासिल की थी, बीएसपी (BSP) ने 12, कांग्रेस ने दो और पीस पार्टी ने एक सीट जीती थी.
कम या ज्यादा मतदान का राजनीतिक दलों की संभावनाओं के साथ सीधा संबंध है या नहीं, यह एक विवादास्पद मुद्दा है. ऐसे चुनाव हुए हैं जहां उच्च मतदान ने मौजूदा सरकार की मदद की है और इसका उल्टा भी हुआ है. इसलिए, उत्तराखंड, गोवा और पंजाब में हाल ही में संपन्न चुनावों में कम मतदान प्रतिशत से कोई निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता. उत्तर प्रदेश में चल रहे चुनाव में भी अब तक के चार चरणों के मतदान में 2017 के चुनाव की तुलना में कम मतदान का ट्रेंड जारी रहा.
अधिकांश राजनीतिक विश्लेषक अनुमान लगा रहे हैं कि पिछले चुनाव की तुलना में राज्यों में कम मतदान का मतलब मौजूदा सरकार को झटका हो सकता है. उनका तर्क है कि बीजेपी ने 2017 में यूपी, उत्तराखंड और गोवा में सीटों के मामले में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया था, और इस बार कम मतदान पार्टी की गिरती लोकप्रियता का संकेत दे रही है. पंजाब में कम वोटिंग का मामला अलग है. इसके उलट, ऐसा भी कहा जा रहा है कि कम मतदान वास्तव में बीजेपी की मदद करेगा क्योंकि यह एक कैडर-बेस्ड पार्टी है.
मतदान प्रतिशत और चुनावी भविष्यवाणी
स्टडीज इन इंडियन पॉलिटिक्स नाम की पत्रिका में प्रकाशित मिलन वैष्णव और जोनाथन गाय की 2018 के एक स्टडी के अनुसार, जिसमें 1980 और 2012 के बीच 18 प्रमुख भारतीय राज्यों के चुनावों के आंकड़ों को देखा गया, मतदाता प्रतिशत और चुनावी परिणाम के बीच कोई संबंध नहीं है. हालांकि, एक थ्योरी यह भी है कि कम मतदान से बीजेपी जैसी कैडर-बेस्ड पार्टियों को फायदा होता है. इस थ्योरी के समर्थक, डॉ प्रणय रॉय और दोराब सोपारीवाला द्वारा भारतीय चुनावों और मतदान के बारे में लिखी गई किताब का जिक्र करते हैं.
2004, 2009 और 2014 के लोकसभा चुनावों के परिणामों का विश्लेषण करते हुए, लेखकों ने निष्कर्ष निकाला कि "लगातार तीन चुनावों में, बीजेपी ने कम मतदान वाले निर्वाचन क्षेत्रों में बेहतर प्रदर्शन किया." उनके मुताबिक, औसतन मतदान को लेकर कम उत्साह होने पर भी बीजेपी के कार्यकर्ता वोट जुटाने में सक्षम हैं. लेकिन ऐसी स्टडी भी हैं जो बताती हैं कि ज्यादा मतदान होने पर बीजेपी को फायदा होता है. पॉलिटिकल साइंटिस्ट नीलांजन सरकार ने बताया कि जिन जगहों पर मतदान में सबसे अधिक वृद्धि देखी गई, वे भी बीजेपी की जीत के मुताबिक थी. उनका कहना है कि नए मतदाताओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा पार्टी समर्थक था, या कहें कि वो खास तौर से मोदी के लिए मतदान कर रहे थे.
अगर हाल के चुनावों की बात करें तो मतदान संख्या इस बात का संकेत नहीं है कि जनादेश किस दिशा में जा रहा है. आमतौर पर कहा जाता है कि उच्च मतदान से विरोधी पक्ष का फायदा होता है. वोटिंग संख्या में अचानक उछाल एक खास दिशा में लहर का संकेत दे सकता है. लेकिन किसी भी राज्य में जहां हाल ही में विधानसभा चुनाव हुए थे (या चल रहे हैं) कोई लहर नहीं दिखाई दे रही थी, जो उसके कम मतदान से भी जाहिर हुआ. पांच राज्यों के चुनावों में एक महत्वपूर्ण बदलाव देखा गया (मणिपुर और यूपी में जहां अभी भी मतदान बाकी है) शहरी केंद्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक मतदान प्रतिशत था. हालांकि, यह भी मतदाता के झुकाव को समझने में बहुत मदद नहीं करता है, क्योंकि सभी दलों ने ग्रामीण वोट बैंक को अपनी ओर झुकाने का हर संभव प्रयास किया था.
कम मतदान राजनीति के प्रति हताशा को दर्शाता है
कम मतदान प्रतिशत केवल एक पार्टी के लिए नहीं बल्कि सभी राजनीतिक दलों के प्रति निराशा का संकेत देता है. और यह यूपी के साथ-साथ अन्य राज्यों पर भी लागू होता है. पंजाब में मतदान प्रतिशत 2017 में 77.4 फीसदी के मुकाबले 2022 में 71.92 फीसदी रह गया. साथ ही, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि उत्तर प्रदेश में चार चरणों में हुआ मतदान क्षेत्र के आधार पर अलग-अलग था. यूपी में शहरों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में मतदाताओं की संख्या ज्यादा थी. जबकि कानपुर शहर में केवल 56.14 प्रतिशत मतदान हुआ. शहरी मतदाता, ग्रामीण मतदाताओं की तुलना में कम उत्साहित दिखे, शायद नागरिक मुद्दों पर पर्याप्त जोर न होना इसकी एक बड़ी वजह हो सकती है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)