UP Assembly Elections 2022: आख़िर कांग्रेस ने क्यों थामा मौलाना तौक़ीर रज़ा का हाथ?

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (UP Assembly Elections) की सरगर्मियों के बीच सबसे चौंकाने वाली ख़बर कांग्रेस (Congress) और इत्तेहाद-ए-मिल्लत कौंसिल के गठबंधन की आई है

Update: 2022-01-18 12:03 GMT

यूसुफ़ अंसारी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (UP Assembly Elections) की सरगर्मियों के बीच सबसे चौंकाने वाली ख़बर कांग्रेस (Congress) और इत्तेहाद-ए-मिल्लत कौंसिल के गठबंधन की आई है. सोमवार को लखनऊ में इस गठबंधन का ऐलान हुआ. कौंसिल के अध्यक्ष मौलाना तौकीर रज़ा खान (Maulana Tauqeer Raza Khan) ने कांग्रेस का हाथ थामते ही अखिलेश पर ज़ोरदार हमला बोला. उन्होंने समाजवादी पार्टी को मुसलमानों का बीजेपी से कहीं बड़ा दुश्मन बताया. मौलाना ने आरोप लगाया कि अखिलेश यादव के शासन के दौरान 176 दंगे हुए और इनके दोषियों को सजा नहीं मिली.

उन्होंने यह भी कहा कि उनकी अखिलेश से कई दौर की बातचीत हुई. इस दौरान उन्होंने जनना चाहा कि प्रदेश में दोबार उनकी सरकार बनी तो वो मुसलमानों के ख़िलाफ़ हिंसा रोकने के लिए क्या क़दम उठाएंगे. लेकिन अखिलेश किसी भी तरह का भरोसा देने में नाकाम रहे. बताया जाता है कि मौलाना सपा से गठबंधन चाहते थे, लेकिन उनकी दाल नहीं गली तो उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया. हर चुनवा में किसी न किसी पार्टी से गठबंधन करना मौलाना की मजबूरी होती है. हर चुनाव में उन्हें किसी न किसी बड़ी पार्टी के सहारे की जरूरत होती है. लिहाज़ा उन्हें तो गठबंधन करन ही था. लेकिन सवाल ये पैदा होता है कि आख़िर कांग्रेस के सामने ऐसी क्या मजबूरी थी कि उसने बग़ैर जनाधार वाली पार्टी से गठबंधन कर लिया.
मौलाना तौक़ीर रज़ा से गठबंधन कर के कांग्रेस गलती कर रही है
हालांकि अभी यह साफ नहीं है कि कांग्रेस मौलाना की पार्टी के लिए कितनी सीटें छोड़ेगी? यह भी साफ नहीं है कि क्या मौलाना कांग्रेस के मंच से प्रियंका गांधी के साथ कांग्रेस के लिए प्रचार करेंगे या नहीं? अगर मौलाना प्रियंका गांधी के साथ मंच साझा करके कांग्रेस के लिए वोट मांगेंगे तो क्या उनके कहने पर उत्तर प्रदेश के मुसलमान कांग्रेस को वोट देंगे? यह सवाल इसलिए उठ रहे हैं कि इससे पहले जिन पार्टियों के साथ मौलाना तौक़ीर रज़ा ने गठबंधन किया उन्हें तो मौलाना के कहने पर भी मुसलमानों ने वोट नहीं दिया था. तो यह उम्मीद कैसे की जा सकती है कि उनके कहने पर प्रदेश के मुसलमान कांग्रेस की झोली में अपना वोट डाल देंगे? कहीं कांग्रेस मौलाना से गठबंधन करके वही ग़लती तो नहीं कर रही जो उसने असम में मौलाना बदरुद्दीन अजमल की पार्टी से गठबंधन करके की थी.
मौलाना तौक़ीर रज़ा के साथ हुए कांग्रेस के गठबंधन पर सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि-
2009 के लोकसभा चुनावों से पहले इन्हीं की वजह से कांग्रेस की काफी फजीहत हुई थी. तब मौलाना ने 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को समर्थन देने का वादा किया था और कांग्रेस ने उन्हें भरोसा दिया था कि 2012 के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी के साथ गठबंधन किया जाएगा. लेकिन उनके एक पुराने विवादित बयान के चलते सारा खेल बिगड़ गया था. उस समय उत्तर प्रदेश कांग्रेस की अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी थीं और प्रभारी महासचिव कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह थे. मीडिया के सवालों से घिरने पर इन सबको प्रेस कॉन्फ्रेंस बीच मे ही छोड़ कर भागना पड़ा था.
अभी हाल ही में मौलाना ने हरिद्वार और रायपुर मे हुए साधु संतों के धर्म संसद के जवाब में बरेली में मुस्लिम धर्मगुरुओं की जवाबी धर्म संसद बुलाई थी. इसमें भी मौलान ने आपत्तिजनक बयान दिया था.
2009 की कांग्रेस क्या अब बदल गई है
फरवरी 2009 में गठबंधन के ऐलान के लिए दिल्ली में कांग्रेस मुख्यालय 24 अकबर रोड पर हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान यह सवाल उठा था, कि कांग्रेस उस मौलाना की पार्टी से क्यो गठबंधन कर रही है जिसने 2006 में अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश की गर्दन काटने वाले को 25 करोड़ रुपए इनाम देने का ऐलान किया था. जबकि कांग्रेस हिंदुओं के हाथ काटने की बात करन वाले बीजेपी के उम्मीदवार वरुण गांधी की गिरफ्तारी की मांग को लेकर चुनाव आयोग का दरवाज़ा खटखटा रही है. इस पर हंगामा मच गया था. इसी हंगामे के बीच मौलाना रीता बहुगुणा जोशी और दिग्विजय सिंह को प्रेस कॉन्फ्रेंस छोड़कर भागना पड़ा था. बाद में सोनिया गांधी ने दिग्विजय सिंह को बुलाकर कड़ी फटकार लगाई थी. तब सोनिया ने दिग्विजय सिंह को हिदायत दी थी कि पार्टी में लोगों को शामिल करने से पहले या उनके साथ गठबंधन करने से पहले उनके बारे में अच्छी तरह जांच पड़ताल कर लिया करें.
सवाल यह है कि 2009 में तब के प्रभारी महासचिव दिग्विजय सिंह को दी गई सोनिया गांधी की हिदायत मौजूदा प्रभारी महासचिव प्रियंका गांधी के लिए भी लागू होती है या नहीं? जिस गलती पर दिग्विजय सिंह को सोनिया गांधी की फटकार पड़ी थी, क्या उसी गलती को लेकर प्रियंका गांधी को भी फटकार नहीं पड़नी चाहिए? मौलान तौक़ीर रज़ा के साथ गठबंधन का ऐलान प्रियंका गांधी से उनकी मुलाकात के बाद ही हुआ है. ग़ौरतलब है कि हाल ही में मौलाना तौक़ीर रज़ा ने हरिद्वार और रायपुर में हुई साधु संतों की संसद धर्म संसद के जवाब में बरेली के इस्लामिया इंटर कॉलेज में मुस्लिम धर्मगुरुओं की धर्म संसद बुलाई थी. इसमें उन्होंने भी काफी भड़काऊ बयानबाज़ी की थी. सवाल उठता है कि जब कांग्रेस मुसलमानों के नरसंहार करने की साधु संतों की गिरफ्तारी की मांग कर रही है तो फिर मुस्लिम धर्म गुरुओं की जवाबी धर्म संसद आयोजित करके मुसलमानों को भड़काने वाले मौलाना तौकीर रजा के साथ चुनावी गठबंधन क्यों कर रही है?
मौलाना तौक़ीर रज़ा का नहीं है कोई जनाधार
चुनावी राजनीति के लिहाज से भी देखें तो मौलाना तौक़ीर रज़ा की इत्तेहाद-ए-मिल्लत कौंसिल के साथ कांग्रेस को गठबंधन करके कुछ ख़ास हासिल होने वाला नहीं है. मौलाना तौक़ीर रज़ा खुद को देश भर में बरेलवी मसलक के मुसलमानों का एक छात्र नेता होने का दावा ज़रूर करते हैं, लेकिन हकीकत यह है कि बरेली से बाहर उन्हें और उनकी पार्टी को कोई जानता तक नहीं. कौंसिल का कहीं कोई ठोस वोट बैंक नहीं है. पिछले विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी इत्तेहाद-ए-मिल्लत कौंसिल ने 13 सीटों पर चुनाव लड़ा था. उन्हें सिर्फ 49,860 वोट मिले थे. यानि पूरे 50,000 वोट भी नहीं मिले. 12 सीटों पर उनके उम्मीदवारों की ज़मानत ज़ब्त हुई थी. कुछ सीटों पर उनके उम्मीदवार पांच हज़ार से ज्यादा वोट पा गए थे, लेकिन ज़्यादातर सीटों पर हज़ार वोट भी नहीं मिल पाए थे.
2012 के चुनाव में उनकी पार्टी ने 18 सीटों पर चुनाव लड़ा था. तब उनके 16 उम्मीदवारों की ज़मानत ज़ब्त हुई थी. उनकी पार्टी ने एक सीट जीती थी और उसे 1,90,052 वोट मिले थे. बरेली ज़िले की भोजीपुरा सीट पर उनके उम्मीदवार शाज़िल अंसारी जीते थे. दरअसल शाज़िल अंसारी बीएसपी से बरेली के कई बार विधायक रहे हैं, इस्लाम साबिर अंसारी के बेटे हैं. तब उन्हें सपा और बसपा से टिकट नहीं मिल पाया था, तो वो मौलाना की पार्टी से चुनाव लड़े. 2012 में मौलाना पीस पार्टी के साथ गठबंधन में शामिल थे. इस सीट पर पीस पार्टी का उम्मीदवार नहीं था. पीस पार्टी ने शाज़िल अंसारी को समर्थन दिया था. शाज़िल अंसारी मौलाना की पार्टी के जनाधार से कहीं ज़्यादा अपने पारिवारिक रसूख़ और अंसारी बिरादरी के वोटों के बलबूते चुनाव जीते थे.
तौक़ीर रज़ा से बेहतर था AIMIM और पीस पार्टी का साथ
पिछले साल हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने असम में मौलाना बदरुद्दीन अजमल की यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के साथ तालमेल किया था. इसके बावजूद वो चुनव हार गई. तब इस गठबंधन को लेकर कांग्रेस के भीतर ही गंभीर सवाल उठे थे.
आनंद शर्मा समेत कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं ने खुलेआम ये सवाल उठाया था कि धर्मनिरपेक्ष मूल्यों में यकीन करने वाली कांग्रेस ऐसी पार्टी से कैसे चुनावी गठबंधन कर सकती है, जो धर्म विशेष को एकजुट करने की राजनीति करती है. इसे लेकर कांग्रेस की काफी फजीहत हुई थी. इसके बावजूद कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में वही गलती दोहराई है. मौलाना तौक़ीर रज़ा कट्टरपंथी माने जाते हैं और कई विवादित बयान उनके साथ जुड़े हुए हैं.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के जो सवाल असम में यूडीएफ से गठबंधन को लेकर थे, आज कांग्रेस के सामने उत्तर प्रदेश में भी सामने खड़े हैं. इनका जवाब प्रभारी महासचिव प्रियंका गांधी को देना होगा.
अहम सवाल यह भी है कि अगर कांग्रेस को किसी मुस्लिम नेतृत्व वाली पार्टी से गठबंधन करना ही था तो उसने इसके लिए पीस पार्टी या असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन को क्यों नहीं चुना, इन दोनों पार्टियों के अध्यक्ष पूरी तरह से राजनीतिक हैं. पिछले चुनाव में मौलाना तौक़ीर रज़ा की पार्टी के मुकाबले इन पार्टियों का प्रदर्शन कहीं ज्यादा बेहतर रहा था. पिछले चुनाव में जहां पीस पार्टी ने 68 सीटें लड़कर 2,27,998 वोट हासिल किए थे. जो कुल वोटों का .26 फीसदी था. वहीं असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन को 2,04,142 वोट मिले थे. ये कुल वोटों का .23 फीसदी थे. दोनों ही पार्टियां उत्तर प्रदेश में मौलाना तौकीर रजा की यादें मिल्लत कौंसिल के मुकाबले कहीं ज्यादा जनाधार रखती हैं. ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि आख़िर इन पार्टियों को छोड़कर कांग्रेस ने मौलाना का हाथ क्यों थामा.
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