यूपी विधानसभा चुनाव 2022: आखिरी चरण के रण की तैयारी, कौन किस पर कितना भारी?
यूपी विधानसभा चुनाव 2022
यूसुफ़ अंसारी।
उत्तर प्रदेश में सातवें यानी आखिरी चरण के मतदान के लिए प्रचार का शोर थम गया है. आखिरी चरण का रण जीतने के लिए बीजेपी और समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. वहीं बीएसपी (BJP) और कांग्रेस (Congress) ने भी अपना वजूद और साख बचाने के कोई कोर कसर बाकी नहीं रखी. आखिरी चरण में पूर्वांचल के वाराणसी से लेकर आज़मगढ़ तक कुल 9 जिलों की 54 विधानसभा सीटों के लिए वोट डाले जाएंगे. आखिरी चरण में कुल 75 महिलाओं समेत कुल 613 उम्मीदवारों चुनाव मैदान में हैं. इन सीटों पर 2.06 करोड़ मतदाता इनके भाग्य का फैसला करेंगे. पिछले चुनाव में सातवें और आखिरी चरण वाली इन 54 सीटों में से बीजेपी गठबंधन ने कुल 37 सीटें जीती थी. इनमें बीजेपी ने 29, अपना दल (एस) ने 4, सुभासपा ने 3 और निषाद पार्टी ने एक सीट जीती थी. दूसरे स्थान पर रही सपा ने 11 और तीसरे स्थान पर रही बसपा ने 6 सीटें जीती थीं. इन नौ ज़िलों में कांग्रेस का खाता भी नहीं खुला था. तब कांग्रेस का समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन था. इस बार सुभासपा बीजेपी का साथ छोड़कर समाजवादी पार्टी के साथ है. बीजेपी के साथ अपना दल (एस) और निषाद पार्टी है. कांग्रेस अकेले दम पर ताल ठोक रही है. आखिरी चरण के मतदान से पहले सभी ने अपने-अपने ढंग से पूरा जोर लगाया है.
चुनाव प्रचार में धर्म का तड़का
आख़िरी चरण के चुनाव प्रचार में धर्म का खूब तड़का लगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 के बाद हुए हर चुनाव में इस बार भी बाबा विश्वनाथ के मंदिर में जाकर पूजा की. बाबा विश्वनाथ मंदिर में पीएम मोदी ने मंत्रोच्चारण के साथ पूजा-अर्चना की. साथ ही डमरू भी खूब बजाया. इस बार भी चुनाव प्रचार में धर्म का तड़का लगाने से नहीं चूके. अखिलेश यादव गिरजाघर पहुंचने के बाद काशी विश्वनाथ धाम पहुंचे. वहां उन्होंने बाबा विश्वनाथ का दर्शन पूजन कर उनका आशीर्वाद लिया. ग़ौरतलब है कि इससे पहले पांचवें चरण के चुनाव से पहले अखिलेश यादव ने अयोध्या पहुंचकर हनुमानगढ़ी मंदिर में पूजा की थी और हनुमान की मूर्ति लेकर रोड शो किया था. काशी में पीएम मोदी का दांव दोहरा कर अखिलेश ने साबित कर दिया वो अब बीजेपी से उसके अखाड़े में ही दो-दो हाथ करने को तैयार हैं.
पीएम मोदी की साख दांव पर
आख़िरी चरण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की साख दांव पर है. अपनी साख बचाने के लिए पीएम मोदी को खुद वाराणसी की सड़कों पर उतरना पड़ा. पीएम मोदी ने कई किलोमीटर तक रोड शो करके मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए वोट मांगे. उनका काफिला कई विधानसभाओं से होकर गुजरा. ग़ौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2014 से ही वाराणसी से सांसद है. पिछले विधानसभा चुनाव में जिले की सभी 8 सीटें बीजेपी और उसके सहयोगी दलों ने जीती थी. इनमें से छह सीटें बीजेपी ने जबकि एक-एक सीट उसके सहयोगी अपना दल और सुभासपा ने जीती थी. इस बार सुभासपा बीजेपी के साथ नहीं है. उसने सपा का दामन थाम लिया है. बीजेपी के लिए सभी सीटें जीतना एक बड़ी चुनौती है. एक भी सीट की कमी से सीधे पीएम मोदी की साख पर बट्टा लगेगा. लिहाज़ा बीजेपी की सभी सीटें और अपनी साख बचाने के लिए मोदी खुद मैदान में उतरे.
आज़मगढ़ में अखिलेश की साख दांव पर
काशी पीएम मोदी की साख दांव पर है तो आजमगढ़ में अखिलेश यादव की. दोनों ने ही अपनी अपनी साख बचाने के लिए भरपूर ताकत का प्रदर्शन किया है. छठे चरण के मतदान वाले दिन अखिलेश यादव ने अपने गठबंधन के तमाम नेताओं को एक मंच पर बुलाकर अपनी और अपने गठबंधन की ताक़त का अहसास कराया. अखिलेश के मंच से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी पीएम मोदी और मुख्यमंत्री योगी को ललकारा. आज़मगढ़ ज़िले में दो लोकसभा और 10 विधानसभा सीटें हैं. पिछले चुनाव में यहां पांच सीटें सपा, 4 बसपा ने जीती थी. बीजेपी को सिर्फ एक सीट पर ही संतोष करना पड़ा था. हांलांकि पिछली बार भी सपा को यहां बसपा से कड़ी चुनौती मिली थी. इस बार मायावती के आखिरी चरणों में ज्यादा सक्रिय होने से से अखिलेश के सामने अपने गढ़ में पार्टी की सीटें और अपनी साख बचाने की चुनौती बढ़ गई है.
ओवैसी की चुनौती
हालांकि उत्तर प्रदेश में करीब साल भर से असदुद्दीन ओवैसी मुस्लिम वोटों पर दावेदारी पेश करके सपा और बीएसपी की मुश्कलें बढ़ाने की कोशिश करते रहे हैं. छह चरणों में उनका कोई खास असर देखने को नहीं मिला. लेकिन सातवें चरण में आज़मगढ़ की मुबारकपुर सीट से उनकी पार्टी का उम्मीदवार समीकरण बिगाड़ने की कोशिश कर रहा है. इस सीट से दो उनके उम्मीदवार शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली हैं. जमाली लगातार दो बार यहां से बीएसपी के टिकट पर जीते हैं. चुनाव से पहले उन्होंने बीएसपी छोड़ सपा का दामन थाम लिया था. लेकिन वहां से उन्हें टिकट नहीं मिला. बीएसपी में भी उनकी वापसी की कोशिश बेकार गई. हार कर उन्होंने असदुद्दीन ओवैसी का झंडा उठा लिया. सातवें चरण में वो सबसे अमीर उम्मीदवार हैं. जमाली के सहारे ओवैसी समीकरण बिगाड़ने की पूरी कोशिश कर रहे हैं. ओवैसी लगातार कह रहे हैं कि बीजेपी को हराना अखिलेश के बस के बात नहीं है.
दागियों और बाहुबलियों का बोलबाला
सातवें चरण में सबसे अधिक बाहुबली और धनबल प्रत्याशियों का बोलबाला है. नेतीओं के आपराधिक रिकार्ड पर नजर रखने वाली संस्था एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक, सातवें चरण में भी तमाम सियासी दलों ने दागियों और बाहुबलियों को बढ़ चढ़कर टिकट थमाया है. सभी पार्टियों के कई उम्मीदवारों पर गंभीर मुकदमे दर्ज हैं, इनमें सत्ता पर काबिज बीजेपी सहित सपा, बसपा, कांग्रेस और आप भी शामिल है. सातवें चरण में 28 फीसदी ऐसे प्रत्याशियों को टिकट पार्टियों ने दिया है जिनके ऊपर आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं. इनमें से 22 प्रतिशत ऐसे प्रत्याशियों को टिकट दिया गया है जिन पर गंभीर आपराधिक मामलों में मुक़दमे दर्ज हैं. सभी राजनीतिक दल राजनीति के अपराधीकरण को ख़त्म करने का दावा करते हैं लेकिन एडीआर की रिपोर्ट बताती है कि 2017 विधानसभा चुनाव के मुकाबले इस बार 2022 में दागी प्रत्याशियों में 8 फीसदी का इजाफा हुआ है.
सपा और बीजेपी में 19-20 का फर्क़
पूरे चुनाव के दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक समाजवादी पार्टी पर दंगाइय़ों और माफियाओं और अपराधियों को टिकट देने का आरोप लगाते रहे है. गृहमंत्री अमित शाह तो कई बार कह चुके हैं कि अपराधी तीन जगहों पर पाए जाते हैं. यूपी से बाहर, जेल में या फिर समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों की लिस्ट में हैं. लेकिन सच्चाई ये है कि आपराधिक छवि वालों को टिकट देने के मामले में बीजेपी और सपा में सिर्फ 19-20 का ही फर्क है. समाजवादी पार्टी के 45 उम्मीदवारों में 26 प्रत्याशियों पर आपराधिक मुकदमे हैं. बीजेपी के 47 में से 26 पर, बीएसपी के 52 में 20 पर और कांग्रेस के 54 में से 20 प्रत्याशियों पर आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं. जहां सपा के 20 प्रत्याशियों पर गंभीर धाराओं में केस दर्ज हैं. वहीं बीजेपी के 19 उम्मीदवारों पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं.
दागियों को टिकट थमाने में कोई पार्टी कम नहीं है
कहने को सभी पार्टियां राजनीति से अपराधीकरण को ख़त्म करने का दावा करते नहीं थकतीं लेकिन चुनाव जीतने के लिए उन्हें आपराधिक छवि के नेताओं को टिकट देने में कोई गुरेज नहीं होता. सातवें और अंतिम चरण में अपनी किस्मत आजमा रहे 607 उम्मीदवारों में 28 फीसदी यानी 170 प्रत्याशियों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं. 131 प्रत्याशियों पर हत्या लूट, बलवा, डकैती जैसी गंभीर धाराओं में केस दर्ज हैं. सबसे दागी उम्मीदवार मानव समाज पार्टी से भदोही ज्ञानपुर सीट से चुनाव लड़ रहे विजय मिश्रा हैं. उनके ऊपर 24 केस दर्ज हैं. गाजीपुर के बीएसपी प्रत्याशी राजकुमार सिंह गौतम पर 11 मामले दर्ज हैं और कांग्रेस के पिंडरा विधानसभा से प्रत्याशी अजय राय पर 17 मामले दर्ज हैं. इनके अलावा बीएसपी के 13, कांग्रेस के 12 और आम आदमी पार्टी के 7 उम्मीदवारों पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं.
बहरहाल उत्तर प्रदेश में सातवें चरण के मतदान के साथ ही तमाम उम्मीदवारों और सत्ता की दावेदार पार्टियों की किस्मत ईवीएम में बंद हो जाएगी. इस बार पूर्वांचल के सियासी हालात थोड़े बदले हुए हैं. छोटे दलों में सुभासपा ने पाला बदलकर बीजेपी को कमजोर करने की कोशिश की है. सातवें चरण में जिन सीटों पर चुनाव हैं, वहां पर 2017 के विधानसभा चुनाव को छोड़ दें, तो जातिगत समीकरण चरण 90 के दशक से हमेशा प्रभावी रहे हैं. राजनीतिक विश्लेषक की मानें तो आखिरी चरण के चुनावों में सपा और बसपा के साथ-साथ ओपी राजभर, संजय निषाद और अनुप्रिया पटेल की भी परीक्षा होनी है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)