बेमिसाल नीरज: भाला फेंक में नीरज चोपड़ा की स्वर्णिम सफलता के चलते 13 साल बाद ओलिंपिक में गूंजा राष्ट्रगान

टोक्यो ओलिंपिक में नीरज चोपड़ा ने सचमुच कमाल कर दिया।

Update: 2021-08-08 01:26 GMT

भूपेंद्र सिंहटोक्यो ओलिंपिक में नीरज चोपड़ा ने सचमुच कमाल कर दिया। उन्होंने भाला फेंक में पहला स्थान हासिल कर न केवल देश के लिए पहला स्वर्ण पदक जीता, बल्कि अभिनव बिंद्रा के बाद दूसरे ऐसे खिलाड़ी बन गए, जो किसी व्यक्तिगत स्पर्धा में सबसे आगे रहे। इतना ही नहीं, वह स्वतंत्र भारत के पहले ऐसे खिलाड़ी बने, जिन्होंने एथलेटिक्स में पदक हासिल किया और वह भी स्वर्ण। नि:संदेह ओलिंपिक के एथलेटिक्स में मिल्खा सिंह से लेकर पीटी ऊषा तक ने अपने प्रदर्शन से देश और दुनिया को चमत्कृत किया, लेकिन पदक की आस अधूरी ही रही। इस अधूरी आस को नीरज चोपड़ा ने बेहद शानदार ढंग से पूरा किया। वह किस उच्च कोटि के खिलाड़ी हैं, इसका पता इससे चलता है कि उन्होंने अच्छे-खासे अंतर से न केवल फाइनल में जगह बनाई, बल्कि जीत भी हासिल की। यह असाधारण और उल्लेखनीय है कि उन्होंने भाला फेंक के उस खेल में अपनी बादशाहत हासिल की, जिसमें भारतीय खिलाड़ियों की मुश्किल से ही गिनती होती थी। वह अपनी बेमिसाल कामयाबी के लिए शाबासी के हकदार हैं। उन्हीं के कारण 13 साल बाद ओलिंपिक में राष्ट्रगान गूंजा। उन्होंने देश को उत्साह और आनंद के वे अद्भुत क्षण प्रदान किए, जिनकी लोग व्यग्रता से प्रतीक्षा करते हैं। ऐसे क्षण देश को केवल गौरवान्वित ही नहीं करते, बल्कि लाखों बच्चों और किशोरों को खेल के मैदान में आने के लिए प्रेरित भी करते हैं।

नीरज चोपड़ा की स्वर्णिम सफलता यह बताती है कि भारत उन खेलों में भी कामयाब हो सकता है, जिनके बारे में यह धारणा है कि उनमें हमारे खिलाड़ी कुछ खास नहीं कर सकते। नीरज इसकी मिसाल हैं कि लगन और मेहनत से कुछ भी हासिल किया जा सकता है। भाला फेंक में नीरज के स्वर्ण पदक के साथ भारत ने टोक्यो ओलिंपिक में कुल सात पदक हासिल कर लिए हैं। इसी के साथ यह देश का सबसे सफलतम ओलिंपिक बन गया है। अब कोशिश इस बात की होनी चाहिए कि भारत खेल में एक बड़ी ताकत बने। आज के युग में किसी देश की प्रतिष्ठा इससे भी तय होती है कि वह अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं और विशेषकर ओलिंपिक में कैसा प्रदर्शन करता है? भारत का लक्ष्य अगले या फिर उसके अगले ओलिंपिक की पदक तालिका में शीर्ष 10 देशों में स्थान बनाने का होना चाहिए। यह कठिन काम है, लेकिन असंभव नहीं। इसके लिए उस खेल संस्कृति को और तेजी के साथ विकसित करने पर जोर दिया जाना चाहिए, जिस पर पिछले कुछ वर्षों से काम हो रहा है। इसमें खेल संघों के साथ राज्य सरकारों को भी अपने हिस्से की भूमिका का निर्वाह करना होगा, ताकि हमारे पास कई नीरज चोपड़ा हों।


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