आतंकवाद पर पाकिस्तान के हुक्मरान इमरान खान विश्व बिरादरी में मुंह दिखाने के काबिल नहीं है, शायद तभी उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा में वर्चुअल भाषण देना ही मुनासिब समझा, क्योंकि अब तो पंजशीर में काम निकलने के बाद तालिबानी आतंकी भी पाकिस्तान को आंख दिखाने लगे हैं। इमरान खान में उनके भाषण की हालत एक ऐसे बच्चे की तरह दिखाई दी जिसे पिता तुल्य भारत से मार पीटा हो, छोटा भाई समझने वाले अफगानिस्तान ने आंख दिखा दी हो, ड्रैगन अपने नफा नुकसान से पाकिस्तान की संपदा और संसाधनों का दोहन कर रहा हो और दूर बैठे अंकल सैम निधि उसे बेलआउट पैकेज की मीठी टॉफी देने से इंकार कर दिया हो।
भारत में एक कहावत कही जाती है कि जो एक बार गलती करे वह इंसान, जो बार बार गलती करे वह पाकिस्तान। इमरान खान का भाषण इसी कहावत को चरितार्थ करता हुआ नजर आया। जहां उन्हें यह तो याद रहा कि 80-90 के दशक में सीआईए के साथ आतंकियों की परवरिश करने का खामियाजा 21वीं सदी में पाकिस्तान ने कैसे भुगता, पर फिर पश्तूनों का नाम लेकर अपने मुल्क की कब्र खोदने को तैयार बैठे हैं इमरान, क्योंकि पहले से ही अफगानिस्तान और खास तौर पर पख्तून पाकिस्तान अफगानिस्तान सीमा रेखा डूरण्ड को नहीं मानते ,दरअसल जहां अफगानिस्तान में करीब 2 करोड़ पश्तून हैं, वहीं पाकिस्तान में उनकी जनसंख्या 4 करोड़ से भी ज्यादा है। ऐसे में संभावना तो इस बात की भी है कि आगे चलकर पेशावर से लेकर मुल्तान में पश्तून नेशनलिज्म के नाम पर पाकिस्तान से अलग होने की राह पर चल पड़े।
पाकिस्तान की जम्मू कश्मीर राग में भी हिंदुस्तान की हैसियत का आभास होता है, कैसे जब पिता तुल्य भारत 5 अक्टूबर 2019 को एक नया पाठ पढ़ाता है, तो पाकिस्तान 2 साल बाद भी घड़ियाली आंसू बहाना बंद नहीं हुआ।
आईएटीएफ की ग्रेलिस्ट में बैठा मुल्क ,ओसामा को अपने दामन में छुपा चुका मुल्क, खुद को दहशत गर्द से पीड़ित बताता है और उसे लगता है कि पश्चिमी देश उसकी बातों पर भरोसा कर लेंगे ? उसे भारत ही नहीं यूरोपियन यूनियन और अमेरिका के सांसदों से भी नाराजगी है, मानो एक बच्चा जिसे स्कूल के हर बच्चे से परेशानी हो और यूएनजीए के महासचिव को क्लास टीचर समझ के अपना विधवा विलाप कर रहा हो.।
पाकिस्तान पीएम ने अपने भाषण में ईस्ट इंडिया कंपनी का जिक्र किया बताया कि कैसे भले ही सिंधु का पानी सूखने से पाकिस्तानी प्यासे मर रहे हो, लेकिन गरीबी और गुरबत में आज भी उनका मुल्क डूबता चला जा रहा। दूसरी तरफ हिंदुस्तान है, जिसकी अर्थव्यवस्था ब्रिटेन को पीछे छोड़ चुकी है। ईस्ट इंडिया कंपनी पर आज एक भारतीय कब्जा है। पश्चिमी दुनिया में हर तीसरा डॉक्टर और हर पांचवा वैज्ञानिक भारतीय मूल का है। इस बात का एहसास हिंदुस्तान के वजीर ए आजम को भी है, इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान का नाम लेना भी मुनासिब नहीं समझा।
भारत की अनेकता में एकता की शक्ति को पीएम मोदी ने अपने भाषण में सही अंदाज में दिखाया ना सिर्फ हिंदी में बोले, बल्कि रविंद्र नाथ टैगोर के वचन में बांग्ला और चाणक्य नीति पढ़ाते हुए संस्कृत का भी प्रयोग किया बताया कि, कैसे आजादी के 75 साल में 75 सैटेलाइट भारत के बच्चे बना रहे। कैसे दुनिया की पहली डीएनए वैक्सीन विश्व गुरु भारत दे चुका है और दुनिया की पहली कोरोना के खिलाफ कारगर नैज़ल वैक्सीन देने जा रहा है, भारत अब हाइड्रोकार्बन का आयाक नहीं बल्कि ग्रीन हाइड्रोजन का निर्यातक बनने की तरफ बढ़ चला है।
पीएम मोदी के भाषण में वर्तमान और भविष्य की झलक दिखी, मदमस्त हाथी की चाल दिखी और वह हौसला कि हिंदुस्तान अपने दम पर दुनिया का चेहरा बदल सकता है। जब हर 6वां इंसान हिंदुस्तानी हो, तो उस देश के प्रधानमंत्री का हौसला अलग ही आसमान पर होगा.. मोदी सिर्फ अफगानिस्तान और आतंकवाद पर ही नहीं बोले ,उन्होंने बताया कि कैसे समुंदर के संसाधनों का दोहन पर्यावरण को ध्यान में रखकर किया जाए ? कैसे महासागरीय मार्ग की स्वतंत्रता से ही विश्व व्यापार में आजादी संभव है? कैसे भारत आज अपने भविष्य को ही नहीं विश्व के भाग्य को भी मानवता के सांचे में गढना चाहता है और कैसे खुद यूनाइटेड नेशन को हिंद के हाथी के मद्देनजर अपना दिल और यूएनजीसी का आकार बढ़ाना ही होगा।