बेकाबू हुई महंगाई

दीपावली के मौके पर आमतौर पर लोग खाने-पीने की वस्तुओं के साथ नए सामान की खरीदारी कर के इस उत्सव को अपने लिए खुशनुमा बनाते हैं।

Update: 2020-11-14 09:10 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। दीपावली के मौके पर आमतौर पर लोग खाने-पीने की वस्तुओं के साथ नए सामान की खरीदारी कर के इस उत्सव को अपने लिए खुशनुमा बनाते हैं। लेकिन इस बार पिछले कई महीनों से जैसी हालत बनी हुई है, उसमें खाने-पीने की जरूरी चीजों की कीमतें ही लोगों के लिए चुनौती बनती जा रही हैं। ऐसे में कम जरूरी या टाले जाने सकने वाले वस्तुओं की खरीदारी पर इसका असर स्वाभाविक ही है।

हालत यह है कि रोजाना की थाली तक में कटौती होने लगी है, क्योंकि सब्जियों की ऊंची कीमतें बहुत सारे लोगों की पहुंच से बाहर हो गई हैं। सब्जियों और अंडों की कीमतों में उफान का सीधा असर मुद्रास्फीति की दर पर पड़ा है। गुरुवार को जारी उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के ताजा आंकड़ों के मुताबिक खुदरा मुद्रास्फीति की दर 7.61 फीसद पर पहुंच गई। पिछले छह साल में यह उच्चतम स्तर है। हालांकि बीते कुछ महीनों से इसमें बढ़ोतरी का क्रम बना हुआ था और सितंबर महीने में यह आंकड़ा 7.27 फीसद रहा था।

तब यह उम्मीद की गई थी कि सरकार इसे थामने के लिए जरूरी कदम उठाएगी, लेकिन हालत यह है कि खुदरा मुद्रास्फीति की दर लगातार दूसरे महीने भी सात फीसद से ऊपर बनी हुई है। गौरतलब है कि मुद्रास्फीति की दर का यह स्तर रिजर्व बैंक के संतोषजनक दायरे से काफी ऊपर है।

रिजर्व बैंक अपनी नीतिगत दरों पर फैसला लेने के क्रम में मुख्य रूप से खुदरा मुद्रास्फीति को ही ध्यान में रखता है। सरकार ने रिजर्व बैंक को खुदरा मुद्रास्फीति को दो फीसद के उतार-चढ़ाव के साथ चार फीसद के दायरे में रखने की जिम्मेदारी दी है। लेकिन यह किसी से छिपा नहीं है कि मुद्रास्फीति की दर में मौजूदा उफान की स्थिति खाद्य वस्तुओं की ऊंची कीमतों की वजह से आई है।

बाजार में सब्जियों की कीमतों से सभी वाकिफ हैं।हरी सब्जियों के दाम लोग सिर्फ जानने के लिए पूछने लगे हैं। जो आलू महंगी सब्जियों के दौर में लोगों की थाली में राहत की तरह रहता था, इस बार इसकी खुदरा कीमतें चालीस से पचास रुपए प्रतिकिलो तक पहुंच चुकी हैं। प्याज की कीमतों में कुछ समय पहले थोड़ी गिरावट आई थी, अब फिर उसकी कीमतें पहुंच से बाहर हो चुकी हैं।

वित्त मंत्री का कहना है कि जल्दी खराब होने वाले वस्तुओं का मुद्रास्फीति पर दबाव पड़ रहा है और सरकार बढ़ती कीमतों पर काबू पाने के लिए अल्प तथा मध्यम अवधि के उपाय कर रही है। लेकिन अफसोस है कि यह स्थिति लंबे समय से बनी हुई है और सरकार की ओर से आश्वासनों के अलावा कोई ऐसा ठोस कदम सामने नहीं आ रहा है, जिससे पहले से मुश्किल झेल रहे लोगों को महंगाई से राहत मिले।

महामारी से बचाव के लिए लागू पूर्णबंदी का लोगों के रोजी-रोजगार पर क्या असर पड़ा है, यह सभी जानते हैं। अब भी न तो लोगों के सामने आमदनी के रास्ते सहज हुए हैं, न बाजार गति पकड़ रहा है। हालांकि उम्मीद थी कि पूर्णबंदी में राहत के साथ धीरे-धीरे अर्थव्यवस्था के पटरी पर आने के क्रम में लोगों को महंगाई की विकराल समस्या में कुछ राहत मिलेगी और खाने-पीने के सामानों तक उनकी आसान पहुंच बन सकेगी।

लेकिन पिछले कुछ महीनों से लगातार बाजार का जो रुख दिख रहा है, उसमें राहत के संकेत नजर नहीं आ रहे हैं। खासतौर पर खुदरा वस्तुओं की कीमतों की जो हालत है, उसने आम उपभोक्ताओं के सामने सबसे जरूरी सामान की खरीदारी को भी चुनौती बना दिया है। एक तरफ महामारी से बचाव और दूसरी ओर क्रयशक्ति में गिरावट ने लोगों को दीपावली जैसे त्योहार पर भी कुछ भी खरीदने से पहले सोचने पर मजबूर कर दिया है।

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