Written by जनसत्ता: अर्थव्यवस्था के आंकड़े चाहे जितने भी बेहतर स्थिति को दर्शा रहे हों, लेकिन आम लोगों का जीवन स्तर जिन जमीनी कारकों से प्रभावित होता है, उसी के आधार पर आकलन भी सामने आते हैं। पिछले करीब तीन सालों के दौरान कुछ अप्रत्याशित झटकों से उबरने के क्रम अब अर्थव्यवस्था फिर से रफ्तार पकड़ने लगी है, लेकिन इसके समांतर साधारण लोगों के सामने आज भी आमदनी और क्रयशक्ति के बरक्स जरूरत की वस्तुओं की कीमतें एक चुनौती की तरह बनी हुई हैं।
यों लंबे समय के बाद बीते साल दिसंबर में खुदरा महंगाई दर में खासी गिरावट हुई थी और वह साल में सबसे नीचे यानी 5.72 फीसद पर चली गई थी। तब यह उम्मीद की गई थी कि अब देश शायद मुश्किल दौर से उबर रहा है और बाजार आम लोगों के लिए भी अनुकूल होने की राह पर है। लेकिन बाजार की यह गति देर तक कायम नहीं सकी। सिर्फ एक महीने बाद खुदरा मुद्रास्फीति की दर में एक बार फिर बड़ा उछाल आया है और वह पिछले तीन महीने के उच्च स्तर यानी 6.52 फीसद पर पहुंच गई है।
यह चिंता की वजह इसलिए भी है कि भारतीय रिजर्व बैंक यानी आरबीआइ ने महंगाई की दर को दो से छह फीसद के दायरे में रखने का लक्ष्य तय किया हुआ है। जनवरी से पहले लगातार दो महीने के आंकड़े खुदरा महंगाई दर में कुछ राहत देते दिख रहे थे। लेकिन अब इसका छह फीसद की सीमा को पार करना बताता है कि महंगाई पर काबू पाने के लिए रिजर्व बैंक की ओर नीतिगत दरों में बढ़ोतरी का भी असर ज्यादा कायम नहीं रह सका।
गौरतलब है कि महंगाई के लगातार बेलगाम बने रहने के बीच इसकी रफ्तार थामने के लिए आरबीआइ ने कई बार रेपो दरों में भी बढ़ोतरी की है। इसका तात्कालिक असर भी पड़ता दिखा। लेकिन बाजार में जरूरी वस्तुओं की कीमतों में उछाल देखा जा रहा है और खाद्य वस्तुओं की महंगाई दर 5.94 फीसद पर जा पहुंची है।
हालांकि सब्जियों के दाम फिलहाल नियंत्रण में हैं, लेकिन दूध, मसालों के अलावा र्इंधन और प्रकाश वर्ग में कीमतों के इजाफे ने फिर मुश्किल पैदा की है।यह स्थिति इसलिए भी खतरे की घंटी है कि आरबीआइ इस समस्या के संदर्भ में फिर रेपो दरों में बढ़ोतरी कर सकता है। यह अलग सवाल है कि महंगाई को नियंत्रित करने के लिए अपनाई गई मौद्रिक नीतियां किस स्तर तक कामयाब हो पाती हैं।
जाहिर है, बाजार में खाने-पीने और रोजमर्रा की अन्य जरूरी वस्तुओं की कीमतों में बढ़ोतरी ने न केवल आम जनता, बल्कि सरकार के माथे पर भी शिकन पैदा की है। वजह यह है कि महंगाई से परेशान लोगों ने लंबे समय से इसकी मार झेलते हुए इसकी वजहों को समझने की कोशिश की और संयम बनाए रखा। लेकिन महामारी के दौरान पूर्णबंदी सहित अन्य कई वजहों से आर्थिक मोर्चे पर छाई मायूसी के बादल अब छंटने लगे हैं और कहा जा सकता है कि अर्थव्यवस्था एक बार फिर सामान्य होने की राह पर है।
यानी चूंकि हालात में तेजी से बदलाव आ रहे हैं, इसलिए स्वाभाविक ही लोग बाजार के भी सामान्य और सबकी पहुंच में होने की उम्मीद करने लगे हैं। कुछ समय पहले जब खुदरा महंगाई दर में गिरावट दर्ज की गई थी, तब लोगों के बीच राहत का भाव स्पष्ट तौर पर देखा गया था। इसका कारण भी समझा जा सकता है। दरअसल, आबादी का एक बड़ा हिस्सा अब भी आमदनी और क्रयशक्ति के बीच असंतुलन के दौर से गुजर रहा है। सच यह है कि कई लोग अपनी जरूरतों में भी प्राथमिकताएं तय करने लगे हैं और कम जरूरी चीजों की खरीदारी टाल रहे हैं।
क्रेडिट : jansatta.com