बेकाबू ईंधन

इस वक्त महंगाई पर काबू पाना सरकार के लिए चुनौती बना हुआ है। उस पर पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस और प्राकृतिक गैस की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है।

Update: 2021-07-09 03:34 GMT

इस वक्त महंगाई पर काबू पाना सरकार के लिए चुनौती बना हुआ है। उस पर पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस और प्राकृतिक गैस की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। अब लगभग पूरे देश में पेट्रोल की कीमत सौ रुपए से ऊपर पहुंच गई है। डीजल भी उसी के नक्शे-कदम पर चल रहा है। कुछ दिनों पहले ही रसोई गैस के सिलिंडर की कीमत में भारी बढ़ोतरी की गई थी। अभी प्राकृतिक गैस यानी सीएनजी और पाइप के जरिए घरों में पहुंचाई जाने वाली रसोई गैस यानी पीएनजी की दरों में भी इजाफा कर दिया गया है।

स्वाभाविक ही, इसका असर आम लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी पर पड़ रहा है। कोरोना काल में बाजार, कारोबार, उद्योग-धंधे बंद होने की वजह से लाखों लोगों के रोजगार छिन चुके हैं, लाखों लोगों की वेतन वाली नौकरियां जा चुकी हैं, निजी संस्थानों में कर्मचरियों के वेतन में भारी कटौती की गई है, जो फेरी लगाने, मिस्त्रीगीरी, इधर से उधर सामान पहुंचाने वगैरह का काम किया करते थे, उनके धंधे में भारी गिरावट आई है। ऐसे में देश के हर वर्ग के सामने अपने दैनिक खर्च में संतुलन बिठाना मुश्किल हो रहा है। तिस पर पेट्रोल-डीजल, रसोई गैस आदि की ऊपर चढ़ती कीमतें उनकी चुनौतियां और बढ़ा रही हैं।

ईंधन की कीमतें बढ़ने से रोजमर्रा इस्तेमाल होने वाली दूसरी वस्तुओं की कीमतें भी बढ़ती हैं। उनकी उत्पादन लागत, ढुलाई आदि पर खर्च बढ़ जाता है, जिसे अंतिम रूप से आम उपभोक्ता को ही वहन करना पड़ता है। लोगों की कमाई लगातार घटती गई है और उनके रोज के यातायात और खाने-पीने पर खर्च बढ़ गए हैं। इसके अलावा बच्चों के स्कूल की फीस, उनकी पढ़ाई-लिखाई से जुड़े दूसरे खर्चों को संभालना मुश्किल है। स्थिति यह है कि इस वक्त महंगाई अपने चरम पर है। उसे काबू में करने के तमाम प्रयास विफल हो चुके हैं।

बैंकों की ब्याज दरें निम्नतम स्तर पर रखी गई हैं, ताकि बाजार में कुछ गति आए, पर उसका भी कोई असर नहीं हुआ। इसलिए कि लोगों की क्रयशक्ति काफी कम हो गई है और उन्हें जब रोजमर्रा के खर्च पूरा करने में ही हाथ रोक कर चलना पड़ रहा है तो दूसरे टिकाऊ सामान और विलासिता की चीजों पर उनसे खर्च की उम्मीद ही भला कैसे की जा सकती है। स्वाभाविक ही महंगाई की सबसे बुरी मार निर्धन और औसत आय वाले परिवारों पर पड़ती है। यह सब जानते हुए भी सरकार की तरफ से तेल की कीमतों पर लगाम लगाने के व्यावहारिक उपाय नजर नहीं आ रहे।

यह ठीक है कि जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत बढ़ती है, तो उसका असर खुदरा कीमतों पर भी पड़ती है। मगर यह कोई पहला मौका नहीं है, जब कच्चे तेल की कीमतें बढ़ रही हैं। पिछले कार्यकाल में केंद्र सरकार ने पेट्रोल और डीजल की कीमतों पर इस तर्क के साथ सीधे अतिरिक्त कर लगाए थे कि उस राशि का उपयोग तेल संकट के समय में किया जाएगा। उस राशि से तेल पूल बनाने की भी योजना थी। उस कर में लगातार बढ़ोतरी हुई है, पर तेल संकट से उबरने की दिशा में एक भी उपाय नजर नहीं आता। कुछ राज्य सरकारों ने तेल पर अपने करों में कटौती की है, मगर उसका भी कोई उल्लेखनीय नतीजा नहीं निकला है। जब तक केंद्र सरकार पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस और प्राकृतिक गैस की कीमतों को संतुलित करने के लिए कोई व्यावहारिक कदम नहीं उठाती, तब तक आम लोगों की मुश्किलें शायद ही कम हों।


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