दो और बैंक संकट में

देश के बैंकिंग सैक्टर को जंग लगा हुआ है जो कोई चोरी-छिपे नहीं बल्कि सार्वजनिक रूप से अर्थव्यवस्था को नुक्सान

Update: 2020-11-19 08:48 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। देश के बैंकिंग सैक्टर को जंग लगा हुआ है जो कोई चोरी-छिपे नहीं बल्कि सार्वजनिक रूप से अर्थव्यवस्था को नुक्सान पहुंचाता नजर आता है। खामियाजा भुगतते हैं खातेदार। लोग अब फिर मारे-मारे फिरेंगे। अपना ही धन निकालने के लिए लम्बी कतारों में लगना होगा। पिछले वर्ष के अंतिम महीनों में रिजर्व बैंक आफ इंडिया ने पंजाब एंड महाराष्ट्र को-आपरेटिव बैंक पर अलग-अलग तरह की पाबंदियां लगा दी थीं। फिर नया वर्ष शुरू हुआ तो यस बैंक का संकट सामने आ गया। अब आरबीआई ने देश के सबसे पुराने बैंक लक्ष्मी विलास बैंक और महाराष्ट्र के जालवा जिला में मंता अर्बन कोआपरेटिव बैंक पर पाबंदियां लगा दी हैं। आरबीआई की पाबंदियों के चलते लक्ष्मी विलास बैंक से एक महीने तक ग्राहक सिर्फ 25 हजार ही निकाल सकेंगे। हालांकि इलाज, एजूकेशन फीस और शादी जैसे कामों के लिए ज्यादा रकम निकाली जा सकती है, लेकिन इसके लिए अनुमति लेनी होगी। मंता अर्बन कोआपरेटिव बैंक पर सभी तरह के लेन-देन पर रोक लगाई गई है। निर्देशों के अनुसार बैंक अनुमति बिना कोई कर्ज या उधार नहीं दे सकेगा और न ही पुराने कर्जों का नवीनीकरण तथा कोई निवेेश कर सकेगा। लक्ष्मी विलास बैंक की स्थापना तमिलनाडु के करूर में 1926 में हुई थी। देशभर में बैंक की 16 राज्यों में 566 शाखाएं आैर 918 एटीएम चल रहे हैं। यद्यपि बैंक ने ग्राहकों को भराेसा दिया है कि मौजूदा संकट का उनकी जमाओं पर कोई असर नहीं पड़ेगा। बैंक काफी समय से पूंजी संकट से जूझ रहा था और इसके लिए अच्छे निवेशकों की तलाश की जा रही थी। इससे पहले बैंक के शेयरधारकों की वार्षिक आम सभा में वोट के आधार पर बैंक के एमडी, सीईआे समेत 7 निदेशकों को बाहर कर दिया गया था। लक्ष्मी विलास बैंक ने पहले इंडिया वुल्स के साथ विलय की कोशिश भी की थी, बैंक ने एनबीएफसी के साथ बातचीत भी की थी लेकिन बातचीत नहीं बनी थी। अंततः आरबीआई को कदम उठाना ही पड़ा।

रिजर्व बैंक द्वारा उठाए गए कदमों के चलते यस बैंक और पीएमसी की स्थिति अब बिल्कुल अलग-अलग है। जहां यस बैंक ने इस क्वार्टर में प्राफिट दिखाया है वहीं पीएमसी के ग्राहक आज भी आरबीआई या पीएमसी बैंक की किसी शाखा के आगे नारे लगाते हुए दिख जाते हैं। रिजर्व बैंक की सख्ती से यस बैंक बच गया।

लक्ष्मी विलास बैंक लिक्विडिटी, पूंजी और अन्य महत्वपूर्ण मापदंडों पर बैंक सही से परफार्म नहीं कर पा रहा है। जब बैंक पूंजी जुटाने में असफल रहा तो सार्वजनिक और जमाकर्ताओं के हित में आरबीआई को तत्काल कार्रवाई करनी पड़ी। 521.91 करोड़ के मार्केट कैस वाला ये बैंक न केवल जमाकर्ताओं बल्कि शेयर होर्ल्ड्स के लिए अंधा कुआं सा​बित हुआ। 2017 में इसका शेयर 190 रुपए के करीब था, जो केवल 15.60 पर है।

दरअसल देश के बैंकिंग सैक्टर को लम्बे समय से नोच-नोच कर खाया जा रहा है। बैंकों का कुप्रबंधन, अव्यवस्था और भ्रष्टाचार के चलते अब एक-एक करके सबके कारनामे सामने आ रहे हैं। बैंकों से ऋण दिलवाने का धंधा कोई आज का नहीं है। ऋण दिलवाने के नाम पर बैंकों के छोटे-बड़े कर्मचारी अपनी कमीशन लेते हैं। लेकिन बड़े बैंकर तो बड़ा ऋण दिलवाने के नाम पर मोटी कमीशन लेते हैं। यस बैंक के मामले की जांच के बाद यह पाया गया कि यस बैंक कम्पनियों को बड़े-बड़े लोन देता था कि कमीशन का पैसा राणा कपूर की तीनों बेटियों को ​मिलता था। बैंकाें को जमकर लूटा गया। बैंकों का फंसे हुए कर्ज यानी एनपीए बढ़ता ही चला गया। अनेक लोग ऋण लेकर घी पीते रहे और बाद में भाग गए। राजनीतिक दल इस बात में व्यस्त रहे कि ऋण किस समय दिया गया था और यह घोटाला किस समय पकड़ा गया। सरकार एक लाख करोड़ से भी फंसे हुए लोन राइट आफ कर चुकी है। इनमें से काफी लोन तो सरकार द्वारा ही री-स्ट्रक्चर किए गए थे। बैंक ऋण की रिकवरी तक नहीं कर पाते इसके पीछे भी पूरा तंत्र काम कर रहा होता है। हर स्तर पर भ्रष्टाचार व्याप्त है। ग्रामीण इलाकों के किसान ही बताते हैं कि सरकार द्वारा ग्रामीण इलाकों में पशुधन जैसे गाय, भैंस, बकरी आदि खरीदने के ​लिए कर्ज देने का लक्ष्य रखती है। बैंकों को कर्ज देना पड़ता है। ऐसे में बैंक एक गांव का किसान पकड़ लेती है। बैंक उसे कर्ज देता है। बीमा कम्पनी उस कर्ज का बीमा करती है। उसके लिए वह बाध्यकारी है। पशु को बीमा का टैग लग जाता है। पशु मर जाता है। उसका पोस्टमार्टम भी होता है। बीमा कम्पनी बीमा राशि बैंक को दे देती है। यह सब कुछ एक ही मेज पर ही होता है। सबका लक्ष्य पूरा हो जाता है। ऐसा ही अन्य योजनाओं में होता है। जिस आटा चक्की और पापड़ बनाने वाली मशीन खरीदने के लिए ऋण दिया जाता है, वह खरीदी ही नहीं जाती केवल रसीदें लगाई जाती हैं। कर्ज दिया भी जाता है और वापिसी भी हो जाता है। बड़ी परियोजनाओं को ऋण देने के ​लिए मोल-भाव किया जाता है। बैंकों का लेखा परीक्षण और आंतरिक लेखा परीक्षण का कार्य लगातार चलता रहता है। आश्चर्य की बात है कि वर्षों तक कुछ पता नहीं चलता। बैंकिंग व्यवस्था को और चुस्त, पारदर्शी बनाए बिना देश का विकास सम्भव नहीं। आरबीआई को अपने निगरानी तंत्र को और सुदृढ़ बनाना होगा। वित्त मंत्रालय इस दिशा में लगातार काम कर रहा है। जमाकर्ताओं की पूंजी को भी पांच लाख तक सुरक्षित बनाया गया है, लेकिन अभी भी व्यवस्था के छिद्र बंद करने की जरूरत है।

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