ट्विटर की टर्र-टर्र
सोशल मीडिया प्लेटफार्म यूरोप और पश्चिमी देशों के लिए नए हो सकते हैं। आज की युवा पीढ़ी का इनसे जुड़ना स्वाभाविक है
आदित्य चोपड़ा | सोशल मीडिया प्लेटफार्म यूरोप और पश्चिमी देशों के लिए नए हो सकते हैं। आज की युवा पीढ़ी का इनसे जुड़ना स्वाभाविक है लेकिन अगर भारत का इतिहास पढ़ा जाए तो मौर्य शासन काल में राजनीति के माहिर माने जाने वाले चाणक्य ने ऐसी व्यवस्था कर रखी थी कि ग्रामीण क्षेत्रों में हर गांव के बाहर एक सूचना पट लगा रखा था। जिस पर कोई भी ग्रामीण नागरिक शासन-प्रशासन के विरुद्ध शिकायत लिख सकता था और शिकायत लिखने वाले को अपना नाम भी नहीं लिखना होता था। इन शिकायतों की जांच होती थी और लोगों को न्याय दिलाने के लिए कार्रवाई की जाती थी। इस तरह से मौर्य शासन में लोकतंत्र को मजबूती प्रदान की जाती थी। ऐसी ही व्यवस्था लिच्छवी शासन काल में भी देखी गई। इसमें कोई संदेह नहीं कि लोकतांत्रिक शासन काल में सोशल मीडिया प्लेटफार्मों की जरूरत होती है, जहां लोग अपनी बात खुलकर रख सकें लेकिन ऐसे प्लेटफार्म हिंसा, आतंकवाद और लोगों की विचारधारा प्रभावित करने या उन्हें मानसिक रूप से गुलाम बनने का मंच नहीं होने चाहिए। इसीलिए आज के युग में सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के लिए नियमों और कायदे-कानूनों की जरूरत है। भारत में हमेशा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पक्ष लिया जाता है, क्योंकि किसी भी लोकतांत्रिक देश में लोगों की आवाज को दबाया नहीं जा सकता। केन्द्र सरकार ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर मौजूद आपत्तिजनक कंटेट और भारत की एकता, अखंडता और संप्रभुता के लिए खतरा बन सकने वाले कंटेट पर कम्पनियों की जवाबदेही तय करने के लिए नियम बनाए हैं। 26 जनवरी को देश की राजधानी दिल्ली में किसानों के प्रदर्शन के दौरान अराजक तत्वों ने जमकर उत्पात मचाया था और हिंसा भड़क गई थी। इस दौरान ट्विटर समेत अन्य सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर भड़काऊ और भ्रामक जानकारियां धड़ल्ले से शेयर की गईं। किसान आंदोलन के बीच पाकिस्तान समर्थित खालिस्तानी समर्थकों ने अपनी विचारधारा को फैलाया। केन्द्र सरकार द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफार्मों को बार-बार चेताया लेकिन इन्होंने अड़ियल रुख अपनाया हुआ था। जिसके बाद फरवरी में केन्द्र सरकार ने गाइड लाइन्स जारी कर सोशल मीडिया कम्पनियों को तीन महीने के भीतर नियमों का पालन करने को कहा था। कुछ सोशल प्लेटफार्मों ने नियमों का पालन करना स्वीकार कर लिया है लेकिन ट्विटर और व्हाट्सएप इनका विरोध कर रहे हैं। व्हाट्सएप तो अदालत में पहुंच गया है लेकिन इन सबके बीच ट्विटर ने भारत के उपराष्ट्रपति वैंकेया नायडू, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मोहन भागवत और संघ के कुछ अन्य नेताओं के अकाउंट से भी ब्लू टिक हटा दिया। ब्लू टिक हटाने का अर्थ होता है कि सोशल मीडिया प्लेटफार्म द्वारा किसी के अकाउंट को अनवेरीफाई करना। जब सरकार ने सख्ती दिखाई तो ट्विटर ने अपनी गलती सुधारी और सभी के अकाउंट्स पर ब्लू टिक बहाल कर दिया है। हंगामा तो होना ही था क्योंकि ट्विटर की पूरी कार्रवाई जानबूझ कर की गई शरारत ही प्रतीत होती है। ट्विटर की शरारत से उसकी दोमुंही नीति की भी पोल खुल गई। ट्विटर को वैंकेया नायडू और संघ नेताओं के अकाउंट पर ब्लू टिक हटाने और फिर बहाल करने की जरूरत क्यों पड़ी? अगर उसकी वेरीफिकेशन नीति इतनी मजबूत है तो फिर स्वर्गीय पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी, कांग्रेस नेता अहमद पटेल और कुछ भाजपा नेताओं के अकाउंट अब भी ब्लू टिक के साथ क्यों दिखाई दे रहे हैं। ट्विटर की पूरी कार्रवाई शरारतपूर्ण, भड़काऊ और राजनीतिक विचारधारा से प्रेरित है। जब वाशिंगटन में कैपिटल हिल्स पर हिंसा हुई थी तब तो ट्विटर ने डोनाल्ड ट्रंप और अन्य के अकाउंट सस्पैंड कर दिए थे। ट्विटर भारत में मनमानी कर रहा है। दरअसल ट्विटर एक सुनियोजित रणनीति के तहत एक बहस खड़ी करने की कोशिश कर रहा है। ट्विटर लोगों के बीच यह धारणा बनाना चाहता है कि केन्द्र सरकार सोशल मीडिया प्लेटफार्मों की स्वतंत्रता को दबाना चाहती है। ट्विटर लाख सफाई दे कि जो अकाउंट लम्बे समय तक एक्टिव नहीं थे इस वजह से सिस्टम ने वेरीफिकेशन नीति के तहत ब्लू टिक हटा दिया। मान भी लिया जाए कि यह तकनीकी गलती थी लेकिन ट्विटर ने लद्दाख को भी चीन का हिस्सा बता दिया था। गृहमंत्री अमित शाह का अकाउंट ब्लाक करने के बाद तकनीकी गलती बता कर फिर शुरू कर दिया था। अब सवाल यह उठता है कि ट्विटर बार-बार तकनीकी गलती क्यों कर रहा है। दरअसल उसने भारत के विरुद्ध गुरिल्ला युद्ध शुरू कर रखा है। भारत का लोकतंत्र इतना मजबूत है कि वह ट्विटर की टर्र-टर्र से प्रभावित होने वाला नहीं है। अब जबकि ट्विटर को अंतिम नोटिस भेज कर सरकार ने चेतावनी दे दी है कि अगर भारत में उसे काम करना है तो यहां के संविधान और नियमों का पालन करना होगा। राजनीतिज्ञों को भी