मध्यवर्ग को गुमराह करने की कोशिश

Update: 2023-02-12 05:05 GMT

माननीय वित्तमंत्री ने कहा कि उनकी पांच घोषणाएं 'प्राथमिक रूप से कठिन परिश्रम करने वाले मध्यवर्ग को लाभ पहुंचाएंगी'। वित्तमंत्री ने मध्यवर्ग को परिभाषित नहीं किया। हालांकि उनकी सरकार ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को परिभाषित करते हुए अधिसूचित किया है कि जिन परिवारों की कुल सालाना आय अस्सी हजार रुपए से कम है, वे आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग में आते हैं। यह घोषणा अजय भूषण पांडेय समिति की सिफारिशों के आधार पर की गई थी। इस तरह हम मान सकते हैं कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग में आने वाले लोग गरीब हैं।

प्राइस यानी 'पीपुल रिसर्च आन इंडियाज कंज्यूमर इकोनामी' की तरफ से कराए गए एक दूसरे अध्ययन में यह तथ्य सामने आया कि इकतीस फीसद परिवार, जिनकी सालाना आमदनी पांच लाख से तीस लाख रुपए के बीच है, वे मध्यवर्ग में आते हैं। ऐसे करीब अठाईस करोड़ परिवार हैं।

इनमें कई परिवार ऐसे भी हैं, जिनकी आय का स्रोत केवल कृषि है और उनमें एक से अधिक लोग कमाने वाले हो सकते हैं, मगर उनमें से कोई भी आयकर नहीं देता या रिटर्न भरता है। आयकर विभाग ने 2017-18 में बताया था कि उस साल पांच से दस लाख रुपए सालाना आमदनी वाले 1,47,54,245 और दस से पच्चीस लाख रुपए सालाना आमदनी वाले 45,08,722 लोगों ने आयकर रिटर्न भरा था। ऐसे करीब दो करोड़ लोग थे। उसके बाद से यह संख्या बढ़ी होगी।

हमें तो यह जानने की जरूरत है कि आठ लाख से तीस लाख रुपए सालाना आमदनी वाले कितने लोग आयकर रिटर्न भरते हैं। विभिन्न आंकड़ों का अध्ययन करने के बाद मेरा मोटा अनुमान है कि ऐसे अधिक से अधिक तीन से चार करोड़ लोग होंगे। वित्तमंत्री का दावा है कि इन्हीं लोगों को मिठास भरी नई कर-व्यवस्था के तहत राहत दी गई है।

विभिन्न अखबारों ने (2 फरवरी को) नई और पुरानी कर-व्यवस्था के तहत विभिन्न स्तरों पर आय कर देनदारियों की गणना करके तालिका प्रकाशित की थी और बताया था कि किस स्तर तक पुरानी कर-व्यवस्था अधिक लाभकारी है।

'द हिंदू' इसे पैंतीस लाख रुपए तक रखता है। 'इकोनामिक टाइम्स' इसे साठ लाख रुपए तक ले जाता है। दूसरे अखबारों ने भी इसी तरह की तालिकाएं छापी हैं। वरिष्ठ नागरिकों और अति वरिष्ठ नागरिकों के लिए इन्हीं स्तरों पर पुरानी कर-व्यवस्था को स्पष्ट रूप से बेहतर बताया गया है। सरकार ने इनमें से किसी भी रपट या तालिका का खंडन नहीं किया है।

मेरे सामने अहमदाबाद के एक चार्टर्ड एकाउंटेंट द्वारा तैयार की गई एक 'एक्सेल शीट' है। इसमें वेतन से आय, मानक कटौती, पेशेवर कर, धारा 80 सी और 80 डी के तहत कटौती और आवास ऋण पर भुगतान किए गए ब्याज (2 लाख रुपए प्रति वर्ष) के लिए कटौती दिखाई गई है। इसमें तीस लाख रुपए तक की आमदनी के हर स्तर पर पुरानी कर-व्यवस्था को ज्यादा फायदेमंद बताया गया है। अगर किसी के पास व्यापार और अन्य स्रोतों से आमदनी आती है, तो दस लाख रुपए तक की आय पर पुरानी कर-व्यवस्था अधिक फायदेमंद है और यह पंद्रह लाख से तीस लाख रुपए तक के स्तर पर लगभग बराबर फायदेमंद हो जाती है। इस तरह, जैसा कि परिभाषित किया गया है, यह आम सहमति बनती जान पड़ती है कि मध्यवर्ग के लिए पुरानी कर-व्यवस्था अधिक फायदेमंद है। सरकार का यह तर्क स्पष्ट रूप से गलत है कि मध्यवर्ग के करदाता नई कर-व्यवस्था के तहत कम कर का भुगतान करेंगे।

हालांकि, एक करदाता के नजरिए से, यह मुद्दा अधिक महत्त्वपूर्ण है कि इन दोनों में से क्या अधिक विवेकपूर्ण और लाभदायक होगा कि- वह 'बचाता और खर्च करता है' या 'केवल खर्च करता है'। विकासशील देशों में घरेलू बचत के महत्त्व को सार्वभौमिक रूप से स्वीकार किया जाता है। अधिकांश भारतीयों को सरकार द्वारा बहुत कम या शून्य सामाजिक सुरक्षा प्रदान की जाती है।

इसलिए पचहत्तर वर्षों तक सरकार ने घरेलू बचत के महत्त्व पर बल दिया। घरेलू बचत और कारपोरेट बचत निजी पूंजी का मूल आधार है, जिसे निवेश के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। व्यक्तियों के लिए बचत करना स्वाभाविक नहीं होता; उन्हें बचत के लिए प्रेरित करना पड़ता है। इसलिए, सरकार करों में छूट के जरिए, व्यक्तियों (और कारपोरेट) को निर्दिष्ट योजनाओं या संपत्तियों में बचत करने के लिए प्रोत्साहित करती है।

भाजपा सरकार ने प्रचलित सिद्धांतों को सिर के बल खड़ा कर दिया है। सरकार कह रही है कि खर्च करना देश की अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा है। मैं लोगों द्वारा खर्च करने की जरूरत पर सवाल नहीं उठाता, लेकिन खर्च को बचत के साथ संतुलित करना चाहिए। 'बचत करें और खर्च करें' की सलाह 'ऐसे खर्च करें जैसे कि कल है नहीं' की तुलना में कहीं बेहतर है।

पुरानी कर- व्यवस्था के तहत करदाता को कम कर का भुगतान करना पड़ेगा और इस तरह वह बचत और घोषित आय के बीच संतुलन बना सकेगा। नई कर- व्यवस्था के तहत, करदाता के पास खर्च करने के लिए आमदनी तो बड़ी होगी, मगर बचत कुछ नहीं होगी।

सरकार का इरादा- जो अब छिपा नहीं है- एक गैर-छूट व्यवस्था में जाना है। मैं एक 'कम कर, कुछ छूट' वाली व्यवस्था में यकीन करता हूं, जो बचत को प्रोत्साहित करेगी और खर्च करने के लिए पर्याप्त आय छोड़ेगी। 'कोई छूट नहीं' वाली सख्त प्रणाली के बजाय 'कम कर' वाली प्रणाली होनी चाहिए।

बजट 2023-24 में नई कर-व्यवस्था के तहत कर की सीमांत दर 42.7 फीसद और नई कर-व्यवस्था के तहत यह 39 फीसद है। ये दरें कम कर-व्यवस्था के मिथक को उजागर करती हैं। शुक्र है कि सरकार ने करदाता के लिए इन दोनों में से चुनाव का विकल्प छोड़ दिया है, मगर कब तक?




क्रेडिट : jansatta.com

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