इतिहास से छल करने का प्रपंच
शिक्षा और अकादमिक अनुसंधान के क्षेत्र में भारतीय इतिहास के साथ छेड़छाड़ के प्रयास किसी से छिपे नहीं रहे
कमल वर्मा ।विकास सारस्वत। शिक्षा और अकादमिक अनुसंधान के क्षेत्र में भारतीय इतिहास के साथ छेड़छाड़ के प्रयास किसी से छिपे नहीं रहे। फिर भी पुरातत्व जैसे महत्वपूर्ण और गंभीर क्षेत्र में एजेंडाधारियों का हस्तक्षेप अब भी पूरी तरह उजागर नहीं हो पाया है। पुरातात्विक स्थल और वहां से खोजी वस्तुएं न सिर्फ राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय धरोहर होती हैं, बल्कि वे मानवीय इतिहास और विभिन्न कालखंडों को ठीक से समझने में भी मदद करती हैं। इस क्षेत्र के महत्व को देखते हुए सरकारों से अपेक्षा रहती है कि पुरातत्व स्थलों को अपने गहन पर्यवेक्षण में रखें।
ऐसा इसलिए, क्योंकि केरल के पत्तनम में जारी पुरातात्विक उत्खनन अकादमिक जगत और पुरातत्वविदों के बीच चिंता का विषय बना रहा है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) ने पत्तनम में पामा रिसर्च सेंटर नामक एक एनजीओ को उत्खनन की अनुमति दी थी। हैरानी इस बात की है कि पामा टीम के किसी भी सदस्य के पुरातत्व से संबंध न होने के बावजूद उसे किस आधार पर अनुमति दी गई। हालांकि दो सप्ताह पूर्व एएसआइ ने उस पर रोक लगा दी, परंतु पत्तनम उत्खनन अकादमिक क्षेत्र में पूर्ववर्ती सरकारों द्वारा राजनीतिक और धार्मिक दखल को खुली छूट देने की खराब मिसाल बना है।
पत्तनम के माध्यम से झूठा इतिहास गढ़ने की कवायद 2006 में शुरू हुई। एक सरकारी संस्था होने का भ्रम देने वाली केरला काउंसिल आफ हिस्टारिकल रिसर्च (केसीएचआर) को एएसआइ ने उत्खनन की अनुमति दी। न सिर्फ इस संस्था की कार्यप्रणाली विवादास्पद बनी, बल्कि वित्तीय अनियमितताओं के चलते चीन द्वारा पोषित इस स्वघोषित मार्क्सवादी समूह का एफसीआरए लाइसेंस भी राजग सरकार को रद करना पड़ा। 2015 में उत्खनन की अनुमति के लिए संस्कृति मंत्रलय में जाली दस्तावेज दाखिल करने का मामला सामने आने के बाद यहां उत्खनन पर रोक लगी। संस्था के अध्यक्ष पीजे चेरियन को धांधली के चलते केसीएचआर से इस्तीफा देना पड़ा
बाद में चेरियन ने पामा नाम से नई संस्था बनाकर पत्तनम में मुजिरिस हेरिटेज प्रोजेक्ट नाम से पूर्वकल्पित मंतव्य से कार्य हेतु एएसआइ से फिर लाइसेंस प्राप्त किया। बिना पुख्ता सुबूतों के चेरियन ने स्थल की ऐतिहासिकता ईसा पूर्व 1000 वर्ष बता दी। चेरियन ने पत्तनम को तमिलनाडु के कीलड़ी पुरातात्विक स्थल से जोड़ने का भी प्रयास किया। पत्तनम उत्खनन के साथ कोई बड़ा पुरातत्वविद नहीं जुड़ा, बल्कि दिलीप चक्रवर्ती, टी सत्यमूíत, आर नागस्वामी और प्रोफेसर वसंत शिंदे जैसे अग्रणी पुरातत्वविदों ने उसे अनुचित और संदिग्ध बताया।
जाने-माने पुरातत्वविद प्रोफेसर सुंदर ने पुरातत्व स्थल पर कोई भी ढांचागत अवशेष न होने की स्थिति में चेरियन को उसी मंच से फटकार लगाई। पत्तनम और कीलड़ी में संबंध दर्शाने के लिए चीनी मिट्टी के बर्तन और धातु से बनी वस्तुएं नदारद हैं। यहां से केवल मिट्टी के पात्रों का ही बड़ी संख्या में मिलना नागस्वामी जैसे वरिष्ठ पुरातत्वविदों को अखर रहा है।
इस उत्खनन पर संदेह इसलिए और गहराता है कि देश में ही अंतरराष्ट्रीय स्तर की नेशनल फिजिकल लैबोरेट्री, अहमदाबाद जैसी संस्था होने के बावजूद कार्बन डेटिंग के लिए सैंपल फ्लोरिडा स्थित लैब भेजे गए। एएसआइ द्वारा शुरू किए गए प्रत्येक उत्खनन की समय-समय पर फील्ड रिपोर्टिग जरूरी है, परंतु पत्तनम से नौ वर्ष में एक भी रिपोर्ट नहीं भेजी गई। यह पूरी परियोजना इतनी विवादास्पद रही कि पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने पत्तनम संग्रहालय का उद्घाटन करने से इन्कार कर दिया था।
अकादमिक जगत में निरंतर आलोचना के बावजूद एक समूह की उत्खनन को लेकर आतुरता सभी के लिए कौतूहल का विषय है। दरअसल मुजिरिस हेरिटेज प्रोजेक्ट केरल के प्रभावशाली साइरो मालाबार चर्च द्वारा ईसाइयत के 12 देवदूतों में से एक सेंट थामस के भारत आगमन रूपी मिथक को ऐतिहासिक प्रामाणिकता देने का प्रयास है, ताकि ईसाइयत को भारतीय मूल का धर्म बताया जा सके और ऐसा विमर्श मतांतरण में सहायक बने।
यह योजना यरुशलम और पत्तनम के बीच किसी भी तरह समुद्री संबंध स्थापित कर दिखाना चाहती है कि सेंट थामस ने यहां आकर ईसा मसीह के जीवन काल में ही बस्ती बसाई। जबकि पुरातत्वविद एवं लेखक बीएस हरिशंकर ने सिद्ध किया है कि अपनी भूआबद्ध आकृति के चलते पत्तनम में कभी कोई बंदरगाह होने की संभावना ही नहीं रही। सेंट थामस के भारत आने की कहानी को 15 वर्ष पूर्व तक वेटिकन भी नहीं मानता था।
पोप बेनेडिक्ट-16 ने ऐसी किसी संभावना से साफ इन्कार किया था। चर्च के आधिकारिक ग्रंथ 'एक्ट्स आफ सेंट थामस' में भी सेंट थामस के फारस से आगे जाने का कोई उल्लेख नहीं है। इसके बावजूद साइरो मालाबार चर्च के दबाव में आकर वेटिकन ने 2006 में इस कहानी को मान लिया और इसकी ऐतिहासिक पुष्टि का आदेश दिया। उल्लेखनीय है कि इसी वर्ष पत्तनम में उत्खनन कार्य शुरू हुआ।
चेरियन एसोसिएशन फार द प्रिजर्वेशन आफ सेंट थामस क्रिश्चियन हेरिटेज के अध्यक्ष भी हैं। उनकी संस्था केसीआरएच को देश-विदेश के बाइबल जानकारों के साथ जोड़ा गया। धर्माधता से प्रेरित इस प्रवंचना की जानकारी पत्तनम उत्खनन से जुड़े सुनील पी इलयीडोम के इस दावे से मिलती है कि भगवत गीता सेंट थामस के प्रवचनों पर आधारित है। पुरातत्व द्वारा इतिहास की छलरचना में चर्च और द्रविड़ नस्लीय विचारधारा की साठगांठ रही है।
मदुरई के निकट कीलड़ी उत्खनन में जिन्होंने पुरातत्व स्थल की ऐतिहासिकता को आर्य अतिक्रमण सिद्धांत और द्रविड़ विचारधारा के खांचे में झूठ द्वारा बैठाने का प्रयास किया, वही पत्तनम में भी सक्रिय रहे। दुराग्रह से प्रेरित इस अकादमिक छलावे को द्रमुक और कम्युनिस्ट नेताओं का संरक्षण मिला। कीलड़ी को भारतीय संस्कृति का हिस्सा न मानने वाले द्रमुक नेता त्यागराजन अभी तमिलनाडु के वित्त मंत्री हैं।
भारत पर सभी मत, संप्रदाय और भाषाई लोगों का समान अधिकार है, परंतु अकादमिक और सामाजिक शोध के नाम पर छल द्वारा दुराग्रह से ग्रस्त एजेंडाधारियों को इतिहास से खिलवाड़ की अनुमति नहीं दी जा सकती। एजेंडा से प्रेरित और मानकों के विरुद्ध चले पत्तनम उत्खनन पर रोक अच्छा कदम है। वैसे पामा ने दिल्ली हाई कोर्ट में अर्जी लगाई है, परंतु आशा करनी चाहिए कि अदालत पामा की कारगुजारियों का संज्ञान लेकर सही निर्णय करेगी।