कठघरे में जांच
पिछले साल फरवरी में दिल्ली के उत्तर-पूर्वी इलाके में हुए सांप्रदायिक दंगों ने सभी संवेदनशील लोगों को दहला दिया था। देश की राजधानी होने के नाते सबसे ज्यादा सुरक्षा
पिछले साल फरवरी में दिल्ली के उत्तर-पूर्वी इलाके में हुए सांप्रदायिक दंगों ने सभी संवेदनशील लोगों को दहला दिया था। देश की राजधानी होने के नाते सबसे ज्यादा सुरक्षा-व्यवस्था वाला क्षेत्र होने के बावजूद इन दंगों को शुरुआती दौर में ही रोक पाने में यहां का पुलिस तंत्र नाकाम रहा। ज्यादा अफसोसनाक यह था कि दंगों के बाद आरोपियों की गिरफ्तारी और मामलों की जांच को लेकर पुलिस के रवैये ने फिर यह साफ किया कि चाक-चौबंद सुरक्षा-व्यवस्था के बावजूद व्यापक दंगे बदस्तूर होते रहने की क्या वजहें होती हैं! त्रासद विडंबना यह है कि दंगों को रोक पाने में नाकामी के बाद पुलिस महकमे से जुड़े लोग दर्ज मामलों की जांच को लेकर भी गंभीर लापरवाही बरतते या फिर उन पर पर्दा डालने की कोशिश करते हैं। बुधवार को दिल्ली की एक अदालत ने इसी रवैये को रेखांकित करते हुए जैसी तीखी टिप्पणियां कीं, वह अपने आप में बताने के लिए काफी है कि जिम्मेदारी और जवाबदेही के बरक्स व्यवहार में पुलिस क्या करती है!