यातायात के पंगु मिजाज

हिमाचल में संगत के मायने आजकल अगर राधा स्वामी के परौर डेरा में उज्ज्वल हुए

Update: 2022-04-11 19:07 GMT

हिमाचल में संगत के मायने आजकल अगर राधा स्वामी के परौर डेरा में उज्ज्वल हुए, तो दो लाख के करीब लोगों की आवाजाही ने सारे रास्ते अवरुद्ध कर दिए। अकसर ऐसे जमावड़ों के अवसर पर हिमाचल पिद्दी और फिसड्डी क्यों हो जाता है। महाशब्द के उच्चारण में रैली जुड़े या सम्मेलन, हर बार हमारे प्रयास बौने हो जाते हैं। परौर से गुजरते यात्रियों ने पिछले कुछ दिनों या रविवार को जो महसूस किया, उसे एक परंपरा का निर्वहन मानें या संगत के संदेश व निर्देश के बरअक्स यातायात के पंगु मिजाज से पूछें कि तेरी खता क्या है। कुछ ऐसे ही संदर्भों से लड़ता हिमाचल अपने धार्मिक स्थलों, पारंपरिक मेलों, शहरीकरण, पर्यटक आगमन तथा नागरिक गतिविधियों के सामने पंगु हो रहा है, तो इस बीमारी को लाइलाज होने से पहले उपचार चाहिए। पर्यटन, व्यापार, उद्योग, त्योहार या सामुदायिक व्यवहार को हम सीमित नहीं कर सकते और न ही परिवहन के फैलाव पर अंकुश लगा सकते हैं।

मेले नए संदर्भों में व्यापार और मनोरंजन की आर्थिकी को नई सूरत दिखा रहे हैं। आजकल दाड़ी (धर्मशाला) का धुम्मू शाह मेला अपने दायरे और विविधता को विस्तृत कर रहा है, तो यहां दस से पंद्रह दिनों की रफ्तार को हम बांध नहीं सकते। इसी तरह कल जहां से मेले चंद लोगों और क्षेत्रों की पहचान थे, आज इन्हें व्यवस्थित करना होगा। हम हर साल भीड़ को व्यवस्थित करने की कोशिश में यह भूल रहे हैं कि ऐसे आयोजनों के लिए माकूल अधोसंरचना कैसे बढ़ाई जाए। हर मेला स्थल को अतिक्रमण से बचाने के साथ-साथ, इसके नए आकार की अतिरिक्त जरूरतें पूरी करनी होंगी। दरअसल आयोजनों का वर्गीकरण करते हुए यह समझना पड़ेगा कि भविष्य की अनुरूपता में इन्हें किस तरह सक्षम और सफल बनाया जा सकता है। प्रदेश में महाआयोजनों से जुड़ी पर्यटक संभावनाओं को देखें, तो दलाईलामा की मौजूदगी में कालचक्र पर्यटन शुरू हो सकता है। फिलहाल अब तक कालचक्र के आयोजन बौद्धगया मंे ही होते आते हैं, लेकिन धर्मशाला से मंडी के बीच अगर अधोसंरचना तैयार की जाए, तो यह अंतरराष्ट्रीय पर्यटन की मंजिल की तरह देखा जाएगा।
अटल टनल के कारण भागती भीड़ में एक हद तक पर्यटन दिखाई देगा, मगर दूसरे ही पल अव्यवस्था के आलम में इसका उद्देश्य खंडित होता महसूस होगा। लाहुल-स्पीति के द्वार पर केवल पर्यटन को देखेंगे, तो मूल परियोजना के लाभार्थी घट जाएंगे। कुछ इसी तरह हर पर्यटक सीजन के दबाव उस जनता पर पड़ते हैं, जो सामान्य रूप से नागरिक सुविधाओं में इजाफा चाहती है। ऐसे में पर्यटक डेस्टिनेशन को नागरिक समाज के साथ जोड़कर देखना होगा ताकि स्थानीय निवासी सैलानियों के दबाव में अपनी जरूरतें यथावत रख सकें। पर्यटक स्थलों के नए खाके में स्थानीय निवासियों को राहत देने के लिए ऐसी अधोसंरचना का निर्माण जरूरी हो जाता है, जो सामान्य सुविधाओं के अलावा यातायात के विकल्प के तौर पर कारगर सिद्ध हों। हर पर्यटक व महत्त्वपूर्ण शहरों में महापार्किंग की दिशा में बढ़ना होगा, ताकि पर्यटन वाहन एक सीमा के भीतर ठहराव करें। प्रदेश की सामूहिक जरूरतों, महाआयोजनों, वीआईपी आगमन, मेलों, धार्मिक स्थलों तथा राजनीतिक, व्यापारिक व सांस्कृतिक गतिविधियों को देखते हुए अति रिक्त जमीन, सशक्त अधोसंरचना व दीर्घकालीन योजनाओं की आवश्यकता है और इस कार्य के लिए अलग से एजेंसी चाहिए। प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में परंपरागत मैदानों को बचाने के अलावा, नए विकसित करने होंगे और इसकी शुरुआत हर शहर में कम से कम चार और हर गांव में एक नए मैदान से करनी होगी।
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