बड़ी देर से टूटी नींद!

भारत ने अफगानिस्तान मसले पर विचार-विमर्श के लिए इस क्षेत्र के कई देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैठक बुलाई है

Update: 2021-10-19 16:47 GMT

बहरहाल, ये पहल काबुल पर तालिबान के कब्जे के दो महीनों के बाद हुई है। इस दौरान कूटनीति काफी आगे बढ़ चुकी है। इसमें चीन, रूस, ईरान और पाकिस्तान की बढ़त साफ दिखती है। आखिरकार अमेरिका ने भी सत्तारूढ़ तालिबान से संवाद के सूत्र जोड़ लिए हैँ। 

अब खबर आई है कि भारत ने अफगानिस्तान मसले पर विचार-विमर्श के लिए इस क्षेत्र के कई देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैठक बुलाई है। इसके लिए आमंत्रण भेज दिया गया है। अब देखने की बात होगी कि कितने देश इसे स्वीकार करते हैँ। सबकी नजर चीन और पाकिस्तान की प्रतिक्रिया पर रहेगी। इन दोनों देशों के संबंधित अधिकारियों को भी न्योता दिया गया है। बहरहाल, ये पहल काबुल पर तालिबान के कब्जे के दो महीनों के बाद हुई है। इस दौरान कूटनीति काफी आगे बढ़ चुकी है। इसमें चीन, रूस, ईरान और पाकिस्तान की बढ़त साफ दिखती है। आखिरकार अमेरिका ने भी सत्तारूढ़ तालिबान से संवाद के सूत्र जोड़ लिए हैँ। दूसरी तरफ इस पूरी अवधि में भारत और तालिबान के बीच मेलमिलाप के नगण्य संकेत ही हैँ। बल्कि दोनों पक्षों के बीच वैमनस्य बढ़ने के संकेत मिलते रहे हैँ। ऐसे में अब देर से हुई पहल से क्या हासिल होगा, यह देखने की बात होगी।
बहरहाल, भारत के हित अफगानिस्तान से जुड़े हैँ। गुजरे दो दशकों में उसने वहां अपने लिए सद्भाव हासिल करने की कोशिशें भी की थीँ। 2001 में अफगानिस्तान में अमेरिका के प्रवेश के बाद भारत ने अफगानिस्तान की विकास परियोजनाओं में भारी निवेश किया। अब हकीकत यह है कि तालिबान की दोबारा सत्ता में वापसी के बाद इन परियोजनाओं का भविष्य अनिश्चित दिखता है। जबकि भारत ने अफगानिस्तान में बुनियादी ढांचे और मानवीय सहायता पर अरबों डॉलर खर्च किए। राजमार्गों के निर्माण से लेकर भोजन के परिवहन और स्कूलों के निर्माण तक भारत ने समय और धन का निवेश करते हुए अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में मदद की। अब भारतीय परियोजनाओं के लिए नियमित रख-रखाव की जरूरत है। ऐसा सिर्फ अनुकूल वातावरण में ही संभव सकता है। अगर ताजा पहल से ऐसा माहौल बनाने में मदद मिलती है, तो समझा जाएगा कि भले ही देर से लेकिन एक सार्थक और ठोस कदम उठाया गया है। भारत ने काबुल में अफगान संसद भवन और एक बांध के निर्माण में भी सहायता की है, जिससे बिजली उत्पादन और खेतों की सिंचाई में लाभ हो रहा है। अफगानिस्तान में स्कूलों और अस्पतालों के निर्माण के अलावा भारत ने अपने सैन्य स्कूलों में अफगान अधिकारियों को प्रशिक्षित भी किया है। इसके बावजूद भारत सद्भाव कायम नहीं रख पाया, तो उसे कूटनीति की विफलता के अलावा और क्या समझा जाएगा?

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