सफलता पाने के लिऐ आपको पेशावर बनना जरूरी नहीं केवल उसके लिए जुनून ही काफी होता है
भारतीय मूल के तन्मय सपकल ने इस महीने साल 2021 का आठवां इंटरनेशनल लैंडस्केप फोटोग्राफर ऑफ द ईयर अवॉर्ड जीता है
एन. रघुरामन का कॉलम:
भारतीय मूल के तन्मय सपकल ने इस महीने साल 2021 का आठवां इंटरनेशनल लैंडस्केप फोटोग्राफर ऑफ द ईयर अवॉर्ड जीता है। दुनियाभर से आई 4500 प्रविष्टियों में से 29 साल के तन्मय की फोटो ने सबसे ज्यादा स्कोर किया, इसमें उन्होंने उत्तरी सैन फ्रांसिस्को में तमालपेस पर्वत पर गिरते धूमकेतु को कैमरे में कैद किया था।
फोटो में पहाड़ के ऊपर कोहरा तैरता दिख रहा है और ये लुभावने टूटते तारे को कैद करने का शानदार माहौल बनाता है। तन्मय के लिए लैंडस्केप फोटोग्राफी रचनात्मकता दिखाने का जरिया है और यह उसे एपल में हाईवेयर डिजाइन इंजीनियर के अपने काम से इतर खाली वक्त में दुनिया जानने का मौका देती है। उसकी जीत ने साबित कर दिया कि अवॉर्ड विनिंग तस्वीर लेने के लिए आपको पेशेवर होने की जरूरत नहीं है।
इस हफ्ते रेत के टीलों पर खड़े होकर, अपने हाथों में कैमरा लिए मुझे तन्मय की याद आ गई। जब मैंने हवा को अपना खेल दिखाते देखा, जिसमें हवा कभी रेत का ढेर लगा देती तो कभी बहकर गहरा गड्ढा बना देती। हवा टीले से रेत उड़ाकर उन गड्ढों को पूर देती और अचानक कदमों के नीचे से बह गई रेत से मुझे तस्वीर खींचने के लिए एक अच्छा नजारा बन जाता।
इस तरह की खूबसूरती कैप्चर करने के सिर्फ दो ही रास्ते हैं- प्राकृतिक या मानव निर्मित। प्रकृति बिना थके अपना काम लगन से करती है। पर हम इंसान कहीं न कहीं नाकाम हो जाते हैं। इस सप्ताह 'बालकनियों के शहर' में मेरा प्रवास एक उदाहरण है। यहां 98 फीसदी से ज्यादा घरों में बालकनियां है। ये मेट्रो शहरों की तरह शीशे या बिना शीशे वाली खिड़की की साधारण सीमेंट की बालकनियां नहीं, जहां बाहर सूखते कपड़े आंखों को चुभते हैं। हर बालकनी में कलात्मकता की छाप है और मैं कहूंगा कि वास्तुकला के सारे छात्रों को ये शहर घूमना चाहिए।
पर दुर्भाग्य से आप ऊपर ये खूबसूरत बालकनियां देखते हुए उन तंग गलियों में नहीं चल सकते। ये बालकनियां रहवासियों को न सिर्फ झांकने का मौका देती हैं कि बाहर क्या चल रहा है, वहीं ये हवा आने का जरिया भी हैं और यही बालकनी होने का सबसे बड़ा कारण है, क्योंकि गलियां काफी संकरी हैं। इससे दोपहिया वाहनों की संख्या बहुत बढ़ गई है। पर दुर्भाग्य से इन युवा बाइकर्स को इस शहर में किसी ने नहीं सिखाया कि तंग गलियों में लगातार हॉर्न बजाने से न सिर्फ पर्यटक दूर भागेंगे बल्कि स्थानीय लोगों को भी सुनने में दिक्कतें होंगी।
यहां के प्रतिष्ठित और सबसे वरिष्ठ टूर गाइड ब्रिड के गोपा, जिन्होंने मुझे शहर का सौंदर्य दर्शन कराया, उन्होंने भी स्वीकारा कि हॉर्न बजाने से विदेशी परेशान होते हैं और कई बार तो यहां के युवाओं से झगड़ा तक हो जाता है। एक और बड़ा मुद्दा सफाई का है। जैसलमेर में मैंने जिससे भी बात की, वे सब इसे स्वच्छता के मामले में दूसरा इंदौर बनाना चाहते हैं, पर ये नहीं जानते कि कैसे होगा। वे नगर निगम अधिकारियों में समर्पण की कमी की शिकायत करते हैं। उनको मेरी सीधी सी सलाह है कि छोटे रूप में शुरुआत करें- कम से कम अपने आस-पड़ोस को साफ-सुथरा रखें।
शौकिया तौर पर शुरू करें। बिल्कुल तन्मय की तरह, जिसने हाथों में कोडैक का कैमरा लिए, माता-पिता के साथ भारत के सूदर अंचलों में घूमते हुए फोटोग्राफी के प्रति अपने जुनून की शुरुआत की। सीधे नौ सालों में वह फोटोग्राफी की दुनिया में टॉप पर पहुंच गया है।
कोविड ने दुनिया को एक सीख दी है कि व्यक्तिगत स्वच्छता और सार्वजनिक साफ-सफाई आने वाले दिनों में बड़ी भूमिका निभाने वाली है और अगर जैसलमेर जैसे शहर में आम लोग या नगर निगम के अधिकारी इसे अमल में नहीं लाते, तो पर्यटन से आने वाली शहर की 40 फीसदी आय खतरे में पड़ सकती है। फंडा यह है कि किसी भी पेशे में शीर्ष पर पहुंचने या कुछ भी हासिल करने के लिए आपको पेशेवर होने की जरूरत नहीं, सिर्फ समर्पण चाहिए। और मैं जानता हूं कि जैसलमेर चाहे तो ये कर सकता है।