TMC Politics: क्या ममता बनर्जी एक तीर से बीजेपी और कांग्रेस दोनों का शिकार करने में सफल होंगी?

विपक्ष का संयुक्त्त मोर्चा अब शायद नहीं बनेगा

Update: 2022-02-17 08:46 GMT
अजय झा। 
ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) के आप प्रशंसक हों या आलोचक, पर एक बात की तारीफ करनी ही पड़ेगी की एक बार फैसला लेने के बाद वह अपने पथ पर अडिग रहती हैं. अब उनका एक ही सपना है – भारत का प्रधानमंत्री बनना, जिसके लिए उन्हें दो बड़े राष्ट्रीय दलों भारतीय जनता पार्टी (BJP) और कांग्रेस पार्टी (Congress Party) को पीछे छोड़ते हुए आगे निकलना होगा. अभी पिछले दिनों ही लगने लगा था कि अपनी ही पार्टी तृणमूल कांग्रेस में उठ रहे बगावत के सुरों से उनकी पार्टी पर पकड़ कमजोर पड़ जाएगी और उनका प्रधानमंत्री बनने का सपना टूट जाएगा.
आसार भी यही था कि ममता बनर्जी की उनके प्रमुख सलाहकार प्रशांत किशोर और भतीजे अभिषेक बनर्जी से बढ़ती दूरी के कारण उनका दिल्ली की गद्दी का सपना अधुरा रह जाएगा. इन्ही दोनों की जिम्मेदारी थी कि तृणमूल कांग्रेस को पश्चिम बंगाल की सीमा से बाहर निकाल कर एक राष्ट्रीय शक्ति के रूप में स्थापित करें. मुहीम की शुरुआत भी हो चुकी थी, जिसके तहत गोवा विधानसभा में शानदार प्रदर्शन अनिवार्य था. पर चुनाव आते-आते ही तृणमूल कांग्रेस ने हथियार डाल दिया. संभव है कि गोवा में पार्टी का बस खाता ही खुल पाए. ममता बनर्जी की शुरू से ही छवि एक योद्धा की रही है. काग्रेस पार्टी में रहते हुए उन्होंने ठान ली थी कि बिना वामदलों से लोहा लिए वह बड़ी नेता नहीं बन सकती हैं, उनकी हैसियत स्वर्गीय प्रणब मुख़र्जी जैसी ही रहेगी और लोकसभा या राज्यसभा की सदस्यता के लिए उन्हें वामदलों पर निर्भर रहना होगा वो भी तब अगर कांग्रेस पार्टी और वामदलों की दोस्ती बरक़रार रही तो.
विपक्ष का संयुक्त्त मोर्चा अब शायद नहीं बनेगा
पश्चिम बंगाल की जनता का धीरे-धीरे वामदलों से मोहभंग होने लगा था, एक दूसरी राजनीतिक शक्ति के लिए अवसर भी था, पर कांग्रेस पार्टी केंद्र की राजनीति के मद्देनजर वामदलों को नाराज़ नहीं कर सकती थी. दीदी ने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी और अपनी पार्टी का गठन किया. 13 वर्षों तक संघर्ष करने, पुलिस के डंडे खाने और पहले दो विधानसभा चुनावों में अपेक्षित सफलता नहीं मिलने के बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और आखिरकर 2011 के चुनाव में तृणमूल कांग्रेस की सरकार बन ही गई. और अब यह आलम है कि 10 साल बाद पश्चिम बंगाल विधानसभा में ना तो वामदलों का ना ही कांग्रेस पार्टी का कोई विधायक है.
अगर यह लगने लगा था कि प्रशांत किशोर और अभिषेक बनर्जी के कारण या कांग्रेस पार्टी के असहयोग की वजह से वह अपने फैसले से पीछे हट जाएंगी तो वह भी गलत सिद्ध होता दिख रहा है. शुरुआत हुई थी केंद्र में बीजेपी के खिलाफ विपक्षी दलों को इकट्ठा करने की मुहीम से, जिसमें सफलता नहीं मिली, क्योंकि कांग्रेस पार्टी राहुल गांधी के प्रधानमंत्री पद की दावेदारी को छोड़ नहीं सकती. गोवा विधानसभा चुनाव में ही यह साफ़ हो गया कि विपक्षी एकता एक दिवा स्वप्न जैसा है; तृणमूल कांग्रेस ने बीजेपी के खिलाफ प्रदेश में विपक्षी दलों को इकट्ठा करने की पेशकश की.
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) और शिवसेना ने इसका समर्थन भी किया पर कांग्रेस पार्टी नहीं मानी. गोवा में विधानसभा चुनाव संपन्न हो चूका है, परिणाम जो भी हों, इतना तो तय है की गोवा में तृणमूल कांग्रेस की सरकार नहीं बन रही है और केंद्र में तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस पार्टी के तकरार के कारण विपक्ष का संयुक्त्त मोर्चा अब शायद नहीं बनेगा.
गैर-कांग्रेस और गैर-बीजेपी दलों का गुट बना रही हैं ममता बनर्जी
तो क्या दीदी अपने इरादे से पीछे हट जाती? कदापि नहीं, और उन्होंने अपने 'प्लान बी' पर अमल करना शुरू किया जिसके तहत वह गैर-बीजेपी और गैर-कांग्रेस मुख्यमंत्रियों का एक संयुक्त मोर्चा बनाने के प्रयास में जुट गयी हैं. मुद्दा जो भी हो, आईएएस, आईपीएस अफसरों के तबादले के नियमों में संशोधन का विरोध या फिर राज्यपालों द्वारा राज्य सरकार के साथ असहयोग और बढ़ते विवाद का, ममता बनर्जी की पहल अब रंग लाते दिख रही है.
दीदी ने तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव को फोन किया और उनके साथ डोसा खाने की इच्छा जाहिर की. चंद्रशेखर राव ने उन्हें सहर्ष न्योता दे दिया. दीदी ने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन से भी फोन पर बात की. नतीजा, जल्द ही नई दिल्ली में गैर-बीजेपी गैर-कांग्रेस मुख्यमंत्रियों की बैठक होने वाली है, जिसमें महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने शामिल होने की सहमती दे दी है.
केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन के भी शामिल होने की सम्भावना है. कांग्रेस पार्टी के मुख्यमंत्री इससे दूर ही रहेंगे, बचे ओडिसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक और आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बारे में अभी कुछ कहा नहीं जा सकता. बांकी के सभी राज्यों में या तो बीजेपी के मुख्यमंत्री हैं या फिर बीजेपी के सहयोगी दलों के. नवीन पटनायक और जगन मोहन रेड्डी इस प्रस्तावित बैठक से दूर ही रहेंगे. कारण साफ़ है, वह अभी केंद्र सरकार से पंगा नहीं लेना चाहते और दोनों अपने राज्य में सत्ता में रह कर ही खुश हैं. भविष्य में शायद बीजू जनता दल और YSR कांग्रेस पार्टी बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए में भी शामिल हो सकती है.
दीदी की कोशिश कांग्रेस के लिए घतरे की घंटी
कांग्रेस पार्टी के लिए एक चेतावनी हो सकती है क्योंकि झारखंड और महाराष्ट्र की सरकार का वह हिस्सा है पर दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के पहल पर होने वाली मीटिंग में शामिल होंगे. तमिलनाडु में भी कांग्रेस पार्टी डीएमके की सहयोगी दल है. इन सभी मुख्यमंत्रियों का ममता बनर्जी के साथ होने से 2024 के लोकसभा चुनाव के कांग्रेस पार्टी अलग थलग पड़ सकती है, जो कांग्रेस पार्टी के लिए किसी खतरे की घंटी से कम नहीं है.
परिणाम जो भी हों, इतना तो तय हो गया है कि बिना प्रशांत किशोर और कांग्रेस पार्टी के सहयोग के भी ममता बनर्जी प्रधानमंत्री बनने की अपनी डगर पर अडिग हैं. 2024 में ना सही, भाविष्य में शायद उन्हें सफलता मिल ही जाएगी. याद रहे कि तृणमूल कांग्रेस के गठन होने के 13 साल के बाद ही वह पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बन पायी थीं. देखना दिलचस्प होगा कि क्या एक तीर से वह बीजेपी और कांग्रेस रूपी दो शिकार करने के सफल हो पाएंगी?
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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