पेट्रोल-डीजल के दामों में यह राहत कब तक?
देश में जब-जब भी पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ते हैं और जनता में हाहाकार मचता है
अनिल जैन का ब्लॉग
देश में जब-जब भी पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ते हैं और जनता में हाहाकार मचता है तो सरकार कहने लगती है कि पेट्रोल और डीजल के खुदरा दाम पेट्रोलियम कंपनियां तय करती हैं तथा सरकार का इससे कोई लेना-देना नहीं है. लेकिन जब कभी पेट्रोल-डीजल के दामों में थोड़ी सी भी कमी होती है तो तमाम मंत्री और सत्तारूढ़ दल के नेता उसका श्रेय सरकार को देने लगते हैं. पिछले दिनों पेट्रोल-डीजल के दामों में कमी के लिए उत्पाद शुल्क में जो कटौती की गई है, उसको लेकर भी यही हो रहा है.
पिछले छह महीने में पेट्रोल-डीजल पर उत्पाद शुल्क में यह दूसरी कटौती है. पहली कटौती पिछले साल नवंबर के पहले हफ्ते में हुई थी, जब केंद्र सरकार ने पेट्रोल पर पांच रुपए और डीजल पर 10 रुपए उत्पाद शुल्क घटाया था. उससे जो राहत लोगों को मिली थी, वह साढ़े चार महीने तक रही थी.
हालांकि नवंबर-दिसंबर में जब कीमतों का बढ़ना रुका था, तब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत कम हो रही थी. सो, कीमतें नहीं बढ़ने की वजह समझ में आ रही थी. लेकिन मार्च में जब कीमत सौ डॉलर प्रति बैरल होने की ओर बढ़ रही थी, इसके बावजूद कीमतें नहीं बढ़ीं.
नवंबर के आखिरी हफ्ते में कटौती हुई थी और जनवरी में उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों की घोषणा हुई थी. उससे पहले पेट्रोल-डीजल के दाम तीन नवंबर को बढ़ाए गए थे. उस समय भी कच्चे तेल की कीमत 85 डॉलर प्रति बैरल थी. लेकिन उसके बाद अचानक दोनों ईंधनों की कीमतों में बढ़ोत्तरी का सिलसिला थम गया. उसके बाद केंद्र सरकार ने डीजल पर उत्पाद शुल्क में 10 रुपए और पेट्रोल पर पांच रुपए प्रति लीटर की कटौती की.
सरकार का कटौती करना समझ में आता है, क्योंकि जाहिर है कि चुनावों को ध्यान में रखते हुए पेट्रोल-डीजल के दाम घटाए गए थे. लेकिन सवाल है कि कथित तौर पर हर दिन कीमत तय करने वाली पेट्रोलियम मार्केटिंग कंपनियों ने भी चुनाव प्रक्रिया पूरी होने तक कीमतें किस तर्क से स्थिर रखीं?
बहरहाल, अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम में हो रही वृद्धि को देखते हुए संभव है कि सरकार ने लोगों को राहत देने की जो उदारता पिछले दिनों दिखाई है, वह ज्यादा दिन न चले.
सोर्स- lokmatnews