बंद रास्ते
विवादास्पद कृषि कानूनों की वापसी के केंद्र सरकार के फैसले के बाद माना जा रहा था कि किसान जल्द ही आंदोलन खत्म कर देंगे। लोगों को उम्मीद थी
विवादास्पद कृषि कानूनों की वापसी के केंद्र सरकार के फैसले के बाद माना जा रहा था कि किसान जल्द ही आंदोलन खत्म कर देंगे। लोगों को उम्मीद थी कि साल भर से दिल्ली की सीमाओं पर बंद रास्ते खुल जाएंगे और आवाजाही पहले की तरह की सामान्य हो जाएगी। लेकिन अभी तक ऐसा कुछ देखने को मिला नहीं है। किसानों का धरना जारी है। रास्ते अभी भी नहीं खुले हैं। लोगों की मुश्किलें पहले जैसी बनी हुई हैं।
अब तो किसानों ने न केवल धरना-प्रदर्शन जारी रखने की बात कही है, बल्कि संसद कूच की भी बातें कर रहे हैं। उनतीस नवंबर को ट्रैक्टर रैली निकालने की बात हो रही है। इससे यह तो साफ लग रहा है कि हाल-फिलहाल रास्ते खुलने के आसार हैं नहीं। गौरतलब है कि दिल्ली में प्रवेश के तीन बड़े रास्तों गाजीपुर बार्डर, टीकरी बार्डर और सिंघू बार्डर पर साल भर से किसान डेरा डाले बैठे हुए हैं। किसान दिल्ली में न घुस सकें, इसके लिए पुलिस ने अवरोधक लगा कर रास्ते बंद कर दिए थे।
प्रदर्शनकारियों से रास्ते खाली करवाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। ये याचिकाएं कुछ नागरिकों और औद्योगिक इकाइयों ने दायर की हैं। रास्ते रोके जाने को लेकर सर्वोच्च अदालत कई बार नाराजगी भी व्यक्त कर चुकी है। अदालत ने किसान संगठनों से साफ-साफ कहा है कि विरोध-प्रदर्शन का उनका अधिकार जायज है, लेकिन इसके नाम पर लंबे समय तक रास्तों को बंद नहीं रखा जा सकता। रास्ते बंद करना नागरिकों के अधिकारों के उल्लंघन की श्रेणी में आता है। साथ ही, सरकार को भी इस बारे में उचित कदम उठाने को कहा।
किसानों को राजधानी में घुसने से रोकने के लिए पुलिस ने सीमाओं पर जिस तरह की बंदी की, वह भी कम हैरान करने वाली नहीं थी। सीमेंट के बड़े-बड़े अवरोधकों से और कंटीले तारों की बाड़ से लेकर सड़कों पर कीले तक गाड़ दिए गए थे। हालांकि ऐसी व्यवस्था के पीछे सुरक्षा को लेकर पुलिस के अपने तर्क हो सकते हैं।
ऐसे में आसपास के इलाकों से दिल्ली में कामकाज के लिए आने वालों के सामने भारी परेशानी होना स्वाभाविक ही है। लोगों को लंबी दूरी तय करके आसपास के गांवों से होकर दिल्ली आना पड़ रहा है। एक किलोमीटर की दूरी छह-सात किलोमीटर में तय हो रही है। इस कारण सीमाई इलाकों में भारी जाम की समस्या भी बनी हुई है। इसके अलावा गाजियाबाद, नोएडा, गुरुग्राम, फरीदाबाद आदि जगहों पर बड़ी संख्या में औद्योगिक इकाइयां भी हैं और ये सब अपना सामान दिल्ली में लाते हैं। पर रास्ते बंद होने से कारोबार पर भी असर पड़ा है।
सवाल है कि रास्ते खुलें तो कैसे? इस बारे में किसान संगठन यही कहते आए हैं कि रास्ते उन्होंने नहीं, पुलिस ने बंद किए हैं। इसलिए अवरोधक हटा कर रास्ते खोलने का काम पुलिस को ही करना है। रास्ते बंद होने की समस्या को सिर्फ यह कह कर नहीं टाला जा सकता कि किसान सड़कों पर बैठे हैं, इसलिए रास्ते बंद हैं।
दरअसल रास्ते खुलवाने के लिए केंद्र, उत्तर प्रदेश और हरियाणा सरकार को मिल कर कोई रास्ता निकलना चाहिए था। पर ऐसा हुआ नहीं। लगता है कि सरकार यही मान कर बैठी रही कि लोग जब ज्यादा परेशान होंगे तो किसानों के प्रति उनमें आक्रोश पैदा होगा और इसी से कोई रास्ता निकलेगा। रास्ते खुलवाने की जिम्मेदारी सरकारों की ही है। साथ ही इस बारे में किसान संगठनों को भी सकारात्मक रुख दिखाने की जरूरत है। अगर सरकारें और किसान संगठन एक दूसरे पर ठीकरे फोड़ते रहेंगे तो रास्ते कैसे खुलेंगे?