संघीय ढांचे का राग अलापने वाले ही उसे सबसे ज्यादा क्षति पहुंचाकर संवैधानिक व्यवस्था का मखौल उड़ाते हैं

संविधान सर्वोच्च विधि है, लेकिन तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव ने कहा है

Update: 2022-02-27 17:04 GMT

हृदयनारायण दीक्षित।

भारत में संविधान की सत्ता है। संविधान सर्वोच्च विधि है, लेकिन तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव ने कहा है कि वह संविधान को फिर से लिखने के लिए संघर्ष चलाएंगे। उनके अनुसार भारत में नए संविधान का मसौदा तैयार करने की जरूरत है। कल्पना करें कि यही बयान भाजपा की ओर से आया होता तो सभी दल आसमान सिर पर उठा लेते। वस्तुत: नए संविधान की मांग आपत्तिजनक है। राव ने संघीय ढांचे को मजबूत बनाने की बात भी कही है, लेकिन उन जैसे नेताओं ने ही संघीय ढांचे का उल्लंघन किया है। कई राज्यों ने केंद्र की जनहितकारी योजनाओं को भी लागू नहीं किया है। उन्होंने आयुष्मान भारत से लेकर 'वन नेशन वन कार्ड' के सिद्धांत को लागू करने में हीलाहवाली की। राव ने रामानुजाचार्य की स्मृति में निर्मित 'स्टेचू आफ इक्वालिटी' के लोकार्पण अवसर पर प्रधानमंत्री की उपस्थिति के बावजूद समारोह में हिस्सा नहीं लिया। प्रधानमंत्री ने चक्रवात से निपटने के लिए बैठक की, लेकिन बंगाल के मुख्य सचिव उसमें आए ही नहीं। यह संघीय ढांचे का सरासर उल्लंघन है। कई राज्यों ने कृषि कानूनों का विरोध किया है। दिल्ली के मुख्यमंत्री ने विधानसभा में तीनों कानूनों की प्रतियां फाड़ दी थीं। यह कृत्य सदन के विशेषाधिकार का उल्लंघन है। इसी प्रकार पंजाब, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्रियों ने केंद्रीय कानूनों के विरोध में विधानसभाओं से प्रस्ताव पारित कराए, जबकि संविधान के अनुसार राज्य केंद्रीय कानून मानने के लिए विवश हैं। नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में बंगाल, राजस्थान, केरल और पंजाब ने विधानसभा में प्रस्ताव पारित कराए थे। ऐसे कृत्य संविधान के संघीय ढांचे का उल्लंघन है। संविधान मुख्यमंत्रियों को केंद्रीय कानूनों की अवहेलना का अधिकार नहीं देता। संसद द्वारा अधिनियमित कानून को मानने से इन्कार संविधान का उल्लंघन है। संसद द्वारा अधिनियमित विधि और राज्य विधानमंडल द्वारा पारित विधि में विसंगति संभव है। अनुच्छेद 254 में उल्लिखित है कि 'किसी राज्य विधानमंडल द्वारा पारित विधि का कोई हिस्सा संसद द्वारा बनाई गई विधि के विरोध में है तो संसद द्वारा बनाई गई विधि प्रभावी होगी। फिर भी राज्यों ने इस व्यवस्था का उल्लंघन किया।

नागरिकता जैसा विषय किसी भी दृष्टि से राज्यों के क्षेत्राधिकार में नहीं, लेकिन राजनीतिक कारणों से विधानसभाओं में नागरिकता संशोधन कानून विरोधी प्रस्ताव पारित कराए गए। ऐसे ही दल संघीय ढांचे और लोकतंत्र की रक्षा की गुहार लगाते हैं, लेकिन स्वयं उस पर हमलावर रहते हैं। वे संघीय ढांचे से अलग संप्रभु देश की तरह आचरण करते हैं। बांग्लादेश से तीस्ता जल विवाद ममता बनर्जी के हठ के चलते हल नहीं हो पाया। तमिलनाडु की सरकार के कारण श्रीलंका संबंधी विवाद भी अनसुलझा है। ये विषय विशुद्ध रूप से केंद्र सरकार के क्षेत्राधिकार वाले हैं, किंतु इन मुख्यमंत्रियों ने विदेश नीति के मसलों पर भी हस्तक्षेप जारी रखा है। प्रधानमंत्री के पंजाब दौरे पर राज्य सरकार ने उनका सुरक्षा का दायित्व तक नहीं निभाया। देश की संप्रभुता एकता के लिए मजबूत केंद्र जरूरी है। संविधान हड़बड़ी में नहीं बना। संविधान निर्माण के पूर्व भारत लगभग 560 रियासतों व समूहों में विभाजित था। देश विभाजन के भी परिणाम भयावह थे। इन परिस्थितियों से अवगत संविधान सभा ने मजबूत केंद्र और व्यवस्थित संघवाद की व्यवस्था की।
वास्तव में संघीय ढांचे और लोकतंत्र को बचाने की कुछ नेताओं की गुहार राजनीति से प्रेरित है। ऐसे दलों का चरित्र मूल रूप से सामंतवादी व परिवारवादी है। सामंतवाद और लोकतंत्र परस्पर विरोधी हैं। लोकतंत्र और परिवारवाद भी साथ-साथ नहीं चल सकते। परिवारवादी दलों में आंतरिक लोकतंत्र नहीं होता। ऐसे दलों और नेताओं के मुंह से लोकतंत्र की रक्षा की बातें अच्छी नहीं लगतीं। चन्द्रशेखर राव नया संविधान चाहते हैं, जबकि वर्तमान संवैधानिक व्यवस्था से ही वह मुख्यमंत्री बने हैं। संविधान के ही विचार अभिव्यक्ति के अधिकार का लाभ उठाकर अनर्गल प्रलाप करते हैं। आखिरकार यह कैसी राजनीति है? संघीय ढांचे की मजबूती के लिए संविधान और लोकतंत्र का संरक्षण जरूरी है, लेकिन इसका राग अलापने वाले ही संविधान का आदर नहीं करते।
संविधान सभा के अंतिम भाषण में डा. आंबेडकर ने कहा था, 'संविधान बन गया है, असहमत लोगों को आक्रामक आंदोलनों का सहारा नहीं लेना चाहिए। संविधान संशोधन की विधि सरल है। बस उन्हें जनप्रतिनिधियों की एक निश्चित संख्या की आवश्यकता होगी।' ऐसे में राव को चाहिए कि वह अपेक्षित संविधान संशोधन के लिए बहुमत जुटाएं। वर्तमान संविधान का सम्मान करें और संविधान के अनुरूप व्यवहार करें। संविधान में संघीय ढांचा स्पष्ट है। केंद्र और राज्य के अधिकार सुपरिभाषित हैं, लेकिन संघीय ढांचे का हंगामा मचाने वाले दल और नेता ही उसके उल्लंघन में आगे हैं। ममता बनर्जी ने तो यहां तक कह दिया कि 'आप (केंद्र) कानून बना सकते हैं लेकिन उन्हें लागू करने का काम राज्य सरकार का है और हम उन्हें लागू नहीं करेंगे।' यह घोर अराजकता है। कई बार ऐसे नेता अपने राज्यों को भारत से पृथक देश मानते हुए दिखाई पड़ते हैं।
अटल जी के नेतृत्व वाली राजग सरकार के समय संविधान समीक्षा का आयोग बना था। तब राव जैसे सोच वाले नेता भाजपा पर संविधान के खात्मे का आरोप लगा रहे थे, जबकि समीक्षा आयोग एक विशेष प्रकार का अध्ययन कर रहा था। वैसे भी केंद्र पर बेतुके आरोप लगाने वाले राज्य जान लें कि भारतीय राज्य स्वतंत्र देश नहीं हैं। यहां के राज्य अमेरिकी राज्य जैसे नहीं हैं। अमेरिकी राज्यों ने स्युक्त राज्य अमेरिका परिसंघ बनाया था। अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने इसे अविनाशी राज्यों का अविनाशी संघ कहा था। भारत नाशवान राज्य इकाइयों का अनाशवान संघ हैं। यहां राज्य बनाए जाते हैं। छोटे और बड़े भी किए जाते हैं। राज्य और मुख्यमंत्री स्वायत्त संस्था नहीं हैं, लेकिन कुछ राज्यों के मुख्यमंत्री संवैधानिक संघ से ही टकरा रहे हैं। उनका दुस्साहस बढ़ा है। अब वे पूरे संविधान को खारिज करने की मांग कर रहे हैं। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लगाए आपातकाल के दौरान 42वें संविधान संशोधन में उद्देशिका सहित 53 अनुच्छेदों व सातवीं अनुसूची में भी संशोधन हुए थे। यह संविधान पर बड़ा हमला था। अब उसी तर्ज पर नए संविधान की मांग उठी है। ऐसा आचरण संघवाद नहीं अलगाववाद है।

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