जिनका हिंदुत्व "सैंटा क्लाज" से भी खतरे में आ जाता है उन बेचारों को इलाज की जरूरत है

कुछ मंद बुद्धि प्रौढ़ों ने इस देश में क्रिसमस मनाने और उसकी छुट्टियों का भी विरोध किया

Update: 2021-12-28 09:30 GMT
हेमंत शर्मा।
देश में कई जगहों से सैंटा क्लाज पर हमले की खबर आईं. कुछ मंद बुद्धि प्रौढ़ों ने इस देश में क्रिसमस मनाने और उसकी छुट्टियों का भी विरोध किया. मेरे एक मित्र ने तो सैंटा क्लाज से बच्चों को दूर रखने की अपील कर दी. मुझे अपने पर क्षोभ हो रहा है कि इतने सालों तक मित्रवर हमारे साथ रहे. मैं उनके भीतर नफ़रत के इस ज्वालामुखी को देख नहीं पाया. हम कहां पहुंच गए हैं. जिनका हिंदुत्व 'सैंटा क्लाज' से भी खतरे में आ जाता है उन बेचारों को इलाज की जरूरत है. कैसा रहा होगा ऐसे लोगों का बचपन? कैसे भर गयी होगी मन में इतनी नफ़रत?
ये हमारी बहुलतावादी संस्कृति के तालिबानीकरण में लगे हैं ऐसे लोग मिलें तो ग़ुस्सा मत कीजिए इनसे अच्छे से बात करिए, तोहफे दीजिए, इन्हें सभ्य समाज की झलक देखने और समझाने की जरूरत है. मैं इस बार बच्चों के लिए ढेर सारे सेंटा ले आया. सेंटा हमें बचपन से आकर्षित करता रहा है. उसकी कहानी सुनिए. कहानी गए साल लिखी थी.
कौन है? सैंटा क्लाज
क्रिससम का माहौल बनते ही आंखें सैंटा क्लाज को तलाशने लगती हैं. मैं इन्तज़ार करता रहा पर सैंटा बचपन में मुझसे मिलने कभी नहीं आए. शायद इसी बात की क्षतिपूर्ति उन्होंने मेरे बच्चों के बचपन में आकर कर दी. हर क्रिसमस घर में अतिथि देवो भव की परंपरा के तहत उनके आकर्षक आतिथ्य के इंतजाम का सिलसिला शुरू हो जाता है.
चुनांचे आज फिर मैं पांच सैंटा क्लाज खरीद कर लाया. उसमें से एक जिंगल बेल गा रहे हैं, दूसरे बाबा रामदेव का योगा कर रहे हैं. तीसरे माईकल जैक्सन की तरह डांस कर रहे हैं. ऐसे ही बाकी दो और हैं. बचपन से सैंटा क्लाज मेरे लिए कौतूहल का विषय रहा. सैंटा की रोचक कहानियों में मन रमता पर सैंटा ने मुझे कभी कोई उपहार नहीं दिया. एक बार ज्योति चाचा से शिकायत भी की कि सैंटा मुझे कोई उपहार नहीं देता. तो वे नाराज हुए और कहा वो क्या देगा? तुम्हें उपहार हनुमान जी देंगे. उन्होंने इसमें धार्मिक एंगल घुसा दिया. बात खत्म हो गयी. पर ईशानी के जन्म के बाद मुझे सेंटा क्लाज, उसके उपहार, उसके आने-जाने का कर्मकाण्ड निभाना पड़ा. लॉ मार्टिनियर में पढ़ने के कारण उसकी आस्था सैंटा में थी और मैं इसे बेवजह तोड़ना नहीं चाहता था. इसलिए 29 बरस से हर साल सैंटा के खिलौने खरीद कर लाता हूं. ईशानी और पुरू दोनों के लिए.
ईशानी अब बड़ी हो गयी है. शादी हो गयी है. वह वकील है. सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करती है. पर अब भी मैं उसके लिए सैंटा क्लाज लाता हूं. बावजूद इसके कि मैं जिस बनारस से आता हूं वहां ऐसे हर प्रतीक का मूर्तिभंजन होता है. वहां गाया जाता है, 'जिंगल बेल… जिंगल बेल… जिंगल बेलवा गावला. पक्कल दाढ़ी वाला बुढ़वा, झोला लेके आवला.' मेरे भीतर का बच्चा सैंटा क्लाज के भ्रम को बच्चों के बहाने बनाए रखता है. बच्चे सोने से पहले मोज़ा टांगते. वीणा चुपके से उसमे उपहार भरतीं. और श्रेय मिलता है सैंटा क्लाज को.
जिस सैंटा क्लाज को हम देखते हैं, उनकी शख्सियत कोका कोला कंपनी ने बनाई है
इस बात की परवाह किए बगैर कि सैंटा क्लाज की धार्मिकता क्या है? वे ईश्वर हैं या उनके प्रतिनिधि हैं? या उपभोक्तावादी समाज में उत्पाद बेचने का प्रतीक हैं या जीसस क्राईस्ट और सैंटा क्लाज एक ही हैं? या अलग लेकिन फिर ईसा के जन्मदिन पर ही वो क्यों आते हैं? यह पता करते करते मुझे सैंटा के मौजूदा स्वरूप के बारे में कई दिलचस्प बातें पता चलीं. आज जिस सैंटा क्लाज को हम देखते है, उनकी शख्सियत कोका कोला कम्पनी ने बनाई है. वो कोका कोला कम्पनी की बोतल के रंग के कपड़े पहनता है. उसके उत्पाद पर शुरू में उसकी फोटो आई और फिर कम्पनी ने उपभोक्तावाद को बढ़ावा देने के लिए उसकी इस छवि को लोकप्रिय बनाया.
हर उत्पाद के साथ एक रणनीति होती है. सो कहानी गढ़ी गयी कि सेंटा जाड़ों की कड़कड़ाती रात में आता है और जो बच्चा जैसा बर्ताव करता है उसे वैसा उपहार देता है. यह एक तरह का ईश्वर है जो मां-बाप का कहना मानने वाले बच्चों को तोहफे देता है. यह अवधारणा ओल्ड टेस्टामेंट के अब्राहमी गॉड से मिलती जुलती है. अब्राहम उन्हें नष्ट करता है, जो उसकी बात नहीं मानते. यूरोप में ईसाइयत से पहले लोग मानते थे कि सर्दी में यूल नाम के त्यौहार में एक आंख और दाढ़ी मूंछों वाला, खुशमिज़ाज बूढ़ा ओडिन अपने आठ पैरों वाले घोड़े पर सवार होकर शिकारियों के साथ आकाश से आता है. एक विचार यह भी है कि शायद ओडिन ही सैंटा क्लाज में तब्दील हो गए जो रेंडियर की गाड़ी में बैठकर बच्चों को तोहफे बांटते हैं.
सैंटा के गांव की यात्रा
सैंटा के पीछे क्या है? यह जिज्ञासा लगातार बनी रही. इसलिए मौका पाते ही मैं फिनलैंड गया. सैंटा का गांव वही माना जाता है. मौजूदा सैंटा क्लाज वहीं रहते हैं. हेलसिंकी के उपर आर्टिक सर्किल के पास, जिसके उस पार सिर्फ उत्तरी ध्रुव है. प्राईमरी की किताबों में पढ़ा था, एस्किमो बालक, स्लेज गाड़ी, रेंडियर,इग्लू, हस्की कुत्ते सब वहां मिले. लगा सपनों के देश में आ गया हूं. इस पूरे देश की आबादी सिर्फ पचास लाख. उसके चार गुना रेंडियर यानी नीलगाय और बारहसिंगा का मिलाजुला रूप. वही चौपाया इस अंनत बर्फ में लोगों का भोजन और परिवहन का साधन है. सूरज रात के एक बजे तक आकाश में टंगा रहता है और फिर तडके तीन बजे उग आता है. यानी रात सिर्फ दो घंटे की होती थी. साथ ले गए सारे गर्म कपड़े कम पड़ने लगे थे. तापमान माइनस पन्द्रह डिग्री. हम सरकार के मेहमान थे. रहने घूमने की चौचक व्यवस्था थी. भोजन में रेंडियर और पीने को शराब यही वहां जीने का तरीका था. हम ठहरे बनारसी, गंगाजल संस्कृति के. तो गर्म पानी और सब्जियों से अपना गुजारा हुआ.
फिनलैंड में है सैंटा का गांव.
गुस्सा बहुत आ रहा था कि पूरी दुनिया में खाने पीने का सामान बांटने वाले सेंटा के देश में, इतनी सांसत. ऐसी किल्लत! हम आर्टिक सर्किल पर थे. यहां एक पहाड़ी से दूसरी पहाड़ी को बर्फ जोड़ती है. बर्फ के नीचे धंसे पेड़ों की फुनगियां तक सफेद थीं. इसी माहौल में मेजबान ने हमें स्लेज गाड़ी पर बैठा दिया जिसमें पांच हस्की कुत्ते जुते हुए थे. मेरे गाड़ी पर बैठते ही वे हवा से बात करने लगे. शरीर में फटने वाली सारी चीजें फटने लगी. लगा अब सैंटा से मुलाकात नहीं हो पाएगी. मैंने इशारे से किसी तरह गाड़ी रुकवायी और कान पकड़ा की अब नहीं बैठूंगा. स्थानीय गाड़ी वाले ने कहा, थोड़ी गर्मी है इसलिए कुत्ते हांफ रहे हैं. मैंने कहा, भाई साहब यह हाड़तोड ठंडक आपको गर्मी लग रही है. उसने कहा ये कुत्ते माईनस तीस में रहते हैं. अभी माइनस पंद्रह है इसलिए इनके लिए गर्मी है. आप बैठिए हम आपको इसी गाड़ी से रोवानिएमी ले चलेंगे. मैंने कहा, इस गाड़ी पर नहीं जाऊंगा सैंटा जाए भाड़ में .
फिनलैंड में रोवानिएमी में सेंटा का स्टेट है. वे यही रहते हैं. बिल्कुल राजा साहब सिंगरामऊ या राजा साहब औसानगंज की तरह. उनका अपना छोटा सा पैलेस है. अपना पोस्ट ऑफिस है. अपना जहाज है. पूरा सचिवालय है. सैकड़ों कर्मचारी हैं. लाखों खत दुनिया भर से बच्चों के आते हैं. हमारे शंकराचार्य की तरह उन्हें भी नामित किया जाता है. एक के मरने के बाद दूसरा सेंटा नामित होता है. हर साल मेरे जैसे लाखों लोग उनका पैलेस, पोस्टऑफिस और स्टेट देखने आते हैं. मैं वहां से सैंटा उनकी बीवी और सचिव की मूर्तियां भी लाया था. साढ़े छ फीट के सैंटा से मिलकर मैं चमत्कृत था. बचपन की मुराद पूरी हुई. उन्होंने बताया कि वे यहां कुछ महीने रहते हैं. बाकी समय दुनिया भर में उनके कार्यक्रम लगे होते हैं. फिनलैंड में स्थित सैंटा के स्टेट रोवानिएमी में कड़ाके की ठंड पड़ती है. 6 महीने दिन और 6 महीने रातवाला यह देश 12 महीने बर्फ की चादर से ढका रहता है. सैंटा के इस गांव की खासियत है कि यहां घुसते ही लकड़ी से बनी झोपडि़यां नजर आती हैं. यहां का हर एक नजारा बचपन में सुनी कहानियों को हकीकत में होने का अहसास कराता है.
इस गांव में एक ऐसी हट है जिसमें सिर्फ सैंटा और उनकी पत्नी रहते हैं. लाल और सफेद रंग से सजी सैंटा की झोपड़ी में खास चीज दूर से ही दिखाई देती है और वो हैं नन्हें बच्चों के ढेर सारे खत. इन खतों को सैंटा और उनकी वाइफ बहुत संभाल कर रखते हैं. सैंटा की हट में एक हिस्सा ऐसा है जहां से सैंटा क्लाज लोगों से मिलता है. जिसे सैंटा का ऑफिस कहा जाता है. खास बात यह है कि सैंटा विलेज घूमने आए लोग यहां सैंटा से मिलने के अलावा उससे बातें और तस्वीर भी खिंचवा सकते हैं. यहीं मेरी सैंटा से मुलाकात हुई थी.
हालांकि सैंटा हट में घुसने की तो आपको कोई कीमत नहीं चुकानी लेकिन वहां खिंची फोटो सैंटा के पोस्ट ऑफिस से कुछ पैसे देकर खरीदनी पड़ती है यहीं सैंटा आईस पार्क भी है. सैंटा का यह पार्क उनकी हट से कुछ ही दूरी पर बना हुआ है. इस पार्क में एंट्री करने के लिए आपको थोड़ी सी कीमत एंट्री फीस के रूप में चुकानी होगी.
सैंटा का धार्मिक महत्व क्या है?
सैंटा क्लाज को लेकर कौतूहल का समंदर बचपन से ही रहा है. मसलन सैंटा क्लाज है कौन, कहां से आता है? उसका धार्मिक महत्व क्या है? जीसस से उसका क्या सम्बन्ध है? वह उनके जन्मदिन पर ही क्यों आता है? यह परम्परा कब और कैसे शुरू हुई? आदि आदि. समय के साथ इसके जवाब भी मिलते गए. सैंटा क्लाज की अवधारणा सेंट निकोलस से ली गई है. सैंटा क्लाज और जीसस के बीच कोई संबंध नहीं है. मगर फिर भी सैंटा क्लाज क्रिसमस के सबसे जरूरी हिस्‍से में से एक हैं. सैंटा निकोलस का जन्‍म तीसरी सदी में तुर्किस्‍तान के मायरा नाम के शहर में हुआ था. जीसस की मृत्‍यु के करीब 280 साल बाद.
सैंटा सिर्फ किस्से कहानी का रूप नहीं है. कुछ ऐसे भी शोधार्थी और वैज्ञानिक हैं जिन्होंने सैंटा के अस्तित्व की जांच पड़ताल की है और उनके वजूद की वास्तविकता पर मुहर लगाई है. मसलन ऑक्सफोर्ड के वैज्ञानिकों को फ्रांस में हड्डी का एक पुराना टुकड़ा मिला. जिसके बारे में ऐसा बताया गया कि यह हड्डी सेंट निकोलस से जुड़ी हो सकती है. ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के पुरातत्वविदों ने हड्डी के इस टुकड़े के एक सूक्ष्म-नमूने पर रेडियोकार्बन परीक्षण किया. इससे पता चला कि 1087 ईसवी की है. कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इसी समय तक संत निकोलस का मृत्यु हो गई थी. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की वेबसाइट पर इस सिलसिले में एक बयान भी जारी किया गया. इस बयान में केबेल कॉलेज के एडवांस्ड स्टडीज सेंटर में ऑक्सफोर्ड अवशेष समूह के निदेशक प्रोफेसर टॉम हाम ने बताया कि यह हड्डी का टुकड़ा सेंट निकोलस का अवशेष हो सकता है.
कैसे शुरू हुई उपहार बांटने की ये परंपरा
सेंट निकोलस रूढ़िवादी चर्च के सबसे महत्वपूर्ण संतों में से एक थे. उनके बारे में माना जाता है कि वे धनी आदमी थे, जो अपनी उदारताके लिए जाने जाते थे. वे क्रिसमस पर सैंटा क्लाज बनकर बच्चों को उपहार दिया करते थे. उपहार बांटने की ये परंपरा उनकी ही स्मृति में शुरू हई. कई सालों से सेंट निकोलस के 500 अवशेषों को दुनिया भर के विभिन्न चर्चों द्वारा इकट्ठा किया गया है, जिन्हें वेनिस के सेंट निकोलो चर्च में रखा गय. वेनिस को मैं यूरोप का बनारस कहता हूं. पत्थर की संकरी गलियां , कुछ पानी में और कुछ पानी के किनारे बसा शहर. यहां के दर्शनीय स्थलों में एक है सेंट निकोलो चर्च. मैं उसे भी देखने गया था. लेकिन सवाल यह उठता है कि हड्डियों के इतने सारे अवशेष एक ही व्यक्ति के कैसे हो सकते हैं? पर आस्था के आगे तर्क की कोई जगह नहीं होती. आक्सफोर्ड के प्रोफेसर टॉम हाम के अनुसार बहुत से अवशेष ऐसे है जिन्हें हम ऐतिहासिक समर्थन के बाद कुछ हद तक बदल देतें है,लेकिन इस हड्डी के टुकड़े से पता चलता है कि हम सेंट निकोलस के अवशेष देख सकते हैं. सम्राट डाइक्लेटीयन द्वारा सताए गए संत निकोलस की मायरा में मृत्यु हो गई थी जिसके बाद उनके अवशेष ईसाई भक्ति का केंद्र बन गए.
सेंट निकोलस के बारे में इतिहासकारों ने पाया कि माता-पिता की मृत्‍यु के बाद वह मॉनेस्‍ट्री में वह पले-बढ़े. 17साल की उम्र ही उन्‍हें पादरी की उपाधि मिल गई. सेंट निकोलस स्‍वभाव से काफी दयालु थे. जरूरतमंदों की मदद करने के लिए वह सदैव आगे रहते थे. बच्‍चों को उपहार देते रहते थे. उनके इसी स्‍वभाव के कारण माना जाता है कि मृत्‍यु के बाद भी सैंटा क्लाज क्रिसमस पर बच्‍चों को उपहार देंगे. तभी से यह परंपरा शुरू हो गई. हालांकि संत निकोलस को उपहार देते हुए नजर आना पसंद नहीं था. वे अपनी पहचान लोगों के सामने नहीं लाना चाहते थे. इसी कारण बच्चों को जल्दी सुला दिया जाता है. आज भी कई जगह ऐसा ही होता है कि अगर बच्चे जल्दी नहीं सोते तो उनके सैंटा उन्हें उपहार देने नहीं आते हैं. संत निकोलस को बहुत दयालु माना जाता है. उनकी दरियादिली की कहानियां मशहूर हैं. उन्होंने एक गरीब की मदद की. जिसके पास अपनी तीन बेटियों की शादी के लिए पैसे नहीं थे और मजबूरन वह उन्हें मजदूरी और देह व्यापार के दलदल में भेज रहा था. तब निकोलस ने चुपके से उसकी तीनों बेटियों की सूख रही जुराबों में सोने के सिक्कों की थैलियां रख दीं और उन्हें लाचारी की जिंदगी से मुक्ति दिलाई. बस तभी से क्रिसमस की रात बच्चे इस उम्मीद के साथ अपने मोजे बाहर लटकाते हैं कि सुबह उनमें उनके लिए गिफ्ट्स होंगे. इसी प्रकार फ्रांस में चिमनी पर जूते लटकाने की प्रथा है. हॉलैंड में बच्चे सैंटा के रेंडियरर्स के लिए अपने जूते में गाजर भर कर रखते हैं.
कहां से आया सैंटा क्लाज शब्द
सैंटा का आज का जो प्रचलित नाम है वह निकोलस के डच नाम "सिंटर क्लास" (Sinterklaas) से आया है जो बाद में सैंटा क्लाज बन गया. कहते हैं कि दुनिया में जीसस और मदर मैरी के बाद संत निकोलस को ही इतना सम्मान मिला. सन् 1200 से फ्रांस में 6 दिसम्बर को निकोलस दिवस के रूप में मनाया जाने लगा. इसी दिन संत निकोलस की मौत हुई थी. उनकी मौत के बाद भी यह परम्परा जारी रही. वक्त के साथ सैंटा के भीतर बदलाव होता गया. निश्चित तौर पर आजकल जिस रूप में हम सैंटा को देखते हैं, शुरुआती दौर में उनका हुलिया ऐसा नहीं था. सवाल है कि फिर लाल और सफेद रंग के कपड़े पहने लंबी दाढ़ी और सफेद बालों वाले सैंटा का यह हुलिया आखिर आया कहां से? दरअसल 1881 में अमेरिकी कार्टनिस्ट थॉमस नास्ट ने क्लार्क मूर की 1823 की कविता "A Visit from St. Nicholas", के साथ संत निकोलस का एक चित्र बनाया. इसी चित्र से सैंटा क्लाज की आधुनिक छवि बनी. क्लीमेंट मूर की "नाइटबिफोर क्रिसमस" में छपे सेंटा के कार्टून ने दुनिया भर का ध्यान खींच लिया. इसके साथ ही "थॉमस नैस्ट" नामक पॉलिटिकल कार्टूनिस्ट ने हार्पर्स वीकली के लिए एक इलस्ट्रेशन तैयार किया. जिससे सफेद दाढ़ी वाले सैंटा क्लाज को यह लोकप्रिय शक्ल मिली. धीरे-धीरे सैंटा की शक्ल का उपयोग विभिन्न ब्रांड्स के प्रचार के लिए किया जाने लगा.
सैंटा और कोका कोला के जुड़ाव का भी एक इतिहास है. साल 1930 में कोका-कोला कंपनी के क्रिसमस विज्ञापन के लिए हैडन संडब्लोम नाम के एक अमेरिकी कलाकार ने सैंटा क्लाज को और भी अधिक लोकप्रिय बना दिया. हैडन कोका-कोला के विज्ञापन में सैंटा के रूप में 35 वर्षों (1931से लेकर 1964 तक) तक दिखाई दिए. सैंटा का यह नया अवतार लोगों को बहुत पसंद आया और आखिरकार इसे सैंटा का नया रूप स्वीकारा गया जो हमारे स्मृति पटल पर है. सैंटा के साथ एक सवाल यह भी जुड़ा हुआ है कि वे क्रिसमस में आते हैं तो बाकी समय कहां रहते हैं? क्या करते हैं? उनका घर कहां है? उनकी धार्मिक हैसियत क्या है? ये सवाल हमें बचपन से परेशान करते आए हैं. इसे लेकर अलग-अलग देशों की लोककथाओं के अलग-अलग दावे हैं. पर रहन-सहन, पहनावे, हस्की कुत्ते, स्लेज गाड़ी और रेडिंयर की सोहबत से आप मान सकते है कि सैंटा क्‍लाज सुदूर उत्तर के किसी बर्फीले देश में रहते हैं. सैंटा क्लाज के अमेरिकी संस्करण के अनुसार, वह उत्तरी ध्रुव में अपने घर में रहते हैं. यह फिनलैंड के ऊपर आर्टिक सर्किल में है जिसका पोस्टल कोड HoHoHo यानि हो हो हो है.
शोध में क्या बातें निकल कर आईं
सैंटा के बारे में शोध भी हुए हैं. किताबें छपी हैं. साल 1821 में एक किताब "A New-year's present, to the little ones from five to twelve" न्यूयॉर्क से छपी. इसमें "Old Santeclaus with Much Delight" नाम से एक कविता छपी जो सैंटा क्लाज को एक रेनडियर स्लीव पर बताती है. उसके मुताबिक क्रिसमस के दिन सैंटा बर्फ की चादर से ढके उत्तरी ध्रुव से आठ उड़ने वाले रेंडियर की स्लेज गाड़ी पर सवार होकर आते हैं. ऐसी कितनी ही कहानियां हैं जो सैंटा के व्यक्तित्व को खासा रोचक बनाती हैं. सैंटा की कहानियां हरि अनंत हरि कथा अनंता की तर्ज पर घर घर नई शक्लों में सुनाई जाती हैं.
सैंटा सर्वव्यापी हैं. देश, काल, धर्म, मजहब, संप्रदाय, विचारधारा के दायरे से परे. वे जिंदगी के सबसे मासूम वक्त के हमसाए हैं. बच्चों की उम्मीदों, आकांक्षाओं, सपनों की प्रतिध्वनि बनकर. वे साल में एक दिन आते हैं मगर साल भर उनके आने का इंतज़ार होता है. सैंटा यूं तो सर्दियों के मौसम में आते हैं मगर वे अपने आप में एक मौसम की तरह होते हैं. मासूमियत के घरौंदे खिलखिलाते हैं. सपनों के इंद्रधनुष तन जाते हैं
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