इस तरह आना बसंत का

कुदरत की दहलीज पर बसंत की आहट हुई है। बसंत यानी प्यार और सौंदर्य से पूरित प्रकृति का यौवन। इस मौसम में जब धरा आपादमस्तक रंगीन शृंगार कर लेती है

Update: 2022-03-05 04:47 GMT

नरपतदान चारण: कुदरत की दहलीज पर बसंत की आहट हुई है। बसंत यानी प्यार और सौंदर्य से पूरित प्रकृति का यौवन। इस मौसम में जब धरा आपादमस्तक रंगीन शृंगार कर लेती है, तब मन में दबे प्रेम पगे, आनंद भरे मनोभावों से चादर हटती है। कल्पनाओं के साकार होने की यह ऋतु साल का एक मौसम भर नहीं है, यह मन-जीवन में रचे-बसे भावों को खुल कर जीने का पड़ाव है।

बसंत में उमंग है, उल्लास है, आस है, बस इसीलिए तो खास है। इसके आगमन से चर-अचर सबके भीतर उल्लास परवान चढ़ता है। रूह की चौखट पर कुछ मादक-सी हलचल मन के तारों को झंकृत करती है। झंकृत हो भी क्यों नहीं। क्योंकि यह बसंत है, जिसमें न बर्फ का कुहरा है, न ग्रीष्म का उबाल है, न बरखा की उमस है।

यह कोई आम ऋतु नहीं, ऋतुओं का राजकुमार है। छह ऋतुओं में इसका काल रंगीन मिजाजी है। महीनों से शिशिर के संताप से कोठरों में दुबके विहंग अब स्वच्छंद व्योम में विचरण को व्याकुल हैं। वृक्षों की टहनियां हरित नव-पल्लव को धारण करने लगी हैं। बागों में नवजात पुष्प हर्षित हैं। कहीं कली-कली खिलने को कुलबुला रही है, तो कहीं कोपलें फूटने को उतावली हो रही हैं।

वृंत-वृंत पर तितलियों की चहलकदमी शुरू हुई है। भ्रमर की गुंजन से सारा संसार मधुर स्वर लहरी में गोते लगा रहा है। ग्रीष्म से निर्वस्त्र खेत खलिहान अब सरसों का पीतांबर पहने हैं। रूखे आमों में बौर आने लगी हैं। भोर की किरण कोहरे से भीगी सहमी-सहमी नहीं है अब। अब वह गगन में पीताभ बिखेर कर मुस्करा रही है। पौष के जाड़े से ठिठकी वसुंधरा अब नई दुल्हन-सा सौंदर्य धारण कर अकुला रही है, प्रफुल्लित हो रही है, मदमस्त हो रही है।

बासंती बयार अपना रुख बदल कर कुछ खुशबू समेट रही है, तो कुछ खुशबू बिखेर रही है और अपने झोंकों से हमें कह रही है- जैसे मैं फूलों को दिल में और उनकी महक होंठों में रख के चलूं उसी तरह तुम भी दिल में प्यार के फूल रख दो और अपनी जुबां, अपने लफ्जों से उसकी महक न्योछावर कर दो। तुमसे भी सब प्यार करेंगे।

यह धूसर आसमां, जो कल तक बेरंग था, अब गहरी नीली आभा का कलेवर लिए खुला-खुला है, स्वच्छ है। स्वच्छ जीवन शैली जीने और आदतों का आवरण बदलने का संकेत दे रहा है। सूरज में कल जहां शीत से तपिस कम थी, मगर अब सकल प्राणियों में नवीन ऊर्जा भर रहा है। यह सिर्फ बसंत का ही कमाल है। और बासंती चांदनी रात की तो बात ही क्या! एकदम धवल, निर्मल, उज्ज्वल और शीतलता युक्त। मानो कह रही हो -तुम भी आचरण धवल कर दो, मन निर्मल कर दो, तन उज्ज्वल और वाणी शीतल कर दो, फिर मुस्कान तुम्हारे होठों से सदा सर्वदा चिपकी रहेगी।

यह सिर्फ बसंत का ही कमाल है। सब कुछ उमंग और उत्साह से भरा। मनमोहक और मानवीय भावों से उपजा। और हां, बसंत प्रेम-पगे अहसासों की ऋतु तो है ही, यह प्रेम को जानने और उसे विस्तार देने का संदेश भी लिए है। बसंत में मन का मौसम प्रेम को जीता है। प्रेम के मायने हैं- सह-अस्तित्व की भावना। और बसंत में पूरी प्रकृति इस सह-अस्तित्व के भाव को जीती नजर आती हैं। जिंदगी को जी लेने के अहसासों से लबरेज यह गुनगुना मौसम ऊर्जा, लगन, विश्वास से जीवन में सौंदर्य भरने और परोपकार, दया, सेवा का भाव हृदय में रखने का अवसर भी प्रदान करता है।

एक ओर खिलखिलाती प्रकृति है, तो दूसरी और हर दिल में पलती प्रेम की उमंगें, प्रकृति और संस्कृति का आलिंगन है। सार की बात यही कि बसंत में निराश मन को छोड़ कर आशा की ओर प्रवास करें। हर वर्ष बसंत से मुलाकात कर थोड़ा ठनक कर हंसें, थोड़ा शून्य में ठहरें, थोड़ा रुकें, थोड़ा चहलकदमी करें, थोड़ा ठिठकें, थोड़ा रूमानी बनें, और थोड़ा रूहानी हो गहन चिंतन-मनन करें और तनिक चहक कर आनंद में डूब जाएं। क्योंकि बसंत महज मौसम नहीं, बसंत जीने का अहसास है।

यह अंतस में बसी उमंग है, प्रेम की हिलोर है, यह प्रकृति की सोच और एक अजीब संकोच है। जब पूछे कोई कि क्या कहता है बसंत, तो यही जवाब दें कि यह बसंत की ही मर्जी, वह कैसे खुद की अभिव्यक्ति दे। बहरहाल, सार रूप यही कि यह ऋतु परिवर्तन, जीवन परिवर्तन की सीख देने वाला वक्त है। लोगों के मनोभाव और हृदय भी प्रेमिल, रंगीन, प्रसन्न और मोहक बन जाएं यही संदेश है इस ऋतुराज का। प्राणी मानसिक और शारीरिक संकल्प से प्रेम, परोपकार, पुण्य और कल्याण के लिए कार्य करे, यह मूलभाव है इसका।


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