यूं किया चिराग पासवान ने चाचा पशुपति पारस को चरों खाने चित

लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) के नेता चिराग पासवान (Chirag Paswan) ने साबित कर दिया है

Update: 2021-09-11 07:01 GMT

अजय झा। लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) के नेता चिराग पासवान (Chirag Paswan) ने साबित कर दिया है कि वह राजनीति के मैदान में इतने भी अनाड़ी नहीं हैं जितना कि उन्हें बताया जा रहा था. दिवंगत नेता और पिता राम विलास पासवान (Ram Vilas Paswan) की बरसी के आड़ में चिराग ने राजनीति में ऐसा दांव चला है कि वह एक बार फिर से सुर्ख़ियों में आ गए हैं और उनके चाचा, केन्द्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस चरों खाने चित होते दिख रहे हैं. हालांकि राम विलास पासवान की मृत्यु पिछले वर्ष 8 अक्टूबर को हुई थी, पर हिंदी कैलंडर के अनुसार उनकी पहली बरसी कल यानि 12 सितम्बर को है.

राम विलास पासवान की एक खासियत थी कि उनके सभी दलों और विरोधी नेताओं से भी अच्छे संबंध होते थे. चिराग ने भी कुछ ऐसा ही कर दिखाया है. पिछले दिनों पटना में उनकी मुलाकात राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव से हुई. अटकलों का बाज़ार गर्म था कि इस मुलाकात के बाद शायद चिराग आरजेडी के नेतृत्व वाली महागठबंधन में शामिल हो सकते हैं. फिर चिराग दिल्ली आये, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से फोन पर बात की और उन्हें पिता की बरसी पर शामिल होने का आमंत्रण दिया. केंद्रीय मंत्री अमित शाह, राजनाथ सिंह और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा से मिले. कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष सोनिया गांधी से भी उनकी मुलाकात हुई. फिर आरजेडी के संस्थापक लालू प्रसाद यादव से मिले, उन्हें बरसी में शामिल होने के लिए आमंत्रण दिया और उनसे आशीर्वाद प्राप्त किया. राष्ट्रपति रामनाथ कोविदं को भी पिता की बरसी पर शामिल होने के लिए आमंत्रित किया और सबसे महत्वपूर्ण बात रही कि वह चाचा पशुपति कुमार पारस के घर भी गए और उन्हें भी आमंत्रित किया.
चिराग पासवान ने देश और राज्य के बड़े नेताओं से किया संपर्क
चिराग शनिवार सुबह नई दिल्ली से पटना पहुंचेंगे और ख़बरों के अनुसार आज दोपहर बाद उनकी मुलाकात बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से भी होने वाली है. अगर चिराग चाहते तो पिता की बरसी सामान्य तौर पर और परिवार के बीच भी मना सकते थे, पर यह एक अवसर था जिसका उन्होंने भरपूर इस्तेमाल किया. चिराग भी जानते थे कि इनमें से ज्यादातर आमंत्रित नेता पटना में हो रहे बरसी में शामिल नहीं होंगे, पर उन्होंने आमंत्रण देने के नाम पर एक बार फिर से देश और राज्य के बड़े नेताओं से संपर्क करने का सफल प्रयास किया. पशुपति पारस चिराग के चक्कर में ऐसे उलझे कि उन्होंने घोषणा कर दी है कि वह अपने बड़े भाई राम विलास पासवान की बरसी में शामिल होंगे.
कुछ ऐसी ही स्थिति नीतीश कुमार की भी हो गई है. पटना में रहते हुए चिराग ने आरोप लगाया कि वह मुख्यमंत्री से मिलना चाहते थे पर नीतीश कुमार ने उन्हें समय नहीं दिया. नीतीश कुमार भले ही चिराग से बेहद खफा हों, पर चिराग को आमंत्रण देने के लिए समय नहीं देने से उनकी राजनीतिक हलकों में आलोचना होने लगी थी. राम विलास पासवान और नीतीश कुमार के कभी घनिष्ट संबंध होते थे. राम विलास पासवान की गिनती दलितों के बड़े नेता में होती थी और चिराग को मिलने के लिए समय नहीं देना पासवान के अपमान के रूप में देखा जाने लगा था. नीतीश कुमार दलितों को नाराज़ नहीं कर सकते थे. संभव है कि थोड़े समय के लिए ही सही पर वह भी राम विलास पासवान की बरसी में शामिल हो सकते हैं.
सोच और समझ में अंतर होता है
इसमें कोई शक नहीं कि पिछले वर्ष हुए बिहार विधानसभा चुनाव में चिराग का पासा उल्टा पड़ गया था, जिसके कारण वह राजनीति में अलग थलग पड़ गए थे. एलजेपी के अध्यक्ष के तौर पर चिराग ने जो निर्णय लिया कि उनकी पार्टी एनडीए में होते हुए भी नीतीश कुमार के जनता दल (यूनाइटेड) के खिलाफ चुनाव लड़ेगी और बीजेपी का समर्थन करेगी. चिराग का आंकलन था कि नीतीश कुमार से नाराज लोग उनकी पार्टी के लिए वोट करेंगे. चिराग चुनाव के बाद नीतीश कुमार को जेल भेजने तक की बात कर रहे थे. चिराग ने नीतीश कुमार से असंतुष्ट मतदाताओं को भड़काया तो जरूर पर उन्होंने एलजेपी के लिए वोट नहीं किया जिसका इसका सीधा फायदा आरजेडी को मिला.
चिराग की सोच थी कि एलजेपी एक बड़ी शक्ति बन कर उभरेगी, बीजेपी-एलजेपी की सरकार बनेगी, पिता की जगह केंद्र में वह मंत्री बनेंगे और बिहार के बड़े और कद्दावर नेताओं के उनकी गिनती होने लगेगी. पर सोच और समझ में काफी अंतर होता है. चिराग ने नीतीश कुमार को काफी नुकसान पहुंचाया. नीतीश कुमार एक बार फिर से मुख्यमंत्री बने पर बीजेपी के रहमोकरम के कारण, ना कि अपने बल पर. जेडीयू के मुकाबले बीजेपी के विधायकों की संख्या काफी अधिक थी, पर बीजेपी ने नीतीश कुमार को ही मुख्यमंत्री बनाया. एलजेपी मात्र एक सीट पर ही चुनाव जीतने में सफल रही, वह भी तब जबकि बिहार विधानसभा चुनाव राम विलास पासवान के निधन के कुछ ही दिनों बात हुआ था. उम्मीद की जा रही थी कि चिराग सहानुभूति वोट के सहारे बड़े नेता बन जायेंगे. पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ.
बिहार की जनता चिराग के साथ है?
नीतीश कुमार ने तथाकथित तौर पर चिराग से बदला लिया. माना जाता है कि पशुपति पारस ने चिराग के खिलाफ बगावत नीतीश कुमार के इशारे पर की थी. यह बगावत नहीं था, बल्कि चिराग का तख्ता पलट दिया गया. पारस ने पार्टी में सांसदों को साथ लिया और चिराग को पहले एलजेपी संसदीय दल के नेता पद से हटा दिया और फिर एलजेपी के अध्यक्ष पद से भी. दोनों पदों पर वह स्वयं आसीन हो गये और एलजेपी के कोटे से केंद्रीय मंत्री भी बन गए. बीजेपी चाह कर भी चिराग की मदद नहीं कर पाई, क्योंकि पार्टी नीतीश कुमार से पंगा लेने के मूड में नहीं थी.
चिराग के पास आवसर था कि वह मोदी सरकार और बीजेपी के खिलाफ प्रयासरत विपक्षी एकता की मुहीम में शामिल हो सकते थे, पर बड़ी होशियारी से वह कन्नी काट गए, यह कह कर कि उन्हें पिता की पहली बरसी की तैयारी करनी है और निकल पड़े बिहार में जनसंपर्क यात्रा पर बिहार के शहरों और गांव की धुल फांकने. चिराग का जनसंपर्क अभियान काफी सफल माना जा रहा है. इससे विचलित हो कर पशुपति पारस ने भी जनसंपर्क यात्रा की योजना बनाई पर जनता पारस से दूर रही. इससे इतना तो तय हो गया कि बिहार की जनता पशुपति पारस की बगावत और मौकापरस्ती से नाराज़ है. चिराग के जनसंपर्क अभियान की सफलता और पशुपति पारस की असफलता से यह भी तय हो गया कि राम विलास पासवान की राजनीति के असली उत्तराधिकारी चिराग हैं, ना कि पशुपति पारस.
बीजेपी यूपी में कर सकती है चिराग पासवान का इस्तेमाल
संकेत है कि आगामी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी चिराग पासवान का इस्तमाल अति दलित मतदाताओं को रिझाने के लिए करने की तैयारी में हैं, खास पर पूर्वी उत्तर प्रदेश के उन क्षेत्रों में जो बिहार की सीमा से सटा हुआ है. संभव है कि चिराग के नेतृत्व वाले एलजेपी के धड़े को बीजेपी कुछ टिकट भी थमा दे. अगर चिराग के एक-दो विधायक भी चुन लिए गए तो बिहार और केंद्र की राजनीति में उनकी धमाकेदार वापसी हो सकती है. गलती करना इंसान की फितरत है, पर गलती से जो सबक सीखे वही आगे बढ़ता है. चिराग ने अति महत्वाकांक्षी बन कर गलती की, और अब भूल सुधार करने मे लगे हैं जिसका फल उन्हें ज़रूर मिलेगा.


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